मेट्रो में मास्क को छोड़ बाकी पाबंदियां अब नहीं, फिर भी कोरोना से पहले के मुकाबले 10 प्रतिशत यात्री कम
कोरोना की वजह से एक तो मेट्रो में लंबे समय तक परिचालन बंद रहा। फिर जब मेट्रो सेवाएं शुरू हुई तो कई पाबंदियां रही। इसका भी असर पड़ा। काफी समय बाद मेट्रो में यातायात सामान्य हो पाया। अब मास्क लगाना ही अनिवार्य रह गया है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : मेट्रो में अब मास्क को छोड़कर कोरोना से जुड़ी बाकी पाबंदियां तो नहीं है लेकिन फिर भी कोरोना काल शुरू होने से पहले जैसी यात्रियों की संख्या बहाल नहीं हो सकी है। कोरोना से पहले जितने यात्री मेट्रो मे सफर करते थे, उनमे से अभी भी 10 प्रतिशत तो कम है। इससे मेट्रो को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। कहां तो कोरोना आने से पहले यह उम्मीद की जा रही होगी कि 2022 तक मेट्रो में यात्रियों की संख्या बढ़ जाएगी, लेकिन 2020 में काेराेना ने ऐसी दस्तक दी की यात्रियों की संख्या बढ़ने की बजाय उल्टा कम हो गई। तभी से ही मेट्रो को नुकसान भी हो रहा है।
कोरोना की वजह से एक तो मेट्रो में लंबे समय तक परिचालन बंद रहा। फिर जब मेट्रो सेवाएं शुरू हुई तो कई पाबंदियां रही। इसका भी असर पड़ा। काफी समय बाद मेट्रो में यातायात सामान्य हो पाया। कुछ माह पहले ही बहादुरगढ़ तक आने वाली ग्रीन लाइन पर मेट्रो की समय सारिणी को सामान्य किया गया था और मास्क समेत कोरोना की तमाम पाबंदियों को हटाया गया था, लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही दोबारा से कोरोना के केस सामने आने लगे तो मेट्रो में फिर से मास्क अनिवार्य किया गया।
हालांकि शारीरिक दूरी, सैनिटाइजेशन और दूसरी पाबंदियां अभी नहीं है। अहम बात तो यह है कि मेट्रो में जितने यात्री कोरोना से पहले यात्रा करते थे। अभी भी उतने नहीं है। माना जा रहा है कि कोरोना में बहुत से लोगों ने आवागमन के साधन बदले और कुछ इधर से उधर शिफ्ट भी हो गए। प्राइवेट सेक्टर में तो कुछ जगह अभी भी वर्क फ्राम होम की आप्शन है। इसका असर भी पड़ रहा है।
बहादुरगढ़ की बात करें तो यहां पर एक स्टेशन पर आमतौर पर जो 45 लाख तक की रोजाना आमदनी होती थी वह अभी 38 से 39 लाख तक है। जाहिर है कि इसका कारण मेट्रो में यात्रियों की कम संख्या ही है। समझा जा रहा है कि जब तक कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं होता, तब तक शायद यात्रियों की संख्या भी पहले के मुकाबले कुछ न कुछ कम ही रहेगी।