1938 के अकाल में हिसार आए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अखबार में छपा राष्ट्रपति ने किया दौरा
Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti Special Story 1938 के भयंकर अकाल से हिसार में 50 हजार गायों की भूख से मौत हुई थी। लोग भूखमरी से कंकाल नुमा हो गए थे। इनके हालात का जायजा लेेने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस लुधियाना से ट्रेन में हिसार पहुंचे थे।
हिसार, [मनोज कौशिक]। बात साल 1938 की है। जब लुधियाना से चली ट्रेन से 27 नवंबर के दिन नेताजी अकाल पीडि़तों का हाल जानने हिसार पहुंचे। नेताजी के इस एक दिन के दौरे के लाला हरदेव सहाय के मासिक अखबार ग्राम सेवक में शीर्षक प्रकाशित हुआ कि हिसार में राष्ट्रपति ने किया दौरा। डा. आरके श्रीवास्ताव सेवानिवृत सहायक निदेशक अभिलेखागार विभाग हरियाणा ने बताया उस समय अकाल (कहत) कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष को राष्ट्रपति कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने बताया कि तब हिसार में करीब 80 लाख एकड़ भूमि में बस तीन लाख एकड़ जमीन ही कृषि लायक थी। 80 फीसद भूमि बंजर थी। ऐसा भयंकर अकाल पड़ता था कि अनाज जमीन पर उगे घास को देखने के लिए लोग तरस जाते थे।
50 हजार गायों की हुई थी मौत, कोडिय़ों के भाव बेचे पशु
1938 के अकाल में हिसार जिले में भूख के मारे 50 हजार गायों ने दम तोड़ दिया तो चारे की कमी जूझ रहे हिसार के लोगों ने मजबूरीवश 2 लाख पशुओं को कोडिय़ों के भाव बेच दिया था। ज्यादातर लोगों की हालत ऐसी थी कि शरीर पर चमड़ी कम और कंकाल ज्यादा नजर आता था। कांग्रेस अकाल(कहत)कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते नेताजी की ओर हर कोई उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था।
1938 में लाला हरदेव सहाय का 29 दिसंबर को छपा ग्राम सेवक अखबार जिसमें यह शीर्षक दिया गया
कहा था, हम गुलाम न होते तो अकाल से भी निपट लेते
कटला रामलीला मैदान में संबोधन के दौरान नेताजी ने कहा कि हमारी सारी तकलीफों की जड़ गुलामी है। अगर हम गुलाम न होते तो अकाल अगर पड़ता भी तो इससे निपटने के इंतजाम पहले ही कर लेते। ब्रिटिश सरकार ने सुध ही नहीं ली। वे मंच पर पहुंचे तो शेख बदरूदीन ने उनके स्वागत में नज्म पढ़ी थी। बाबू पृथ्वीचंद ने स्वागत भाषण पढ़ा तो उनके साथ पंडित नेकीराम शर्मा, लाला हरदेव सहाय, लाला सत्यनारायण, पंडित कुंजलाल ने भी मंच साझा किया। रामलीला कटला मैदान की जनसभा के संबोधन के बाद नेताजी टिब्बा दानाशेर के लिए निकल गए। जहां पशुओं के इलाज और उनकी भोजन व्यवस्था करने के लिए बांबे शिव दया मंडल संस्था व्यवस्था संभाल रही थी। वहां देखरेख के बाद वे पास के ही गांव धांसू में पहुंचे और भूख से जूझ रहे कंकालनुमा हो चुके लोगों को देखा तो दुखी और भावुक हो गए। यहां से वे छोटी सातरोड गांव में बनी शिल्पशाला पाठशाला भी गए।
हिसार पहुंचने पर हिसार के मौजिज लोगों से बातचीत करते हुए नेताजी
हाथों से खादी वस्त्र बनाते बच्चों को देख हो गए थे खुश
हिसार में भोजन करने के बाद उन्हेंं लाला हरदेव सहाय उनके गांव छोटी सातरोड के उस स्कूल में लेकर पहुंचे जिसे शिल्पशाला के नाम से जाना जाता था। जिसे 1930 में उनके दादा रामसुखदास ने बनाया था ताकि यहां बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा सके। साथ ही यहां विद्यार्थी खुद सूत कातकर खद्दर के वस्त्र बनाते थे और मिलने वाले धन को उनके भविष्य निर्माण पर खर्च किया जाता। गुलामी और धन के अभाव के बावजूद यहां बच्चों को एक वक्त का खाना भी दिया जाता था। सातरोड निवासी मास्टर पंजाब ने बताया कि नेताजी ने यहां पहुंचे तो जमीन पर बने हरियाणा पंजाब के नक्शे और खादी वस्त्रों को देखकर खुश हो गए। उन्होंने इस बात का जिक्र वहां रखी विजटिंग बुक में भी किया। यहां से वे हांसी,मुंढाल, भिवानी होते हुए रोहतक पहुंचे। रोहतक में देर शाम उनके स्वागत में लोगों ने मशालें जलाकर रोशनी की।
टिब्बा दानाशेर में वह जगह जहां पशुओं के इलाज और उनकी भोजन व्यवस्था की गई थी और नेताजी जायजा लेने पहुंचे थे।
नेताजी ने स्वागत जुलूस निकालने से किया इनकार
अकाल के कारण जो हालात बन पड़े थे उसके कारण नेताजी बेहद दुखी थी। जब वे हिसार रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो लोगों ने भव्य स्वागत की तैयारी कर रखी थी। खद्दर का धोती कुर्ता और सिर पर टोपी पहने नेताजी के स्टेशन पर पहुंचते ही लोग गर्मजोशी से भर गए और फूल मालाएं पहनाना शुरू कर दिया। लोगों ने नेताजी से कहा कि वे ठाकुरदास भार्गव के निवास स्थान तक स्वागत जुलूस निकालाना चाहते हैं। मगर नेता जी ने कहा कि यह अवसर ठीक नहीं है। इसलिए सादे तौर ही चीजों को करना ठीक रहेगा। नेताजी ने कहा कि अकाल के कारण यह शोभा नहीं देगा। उनकी यह बातें ग्राम सेवक अखबार में प्रकाशित भी हुई।