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कोरोना काल में ऐसे की ड्यूटी, पांच साल के बेटे को मधुमक्खी ने काटा तो मां ने वीडियो कॉल पर कराया था चुप

हिसार सिविल अस्पताल में आई स्पेशलिस्ट डा. रिपनजीत कौर की यह कहानी है। 10 दिन आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी तो 14 दिन क्वारंटाइन रहना पड़ता था। पांच साल का बेटा उनके बिना सोता नहीं था। रात को वीडियो कॉल पर उसे सुलाती थीं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 04:42 PM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 04:42 PM (IST)
कोरोना काल में ऐसे की ड्यूटी, पांच साल के बेटे को मधुमक्खी ने काटा तो मां ने वीडियो कॉल पर कराया था चुप
हिसार सिविल अस्पताल में आई स्पेशलिस्ट डा. रिपनजीत कौर और उनका बेटा नमन।

हिसार [सुभाष चंद्र]। कोरोना ने दूनिया की अर्थव्यवस्था गिराने के साथ-साथ आम लोगों के जनजीवन पर भी गहरा असर डाला था। पिछले वर्ष मार्च महीने की शुरुआत में कोरोना केस बढ़े तो डॉक्टरों की आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटियां लगाई गई थीं। जो डॉक्टर आइसोलेशन वार्ड में लगातार 10 दिन ड्यूटी देते थे उन्हें अगले 14 दिन तक क्वारंटाइन होना पड़ता था।

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ऐसे में सभी चिकित्सकों ने अपने परिवारों से दूर रहकर आइसोलेशन वार्ड में 100-100 कोरोना मरीजों बीच रहकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ी। लेकिन सबसे अधिक समस्या महिला चिकित्सकों को आई थी। इन्हीं में से एक चिकित्सक हैं सिविल अस्पताल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. रिपनजीत कौर। डा. रिपनजीत पिछले वर्ष से सिविल अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी देती आ रही हैं। अब दोबारा उनकी ड्यूटी आइसोलेशन वार्ड में लगी है। डा. रिपनजीत कौर ने कोरोना काल में कोरोना से लड़ने में तो अहम भूमिका निभाई ही है। कोरोना से लड़ाई के दौरान घर की जिम्मेवारियों को छोड़कर कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान किस तरह से मैनेज किया और इस मुश्किल वक्त में क्या सीखने को मिला, ये बातें साझा की।

डा. रिपनजीत कौर की कहानी उन्हीं की जुबानी

पिछले वर्ष मार्च की शुरुआत में आइसोलेशन वार्ड में मेरी भी ड्यूटी लगी थी। उस दौरान लगातार 10 दिन ड्यूटी देनी होती थी। अगले 14 दिन क्वारंटाइन में रहना होता था। इस तरह से पूरे 24 दिन परिवार से दूर रहती थी। मेरा पांच साल का बेटा है नमन। बेटे को लेकर सबसे अधिक मुश्किलें सामने आईं। हालांकि इस मुश्किल समय में परिवार के सपोर्ट से निकाला। सबसे अधिक तकलीफ उस समय महसूस हुई जब बेटा नमन मेरे बिना सोता नहीं था। करीब 15 दिन तक हर रात सोने के लिए मां-मां पुकारता, लेकिन मैं उस समय आइसोलेशन वार्ड में होती थी।

बेटा बिलख रहा था, ड्यूटी छोड़ नहीं सकती थी

उस दौरान वीडियो कॉल का सहारा लिया। फोन के जरिये ही बेटे को सुलाया। एक बार तो ऐसा हुआ कि रात 9 बजे के करीब बेटे को मधुमक्खी ने काट लिया। उस दौरान बेटे का हाथ सूज गया, बहुत ज्यादा रो रहा था। ड्यूटी छोड़कर भी नहीं जा सकते थे, तो वीडियोकॉल के जरिये ही बच्चे को संभाला। उस दौरान महसूस हुआ था कि काश ये कोरोना ना होता तो अपने बच्चे के पास होती। जब भी बेटे को पता लगता है कि मेरी आइसोलेशन में डयूटी लगने वाली है यह यह बात सुनते ही रो पड़ता है।

कोरोना काल ने बहुत कुछ सिखाया भीडा. रिपनजीत ने बताया कि हालांकि कोरोना काल के दौरान मुश्किल समय निकाला है, लेकिन इस काल ने बहुत कुछ सिखाया भी है। मुश्किल समय में मैनेज करना, चिकित्सा से जुड़े कई कार्य सैंपलिंग, क्वारंटाइन, पीपीई किट आदि नई बातें सीखने को भी मिली।

अपनों ने दूरी बना ली थी

उस दौरान सर्वप्रथम लोगों ने चिकित्सकों से ही दूरी बना ली थी। नाते-रिश्तेदार भी पास आने से घबराने लगे थे, उन्हें डर था कि चिकित्सक ही सबसे अधिक मरीजों के संपर्क में रहते हैं। इसलिए चिकित्सकों से ही संक्रमण का अधिक खतरा है। डा. रिपनजीत कौर ने बताया कि ससुर रतनलाल कामरा रिटायर्ड चीफ फार्मासिस्ट हैं। सास उर्मिल कामरा रिटायर्ड स्टाफ नर्स हैं। पति डा. अंकुर कामरा भी सुखदा अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट हैं।

पति हो गए थे कोरोना संक्रमित

डा. रिपनजीत बताती हैं कि चिकित्सक फैमिली है, तो कोरोना नियमों का पालन भी कड़ाई से होता है। लेकिन पिछले वर्ष नवंबर महीने में कोरोना जब पीक पर था। उस दौरान पति सहित परिवार के कई सदस्य संक्रमित हो गए थे। उस दौरान उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाया था। वो बड़ा मुश्किल समय था। सास और ससुर दोनों डायबिटिक मरीज हैं तो उनकी चिंता अधिक थी।

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