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आंदोलन : इधर एमएसपी पर कानून के लिए तकरार, उधर सरसाें के एमएसपी को ही नहीं पूछ रहे किसान

जहां एक तरफ एमएसपी पर कानून को लेकर तकरार चल रही है ताे दूसरी तरफ इन दिनों मंडियों में सरसों के एमएसपी को ही किसान नहीं पूछ रहे हैं। खरीद सीजन में सरसों के भाव में तेजी के कारण एमएसपी पर फसल बेचना घाटे का सौदा बना हुआ है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 26 Mar 2021 05:54 PM (IST)Updated: Fri, 26 Mar 2021 05:54 PM (IST)
आंदोलन : इधर एमएसपी पर कानून के लिए तकरार, उधर सरसाें के एमएसपी को ही नहीं पूछ रहे किसान
खुले बाजार में सरसों का भाव एमएसपी से 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा

हिसार/बहादुरगढ़, जेएनएन। एक तरफ एमएसपी पर कानून को लेकर तकरार चल रही है ताे दूसरी तरफ इन दिनों मंडियों में सरसों के एमएसपी को ही किसान नहीं पूछ रहे हैं। खरीद सीजन में सरसों के भाव में तेजी के कारण एमएसपी पर फसल बेचना घाटे का सौदा बना हुआ है। इसलिए सभी किसान बाजार भाव पर व्यापारियाें को ही सरसों बेच रहे हैं। वजह यह है कि एमएसपी तो 4650 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन बाजार भाव पांच हजार रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा है। ऐसे में किसानों को फायदा हो रहा है।

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हालांकि इसका बोझ आखिर में उपभोक्ता पर पड़ेगा। सरसों के तेल के दाम इस समय 130 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा चल रहे हैं। पांच माह पहले तक ये 100 रुपये से कम थे। मगर सर्दियों में इस बार सरसाें के दाम बढ़े तो खरीद सीजन में भाव ज्यादा कम नहीं हुए। अब सरसों का भाव ज्यादा है तो जाहिर सी बात है कि जब इसका तेल बाजार में आएगा तो उसके भाव भी ज्यादा ही होंगे।

ज्यादा भाव मिल रहे तो कम पर क्यों बेचे

आसौदा के किसान राजबीर ने बताया कि सरकार द्वारा सरसों का जो समर्थन मूल्य तय किया गया है, उससे ज्यादा भाव मिल रहे हैं। व्यापारियों की ओर से उनकी फसल 5100 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक भाव पर खरीदी गई। वहीं कानाैंदा के जोगेंद्र सिंह ने बताया कि उसकी फसल के दाम 5150 रुपये प्रति क्विंटल मिले। वहीं अनाज मंडी एसोसिएशन के प्रधान प्रदीप गुप्ता ने बताया कि आयातित खाद्य तेलों के दाम भी कुछ समय से बढ़ गए हैं। उसी का असर सरसाें के भाव पर पड़ रहा है।

इस बार सरकारी एजेंसी को सरसों मिलना मुश्किल

यहां की अनाज मंडी में सरसों की सरकारी खरीद का जिम्मा इस बार भी हैफेड को ही दिया गया, लेकिन भाव ही एमएसपी से ज्यादा है। ऐसे में खरीद एजेंसी ने भी तैयारी छोड़ दी। यदि भाव ज्यादा न होता तो वीरवार से खरीद शुरू होनी थी, मगर अब तो बाजार मूल्य पर ही किसान अपनी फसल बेच रहे हैं। हैफेड के कर्मचारी सुभाष ने बताया कि मुख्यालय की ओर से बाकायदा खरीद के लिए पत्र जारी किया जाता है। मगर इस बार भाव ही ज्यादा है तो यह पत्र भी नहीं आया। बाकी कुछ तैयारी भी करने की जरूरत नहीं समझी गई।


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