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हरियाणा की छोरी मनु ने कॉमनवेल्थ गेम्स में जीता गोल्ड, खुशी से उछला परिवार

हरियाणा के झज्जर की मनु भाकर ने कॉमनवेल्थ गेम्स में वूमेन्स 10 मीटर एयर पिस्टल में देश को सोना दिलाया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 08 Apr 2018 09:12 AM (IST)Updated: Mon, 09 Apr 2018 06:11 PM (IST)
हरियाणा की छोरी मनु ने कॉमनवेल्थ गेम्स में जीता गोल्ड, खुशी से उछला परिवार
हरियाणा की छोरी मनु ने कॉमनवेल्थ गेम्स में जीता गोल्ड, खुशी से उछला परिवार

झज्जर [अमित पोपली]। कॉमनवेल्थ गेम्स में बेटी के गोल्ड मेडल जीतने की खबर जैसे ही मनु भाकर के परिवार वालों को मिली वह खुशी से झूम उठे। पारिवारिक सदस्यों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर बेटी की जीत की खुशी मनाई। उनके घर पर बधाई देने वालों का भी तांता लगा हुआ है। अब सबको बेटी के घर आने का इंतजार है।हरियाणा की इस बेटी के प्रदर्शन से पूरा राज्य गदगद है। 16 साल की मनु भाकर ने कॉमनवेल्थ गेम्स में वूमेन्स 10 मीटर एयर पिस्टल में देश को सोना दिलाया है।

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इससे पूर्व,  मनु ने गुवादालाजारा (मैक्सिको) में इंटरनेशनल शूटिंग स्पॉर्ट्स फेडरेशन (ISSF) विश्वकप में दो गोल्ड मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया था। कर दिया है। उसने इस विश्व कप में 10 मीटर एयर पिस्टल (महिला) में गोल्ड जीतकर इतिहास रचा। वो उम्र में शूटिंग विश्व कप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली शूटर भी हैं। इसके अलावा मनु ने इसी स्पर्धा में मिक्सड इवेंट्स में ओम प्रकाश मिथरवाल के साथ मिलकर 10 मीटर एयर पिस्टल (मिक्स इवेंट) में सोने का तमगा हासिल किया।

अपने पदकों के साथ मनु भाकर व हिना सिद्धू।

मनु के पिता कहते हैं कि मुक्केबाजी, स्केटिंग, कबड्डी, कराटे, लॉन टेनिस आदि खेलों में बढ़िया प्रदर्शन कर चुकी मनु ने अपने साथ हुई एक बेईमानी के बाद निशानेबाजी से नाता जोड़ा था। शायद उसे भी नहीं पता था कि निशानेबाजी उसे यह मुकाम दिला देगी। उसे मूलभूत सुविधाएं दिलाने के लिए पिता रामकिशन और माता सुमेधा ने कही कोई कसर नहीं छोड़ी।

पिता ने घर में ही बनवाई शूटिंग रेंज

उम्र महज 16 साल, पढ़ाई 11वीं मेडिकल स्ट्रीम से और निशाना अचूक मेधा की धनी इस बेटी ने निशानेबाजी के शौक को जुनून बनाया तो पिता ने उससे एक कदम बढ़कर घर पर ही शूटिंग रेंज बना दी। बेटी को निशानेबाज जसपाल राणा से प्रशिक्षण दिलाया तो बेटी ने एक के बाद एक स्वर्ण पदकों की झड़ी लगा दी। जसपाल राणा से गुर सीखने वाली मनु अपने स्कूल में बनाई हुई रेंज में भी कोच नरेश एवं सुरेश से प्रशिक्षण लेती हैं।

ओलंपिक में सोना जीतने का है सपना

धुन की पक्की झज्जर जिले के गोरिया गांव की बेटी मनु भाकर ने जीत के इसी क्रम को बरकरार रखते हुए अब मेक्सिको में विश्व कप के दौरान दो गोल्ड मेडल जीतकर साबित कर दिया है कि न सिर्फ उसके लक्ष्य बड़े हैं, बल्कि वह उसे हासिल करने की दिशा में भी सधे कदम से बढ़ रही है। बेटी की इस सफलता से परिवार वाले गदगद हैं और बेटी भी खुश है मगर उसकी मंजिल तो ओलंपिक में सोना हासिल करना है।

परिवार करता है पूरा सपोर्ट

एक मेंटर के रूप में अपना 90 फीसद समय बेटी पर लगाने वाले पिता राम किशन भाकर के मुताबिक मनु वहीं करती है, जो उसे पसंद है। बात चाहे खान-पान की हो या खेल के चयन की। हम लोग भी उस पर अपना विचार नहीं थोपते और उसे अपने फैसले की दिशा में बढ़ने के लिए सपोर्ट करते हैं ताकि वह अपना सर्वश्रेष्ठ दे सके। करीब दो साल से निशानेबाजी सीख रही मनु ने बहुत कम समय में कई राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं।

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चंचल और शरारती भी है मनु

मनु भाकर के साथ पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि खेल के दौरान बेशक ही वह कितनी संजीदा हो जाती हो। लेकिन दोस्तों के बीच में उसका स्वभाव चंचल और शरारती छात्रा जैसा है। कभी चुन्नी को बांध देना तो कभी प्रैक्टिस के बाद थक-हारकर फिजिक्स की कक्षा में सो जाने वाली मनु भाकर की उपलब्धियों पर इन सभी को गर्व हैं। छात्राओं का कहना है कि मनु ने यह कर दिखाया है कि अगर परिवार एक बेटी पर विश्वास करता है तो वह अपने गांव, शहर या प्रदेश और देश ही नहीं बल्कि सात समुद्र पार भी बेहतर करके दिखा सकती है।

पढ़ाई में भी होनहार

साथी छात्राओं का कहना है कि मनु पढ़ाई में भी होनहार है। ऐसी कोई परिस्थिति नहीं होती कि जिसका उसके पास जवाब नहीं हो। बस अब इंतजार है तो उसके वापिस आने का। वह आए और हम सभी मिल जुलकर काफी बातें करें। हां, उसे गांव का देशी खाना खूब पसंद है। उसकी खास इच्छा रहती थी कि सभी साथी छात्राएं मिल-जुल कर लंच ब्रेक में सांझा भोजन करें।

किसी परिस्थिति से नहीं घबराती मनु

माता सुमेधा भाकर के मुताबिक मैं अपनी बेटी के बगैर अधूरी हूं। बेशक ही वह अभी 16 साल की है। लेकिन वह इस हद मजबूत है कि किसी भी परिस्थिति से घबराती नहीं है। सरलता से अपनी बात कह देने की धनी मनु जब साथ में होती है तो वह पूरा लाड करती है। उसकी इच्छा रहती है कि मैं उसे हाथ से खाना खिलाऊं। जब वह प्रैक्टिस कर रही हो तो उसके साथ ही रहूं। हां, भाई अखिल के साथ उसका जितना अधिक स्नेह है। उतना झगड़ा भी करती है। मौसी अनिता के साथ उसका खास लगाव है। बचपन से उसकी मौसी ने मनु का खास ध्यान रखा। जिसे वह भी महसूस करती है।

मनु ने वर्ल्ड कप में भी जीता था गोल्ड

- मनु भाकर ने पिछले महीने मेक्सिको में हुई इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन (आईएसएसएफ) विश्वकप निशानेबाजी में 2 गोल्ड जीते थे।

- महज 16 साल की उम्र में वर्ल्ड चैम्पियन बनने वाली वह पहली शूटर हैं।

- मेक्सिको में उन्होंने पहले 10 मीटर एयर पिस्टल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीता। इसमें उन्होंने दो बार की वर्ल्ड चैम्पियन मेक्सिको की एलेक्जेंड्रा जावाला को पीछे छोड़ा था। इसके बाद मिक्सड इवेंट में गोल्ड अपने नाम किया।


एशियन चैम्पियनशिप में जीता था सिल्वर

- मनु ने पिछले साल दिसंबर में जापान में हुई एशियन चैम्पियनशिप में सिल्वर जीता था।

- दो साल पहले शूटिंग कॅरियर शुरू करने वाली मनु ने 2017 में दो नेशनल रिकॉर्ड भी बनाए थे।


मुक्केबाजी और मार्शल आर्ट में भी माहिर

- मनु पहले मुक्केबाजी और मणिपुर का मार्शल आर्ट थांग टा भी करती रही हैं।

- मनु का कहना है कि चोट लगने के बाद मां ने मुक्केबाजी करने से रोक दिया था। इसके बाद उन्होंने निशानेबाजी में हाथ आजमाना शुरू किया।

बॉक्सिंग में भी मेडल

- स्कूल में रहते हुए मनु ने बॉक्सिंग, तैराकी कई खेलों में हाथ आज़माया।

- बॉक्सिंग में तो मनु लगातार मेडल जीता करती थीं।

- चोट लगने के बाद मनु ने बॉक्सिंग छोड़ी तो उन्हें मणिपुर की मार्शल आर्ट थांग टा का चस्का लग गया और इसके बाद जूडो

- फिर दो साल पहले जब उनके नए स्कूल में मनु के पापा ने छात्रों को शूटिंग करते देखा तो पिता ने बेटी से कहा कि क्यों न इसे भी आज़मा के देख लिया जाए

- बस 10-15 दिन के अंदर ही मनु ने कमाल करना शुरू कर दिया। जल्द ही राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जीत का सफ़र उन्हें राष्ट्रमंडल खेलों तक लेकर आया

- इस कामयाबी के पीछे मनु की मेहनत तो है ही, लेकिन उनके माँ-बाप की लगन भी शामिल है


पिता ने छोड़ दी नौकरी

- वैसे तो मनु के पिता रामकिशन भाकर मरीन इंजीनियर हैं, लेकिन अब जब बेटी बड़ी शूटर हो गई है तो मनु को उनके साथ और मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है, इसलिए उन्होंने नौकरी ही छोड़ दी

प्रैक्टिस करने में आती थी दिक्कत

- हर खिलाड़ी के सफ़र की अपनी मुश्किलें होती हैं, मनु को भी झेलनी पड़ी. पिस्टल लेकर जब मनु प्रैक्टिस करने जाती तो उसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आम पिस्टल लेकर जाने में काफ़ी दिक़्क़त होती, चाहे वो लाइसेंसी पिस्टल ही थी

- नौकरी छोड़ रामकिशन भाकर बेटी की दिक़्क़तों को दूर करने में लग गए। मनु 16 साल की हैं और उनके बालिग होने में दो साल और बचे हैं।

- बेटी के लिए विदेशी पिस्टल ख़रीदने के लिए भी पिता को एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा था। इस क्रम में मनु की टीचर माँ सुमेधा ज़िंदगी भी एकदम बदल गई।

- इस तरह की दिक़्क़तें और खेल के दौरान के तनाव को दूर रखने के लिए मनु योग और मेडिटेशन करती हैं. मेडिटेशन का सिलसिला शूटिंग कैंप में ही नहीं घर पर भी जारी रहता है।


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