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अब डॉक्‍टर से पहले सॉफ्टवेयर बताएगा दवा का साइड इफेक्‍ट, ऐसे करेगा काम

पंजाब सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एवं हिसार के हरिता गांव निवासी डा. महेश कुलडिय़ा ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया है जो दवा में मौजूद हर केमिकल की पहचान उजागर करेगा

By manoj kumarEdited By: Published: Tue, 05 Mar 2019 11:48 AM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2019 12:54 PM (IST)
अब डॉक्‍टर से पहले सॉफ्टवेयर बताएगा दवा का साइड इफेक्‍ट, ऐसे करेगा काम
अब डॉक्‍टर से पहले सॉफ्टवेयर बताएगा दवा का साइड इफेक्‍ट, ऐसे करेगा काम

हिसार [संदीप बिश्नोई] दवाओं को बनाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले केमिकल नुकसानदायी हैं या नहीं यह अब डॉक्‍टर से पहले सॉफ्टवेयर बताएगा। दवाएं असरकारक हों तो यह जरूरी नहीं कि वो नुकसानदायी नहीं हैं क्‍योंकि एक बीमारी ठीक होने पर दवा में मौजूद हानिकारक केमिकल दूसरे बीमारी को न्‍यौता देते हैं। वजह, केमिकल की प्योर फोर्म का निर्धारण नहीं होना है। बहुत सारे ऐसे रसायन हैं, जिनके नाम एक जैसे होते हैं। ऐसे में सही रसायन के साथ गलत रसायन भी दवाइयों के माध्यम से हमारे शरीर में चले जाते हैं।

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लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। राहत वाली खबर है। बठिंडा स्थित पंजाब सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एवं हिसार के हरिता गांव निवासी डा. महेश कुलडिय़ा ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जो दवा में मौजूद हर केमिकल की पहचान उजागर करेगा। दवाई को कैसे संगठित किया जाए, यह सॉफ्टवेयर बिलकुल सही तरीके से बता सकता है। ध्यान रहे कि दुनियाभर के वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई सॉफ्टवेयर नहीं बन पाया था।

डा. महेश के अनुसार ऐसी कई दवाइयां हैं, जिन्हें खाने से नुकसान होता है। इसका अंदाजा डॉक्टर को भी नहीं होता, क्योंकि उन्हें केवल साल्ट की जानकारी होती है। उदाहरण के तौर पर गर्भवती महिला को थेलिडोमाइड ड्रग दी जाती है। इस ड्रग से महिला को शांति तो मिलती है और उसे नींद भी आ जाती है। लेकिन इस दवा में रसायन के दो रूप होते हैं और दूसरा रूप जहर के समान होता है। इसका साइड इफेक्ट ये होता है कि गर्भ में भ्रूण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई बार इसके कारण उसके हाथ-पैर पूरी तरह नहीं बन पाते हैं।

यह है मंकी जी साफ्टवेयर

मंकी जी यानी मॉलिक्यूलर यूनिक-की जनरेटेर। यह टूल बिल्‍कुल सही तरीके से यह बताता है कि दवा को बनाने के लिए रसायन के कौन से रूप का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे पहले आइयूपीएसी नामक संस्था ने एक टेक्निकल टूल बनाया था लेकिन वह भी बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाया था। ऐसे में जब कंपनियों में दवा बनाई जाएगी तो सभी तरह के रसायनों की पहचान बता दवाई के रैपर पर सभ्‍ाी रसायनों के नाम लिखे जाने से फायदा होगा। हालांकि आम आदमी खुद से ये नहीं जान पाएगा कि रसायन हानिकारक कौनसा है, इंटरनेट के माध्‍यम से या डॉक्‍टर की सलाह के आधार पर जरूर फायदा मिलेगा।


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