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साहित्य से मधुकांत को इतना लगाव, 10 साल पहले ही किताबें लिखने के लिए ले लिया रिटायरमेंट

रोहतक के सांपला के रहने वाले मधुकांत पिछले पांच साल से रोहतक के माडल टाउन कालोनी में रहते हैं। मधुकांत ने साहित्य से जुड़ने का किस्सा साझा किया है। इन्होंने बताया कि 1970 में राजकीय हाईस्कूल दुजाना में पढ़ता था। एक दिन स्कूल की लाइब्रेरी में पहुंचा।

By Naveen DalalEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 02:00 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 02:00 PM (IST)
साहित्य से मधुकांत को इतना लगाव, 10 साल पहले ही किताबें लिखने के लिए ले लिया रिटायरमेंट
1970 में मुंशी प्रेमचंद की पुस्तक पढ़कर साहित्य से हुआ प्यार, 175 पुस्तक लिख दीं

रोहतक, अरुण शर्मा। इसे अनूप बंसल मधुकांत की साहित्य के प्रति दीवानगी ही कहेंगे। जागते-सोते इन्हें सिर्फ साहित्य ही नजर आता है। साहित्य के प्रति ऐसा लगाव रहा कि दिल्ली में शिक्षक पद से 10 साल पहले ही रिटायरमेंट ले लिया। फिर रम गए उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, लघु कथाओं को लिखने में। 62 वर्षीय मधुकांत का जीवन एक घटना ने बदल दिया और फिर साहित्य साधना में रम गए। अभी तक 175 पुस्तकें लिख चुके हैं और पांच बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं।

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पांच बार बड़े सम्मान मिले, आखिरी सांस तक साहित्य की सेवा का सपना पाले हुए हैं

मूल रूप से सांपला के रहने वाले मधुकांत पिछले पांच साल से रोहतक के माडल टाउन कालोनी में रहते हैं। मधुकांत ने साहित्य से जुड़ने का किस्सा साझा किया है। इन्होंने बताया कि 1970 में राजकीय हाईस्कूल दुजाना में पढ़ता था। एक दिन स्कूल की लाइब्रेरी में पहुंचा तो शिक्षक विद्यावर्त शास्त्री के हाथ में मुंशी प्रेम चंद की किताब देखी। उस किताब को मैं मांगकर पढ़ने के लिए घर लेकर आया। दूसरे दिन वह पुस्तक वापस लौटा दी। शिक्षक शास्त्री ने हैरानी जताई कि दूसरे दिन कैसे किताब लेकर आया, उन्हें लग रहा था कि किताब नहीं पढ़ी। जब उन्होंने कहा कि किताब क्यों नहीं पढ़ी तो मैंने बता दिया कि यह किताब मैंने पढ़ ली। फिर शिक्षक ने कई सवाल पूछे तो तय हो गया कि मैंने एक दिन में ही किताब पढ़ ली है। शिक्षक विद्यावर्त इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लाइब्रेरी की चाबी पकड़ा दी और कहा कि इसे आप ही संभालें। फिर तो हर रोज नई किताबें लाना और पढ़ना यह दिनचर्या में शुमार हो गया। यहीं से चाव बढ़ता गया।

रक्तदान के प्रति जागरूकता लाने वाले पहले साहित्यकार

मधुकांत साहित्य की ताकत बताते हुए कहते हैं कि मुझे गर्व होता है कि रक्तदान के प्रति जागरूकता लाने के लिए मैंने काम किया। साहित्य का असर यह रहा कि लोग रक्तदान के प्रति जागरूक हुए। इन्होंने जय रक्तदाता(कविता संग्रह), जय रक्तशाला(कविता संग्रह), स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति(कविता संग्रह), रक्तदान उत्सव(संस्मरण), रक्तदान महादान(बाल नाटक), एड्स का भूत(लघु कथाएं), अनेमियां से जंग(बाल नाटक), रक्त मंजरी(लघु कथाएं), रक्तदान उत्सव(संस्मरण), बूंद-बूंद रक्त(कविता संकलन), लाल चुटकी(लघु कथा संग्रह), रक्तनारायण कथा(कथा), लाल सोना(कहानी संकलन), खून के रिश्ते(नाटक संकलन), गूगल बाय(उपन्यास), छोरा गूगल(हरियाणवी उपन्यास) किताबें सिर्फ रक्तदान के प्रति जागरूकता लाने के लिए लिखीं। इनके अतिरिक्त भी कहानी, नाटक, उपन्यास, कविताएं, लघु कथाएं लिख चुके हैं।

डबल पार्क में खोल दी लाइब्रेरी, पढ़ने वालों की संख्या कम

साहित्य के प्रति युवा पीढ़ी की दिलचस्पी बेहद कम होने पर चिंता जताई। इन्होंने बताया कि पत्नी कांता बंसल व बच्चों पूजा, विकास व पुनीत ने उन्हें हर कदम पर सहयोग किया। यही कारण रहा कि 25 साल दिल्ली में शिक्षक पद से सेवा देने के बाद साल 2000 में स्वेच्छा से नौकरी छोड़ दी। 1980 में गांव की ओर उपन्यास लिखकर प्रसिद्धि पाई। भारत-पाकिस्तान बंटवारे और हरियाणा में हुए आरक्षण आंदोलन को लेकर इन्होंने एक और त्रादसी पुस्तक दो साल पहले लिखी। युवा पीढ़ी तो साहित्य के प्रति लगाव लाने के लिए कहा कि प्रत्येक जिले में जिलास्तर पर एक बड़ी लाइब्रेरी होनी चाहिए। जिससे साहित्य न सही लेकिन अभिरूचि के हिसाब से युवा पीढ़ी लाइब्रेरी जाना सीखेगी। इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए खुद के प्रयासों से माडल टाउन स्थित डबल पार्क में लाइब्रेरी खोल दी। मगर यहां कम ही युवा आते हैं।

रोहतक के सांसद डा. अरविंद शर्मा को खुद की लिखी किताब भेंट करते हुए अनूप बंसल मधुकांत

मधुकांत को यह मिले सम्मान

मधुकांत को हरियाणा साहित्य अकादमी ने तीन बार पुस्तक कृति पुरस्कार से सम्मानित किया है। इसमें प्रति सम्मान 21-21 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि अकादमी ने दी। साल 2010 में इन्हें बाबू बाल मुकुंद साहित्य पुरस्कार व दो लाख रुपये की सम्मानित राशि मिली। 2019 में महाकवि सूरदास आजीवन साहित्यक साधना सम्मान मिला। पुरस्कार राशि बतौर इन्हें पांच लाख रुपये मिले। मधुकांत कहते हैं कि मेरा तो अब यही ध्येय है कि आखिरी सांस तक साहित्य की सेवा करूं।


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