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लुवास में कुलपति पद का विवाद पहुंच सकता है हाईकोर्ट

लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर चयन को लेकर चल रहे विवाद में नये तथ्य सामने आया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 09:00 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 09:00 PM (IST)
लुवास में कुलपति पद का विवाद पहुंच सकता है हाईकोर्ट
लुवास में कुलपति पद का विवाद पहुंच सकता है हाईकोर्ट

जागरण संवाददाता, हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर चयन को लेकर चल रहे विवाद में नये तथ्य सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देश हैं कि बड़े पदों पर जब भी भर्तियां हो उनका विज्ञापन जरूर निकलना चाहिए। शिकायतकर्ताओं को शक है कि लुवास प्रशासन ने इस भर्ती के लिए विज्ञापन नहीं निकाला है। अगर विज्ञापन नहीं निकाला गया था तो 21 आवेदन विश्वविद्यालय प्रशासन और बोर्ड तक कैसे पहुंच गए, यह सवाल उठाया जा रहा है। इसके साथ ही सर्च कमेटी बनाई थी या नहीं। क्योंकि सर्च कमेटी होती तो वह आवेदकों की पूरी जानकारी पटल पर रखती। सिर्फ यह नहीं बल्कि दूसरे सदस्यों को इन आवेदकों के बारे में अधिक जानकारी भी नहीं थी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डीडीजी डा बीएन त्रिपाठी को भी कुछ नहीं बताया गया। जबकि तकनीकि सदस्य के रूप में डा. बीएन त्रिपाठी पशु चिकित्सा अनुसंधान क्षेत्र में देश के वरिष्ठतम अधिकारी हैं इसके बावजूद उनके माइक को म्यूट रखा गया। जबकि लुवास आईसीएआर से वित्त पोषित भी है। इसके बावजूद उन्हें नहीं सुना गया। यही कारण है कि उन्होंने बैठक के ठीक बाद आपत्ति दर्ज कराई। इन्हीं सवालो को लेकर लुवास के पूर्व प्रोफेसर ने मोर्चा खोल दिया है। अगर इस मामले को कोई सख्त कदम नहीं उठाया जाता है तो वह इस मामले को अब हाईकोर्ट में खींचने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी मानें तो लुवास में कुलपति पद के लिए चयन प्रकिया में नियमों को पूरी तरह से दरकिनार किया गया है। ऐसा पहली बार है जब कुलपति की नियुक्ति के लिए बोर्ड की बैठक आनलाइन तरीके से हुई थी।

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कुलपति पद की दौड़ में थे कई वरिष्ठ विज्ञानी

इस मामले में अभी तक मिली जानकारी के अनुसार कुलपति पद की दौड़ में कई वरिष्ठ विज्ञानी थे। इसमें कुछ तो सत्ताधारी संगठन की विचारधारा से भी जुड़े थे तो कुछ लोग पहले ही कुलपति की दौड़ में रह चुके हैं। ऐसे में यह निर्णय अब किसी के भी गले से नहीं उतर रहा है। सिर्फ यह नहीं बल्कि बोर्ड की बैठक में जिस प्रकार से सदस्यों के अधिकारों का हनन किया गया उससे साफ दिखाई देता कि कुलपति पद पर चयन के लिए काफी बड़े स्तर से नियमों को दरकिनार किया गया है।

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मार्च 2021 से कुलपति पद था रिक्त

लुवास में पूर्व कुलपति डा. गुरदियाल सिंह का कार्यकाल 27 मार्च 2021 को समाप्त हो गया था। इसके बाद उन्हें एक्सटेंशन न देकर कार्यकारी कुलपति के रूप में जिम्मेदारी आगामी आदेशों तक के लिए दी गई थी। यह आगामी आदेश नौ माह तक नहीं हुए। इस दौरान कुलपति की नियुक्ति के लिए पांच बार बोर्ड बैठक बुलाई गई मगर बैठक आयोजित नहीं हो सकी। इससे यह साफ दिखता है कि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए कोई स्पष्टता और पारदर्शिता नहीं थी। जिसका असर 20 जनवरी को बोर्ड बैठक में भी दिखाई दिया।


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