पुलवामा की तरह ही 2004 में मारुति में आरडीएक्स भरकर किया था आत्मघाती का हमला
इस वर्ष 14 फरवरी को पुलवामा अटैक की तरह ही बारामुल्ला पतन के पास 200
सुभाष चंद्र, हिसार : इस वर्ष 14 फरवरी को पुलवामा अटैक की तरह ही बारामुल्ला पतन के पास 2004 में हमारे काफिले पर आतंकवादियों ने हमला किया था, जिसके कारण उन्हें हैड इंजरी के साथ पांव में चोट आई थी। यह जानकारी जीजेयू के मनोविज्ञान विभाग की एल्यूमनाई मीट में उपस्थित हुई लेफ्टिनेंट कर्नल डा. बबीता ने दी। मनोविज्ञान विभाग की ओर से वर्ष 1998-2000 बैच के पूर्व छात्रों के लिए एल्यूमनाई मीट का आयोजन किया गया। एल्यूमनाई मीट में चौधरी रणबीर सिंह सभागार में पहले सभी का परिचय हुआ। इस दौरान कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार, विभागाध्यक्ष प्रो. राकेश बहमनी, प्रो. संदीप राणा सहित विभाग का अन्य स्टाफ उपस्थित रहा। इस दौरान ऑस्ट्रेलिया, देहरादून सहित अन्य शहरों में जॉब कर रहे पूर्व छात्र समारोह में पहुंचे थे।
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एल्यूमनाई मीट में उपस्थित हुई लेफ्टिनेंट कर्नल ने दैनिक जागरण संवाददाता से बातें सांझा करते हुए बताया कि जीजेयू से मनोविज्ञान विभाग की डिग्री करने के बाद उन्होंने एसएसबी पास किया। जिसके बाद वो सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर सिलेक्ट हुई। 2004 की बात है उनकी पोस्टिग श्री नगर में बारामुल्ला पत्तन के पास थी। उसी दौरान सेना का श्री एक काफिला वहां से गुजर रहा था वो भी सेना की एक बस में अन्य अधिकारियों के साथ सवार थे, इसी दौरान आरडीएक्स से भरी एक मारुति उनकी बस से टकराई। आरडीएक्स के कारण ब्लास्ट हुआ तो बस 20 फीट उंची उड़ी, जिसके कारण कई सैनिक घायल हो गए थे, उसे भी हैड इंजरी हुई।
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एल्यूमनाई ने हॉस्टल, कैंटीन, लाइब्रेरी में किया भ्रमण
जीजेयू में मनोविज्ञान विभाग के पूर्व छात्रों ने जीजेयू के गर्ल्स व बॉयज हॉस्टल, कैंटीन, लाइब्रेरी, चौधरी रणबीर सिंह सभागार, गेस्ट हाउस, फेकेल्टी हाउस सहित पूरे विश्वविद्यालय का दौरा किया। पूर्व छात्रों का ग्रुप जिसमें डा. शिल्पा जैन, ममता सिगला, रूचि चुग, सुमनलता, निर्मल कौशिक ने बताया उनका एक अलग ग्रुप था। शिल्पा ने बताया कि एक दिन एग्जाम के दौरान मुझे बहुत टेंशन थी। लेकिन मेरे पास नोट्स नहीं थे और मेरी दोस्त ने मुझसे नोट्स शेयर किए। लेकिन आज वहीं बात मेरे लिए एक मीठी याद बन गई। पुरानी हॉस्टल की यादों के बारे में कहां कि खाने में खाना ढूंढना पड़ता था, हॉस्टल की दाल में दाल ढूंढनी पड़ती थी, मेस की रोटियों पर जैम बटर लगाकर खाते थे। वो सभी यादें आज भी ज्यों की त्यों है, ऐसा लगता है कल की ही बात हो।
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पहले तो सूखे झाड़ थे यहां, लेकिन अब तो हरियाली ही हरियाली है
पूर्व छात्राओं ने बताया कि पहले तो एक कस्तूरबा हॉस्टल था, लेकिन अब तो यहां आठ हॉस्टल बन गए है। वहीं ग्रीनरी देख के खुश हुए पूर्व छात्रों ने बताया कि 2000 में तो यहां उजड़ा चमन था, लेकिन अब तो हर जगह हरियाली ही हरियाली है। पूर्व छात्रों ने मौजूदा छात्रों के साथ इंटरेक्शन किया और उन्हें अपने फोन नंबर भी उपलब्ध करवाए है ताकि किसी तरह की कोई प्रॉब्लम आने पर वो उन्हें संपर्क कर सकें।
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प्रेजेंटेशन में होती थी सबसे अधिक दिक्कत -
डा. पवन, मुकेश, प्रवीन, युद्धवीर के ग्रुप के लोग एकत्रित हुए तो कहा कि उन्हें सबसे अधिक प्रेजेंटेशन की दिक्कत होती थी। क्योंकि उन्हें इंग्लिश को लेकर बहुत प्रॉब्लम होती थी। लेकिन इसके बाद हमने इंग्लिश स्पीकिग कोर्स किया। जिसके बाद थोड़ा प्रेजेटेंशन के लिए प्रिपेयर हो पाए। एल्यूमनाई मीट के लिए डा. शिल्पा जैन, माध्वी साहा, डा. अरूणा, दर्शिका भार्गव, दीप्ति शर्मा, गीता, कल्पना जांगड़ा, ममता, मीनाक्षी खट्टर, मीनाक्षी यादव, निर्मल, मीना गुप्ता, रतिद्र, रूचि मलिक, रूचि मदान, सरिता भूषण, सोनिका, सुधा, सुमन, बबिता, अनिल, पवन, मुकेश, युद्धवीर, पिकी, रीना, प्रवीन गर्ग, नीना शर्मा, सुनीता रानी आदि ने रजिस्ट्रेशन करवाया था।