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सिंधिया व सचिन की तरह उड़ान का कोण नहीं बना सके कुलदीप, पढ़ें हरियाणा की राजनीति की और भी रोचक खबरें

राजनीति में कई ऐसी चुटीली बातें होती हैं जो अक्सर सुर्खियां नहीं बन पाई। आइए साप्ताहिक कॉलम बाजण दो चिमटा मेंं कुछ ऐसी ही रोचक खबरों पर नजर डालते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 11:39 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 11:40 AM (IST)
सिंधिया व सचिन की तरह उड़ान का कोण नहीं बना सके कुलदीप, पढ़ें हरियाणा की राजनीति की और भी रोचक खबरें
सिंधिया व सचिन की तरह उड़ान का कोण नहीं बना सके कुलदीप, पढ़ें हरियाणा की राजनीति की और भी रोचक खबरें

हिसार [राकेश क्रांति]। पतंग तब उड़ती है जब कन्नी की ऊपर वाली डोरी पतंग को हवा में खींचती है। इससे पतंग को उंचा उड़ाने के लिए इसके निचले हिस्से में हवा के सापेक्ष एक कोण सा बन जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई हरियाणा की राजनीति में लंबे अर्से से ऐसा कोण बनाने में जुटे हैं, मगर बन नहीं रहा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर जब पिता-पुत्र ने नई पार्टी बनाई तो उन्हेंं अपनी पतंग के उड़ने की पूरी संभावना थी, मगर भाजपा से गठबंधन की कन्नी सही से नहीं बांध पाए। कांग्रेस में जब से वापसी की, तब से उनकी पतंग आदमपुर से आगे उड़ ही नहीं पा रही। अब वह ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट की तस्वीर ट्वीट कर अपनी पतंग उड़ाने के प्रयास में लगे हैं, जो कामयाब होती नहीं दिखती। उलटे हुड्डा जी उनकी पतंग काटने का प्रयास जरूर कर सकते हैं।

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फिर कब उड़ेगी तंवर की कटी पतंग

हर पतंग जानती है, अंत में टूट कर जमीन पर आना है, लेकिन उसके पहले उसे आसमान छूकर दिखाना है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर की राजनीतिक जिंदगी भी कटी पतंग सी हो गई है। ना कोई उमंग, ना कोई तरंग। आसमान छूने से पहले जमीन पर आ गई। खास बात यह है कि तंवर उसे फिर से उड़ाने का प्रयास करते भी नजर नहीं आते। कांग्रेस से किनारा किए हुए करीब नौ महीने हो चुके, अभी तक कोई फैसला नहीं ले पाए। विधानसभा चुनाव से पहले दुष्यंत चौटाला के साथ दिखते थे, अब उनके धुर विरोधी चाचा अभय चौटाला के साथ नजर आते हैं। नतीजतन उनके समर्थक इधर-उधर होने लगे। उनको भी अपना करियर बनाना है। तंवर के पीछे कब तक लगे रहें। अब उनकी पतंग तो उड़ने से रही। सो, वे भी जहां अपनी पतंग उड़ने की संभावनाएं देख रहे हैं, वहां-वहां दस्तक दे रहे हैं।

डोर, पतंग, चरखी सब था, बस हवा न चली

सावन और तीज के महीने में आज सिर्फ पतंगबाजी और राजनीति पर बात। वजह, दोनों में समानताएं बहुत हैं। एक कुशल राजनीतिज्ञ एक अच्छे पतंगबाज की तरह होता है। कब ढील देनी है, कब खींचनी है और कब पेच लड़ाने हैं, दोनों बखूबी जानते हैं। और सबसे अहम बात-डोर की मजबूती के साथ हवा के रूख पर ध्यान दोनों रखते हैं। हवा पर एक शायर ने फरमाया है- डोर, पतंग, चरखी, सब कुछ था। बस उसके घर की तरफ हवा न चली। और ये बात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के प्रबल दावेदार पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता कैप्टन अभिमन्यु, केंद्रीय मंत्री कंवरपाल गुर्जर बखूबी जानते हैं। हवा के रूख को पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने भांपा और सबकी पतंग काट डाली। उनकी डोर पहले से मजबूत थी। विद्यार्थी परिषद, किसान मोर्चा में उन्होंने जो काम किया था, उसके कारण उनकी पतंग उड़कर आसमां पर पहुंच गई और बाकी देखते रह गए।

मेरे धागे से बंध जाओ, खुद को पतंग कर दो

मुख्यमंत्री मनोहरलाल और पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर का दोस्ताना पुराना है। दोनों ने रोहतक की गलियों में वर्षों खाक छानी है। संघर्ष की दास्तांं से उनकी यादों का पिटारा भरा पड़ा है। तीज पर जब मुख्यमंत्री रोहतक में भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ को पदभार ग्रहण कराने आए तो थोड़ा सा वक्त मिलते ही ग्रोवर के आवास पर पहुंच गए। 549वीं ईस्वी में पतंगों का इस्तेमाल संदेश भेजने में होता था। सो, मुख्यमंत्री ने ग्रोवर की छत पर पतंग उड़ाकर उनके विरोधियों को संदेश दे दिया कि यह न समझें कि ग्रोवर की पतंग कट गई है। भले ही नई सरकार में ग्रोवर को अभी तक अहम ओहदा नहीं मिला है, लेकिन उनका महत्व बरकरार है। मनीष भी इस मंत्र पर काम कर रहे हैं कि- सारी दुनिया को भुला के, रूह को मेरे संग कर दो, मेरे धागे से बंध जाओ, खुद को पतंग कर दो।


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