Kisan Andolan: किसान मजदूर एकता के रोजाना लगते नारे, दूसरी ओर इसी आंदोलन ने छीना हजारों मजदूरों का रोजगार
तीन कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर जारी आंदोलन में रोजाना किसान-मजदूर एकता के नारे तो लगते हैं लेकिन इसी आंदोलन का दूसरा पहलू यह भी है कि इसी के कारण बहादुरगढ़ में हजारों कामगारों का रोजगार भी छिना हुआ है।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर जारी आंदोलन में रोजाना किसान-मजदूर एकता के नारे तो लगते हैं लेकिन इसी आंदोलन का दूसरा पहलू यह भी है कि इसी के कारण बहादुरगढ़ में हजारों कामगारों का रोजगार भी छिना हुआ है। इस आंदोलन के कारण बहादुरगढ़ में जितने भी उद्योग ठप पड़े हैं उनमें जो हजारों कामगार ड्यूटी करके अपने परिवारों का पेट पाल रहे थे, उन सबके पास अब काम नहीं बचा है।
जाहिर सी बात है कि जब उद्योग ही नहीं चलेंगे तो रोजगार कैसे बचा रहेगा। ऐसे में किसान मजदूर एकता का नारा न केवल बेमानी साबित हो रहा है बल्कि यह भी साबित कर रहा है कि इस तरह के नारे सच्चाई से भी परे है। जब मजदूर के पास काम ही नहीं बचा है तो फिर उन्हें आंदोलन से क्या मतलब और कैसे किसानों के साथ एकता होगी। पिछले कई दिनों से दिल्ली के रास्ते खोलने की जो मांग उठ रही है उसके समर्थन में कई किसान नेता भी हैं।
इनका भी मत यही है कि अगर रास्ते खुलेंगे तभी तो मजदूरों को काम मिलेगा। यदि मजदूरों के पास काम ही नहीं होगा तो फिर वह खाएगा क्या और किसानों का साथ कैसे दे पाएगा। आंदोलन को कहीं ज्यादा लंबा वक्त गुजर चुका है। इसे मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
20 हजार करोड़ से ज्यादा टर्नओवर का हो चुका है नुकसान
10 माह से ज्यादा समय से जारी आंदोलन के कारण अकेले उद्योगों का भारी नुकसान हो चुका है। बहादुरगढ़ के उद्यमियों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। बंद सड़कों की वजह से उद्यमियों को 20 हजार करोड़ से ज्यादा के टर्नओवर का नुकसान हो चुका है। पिछले दिनों यहां के उद्यमियों ने यह चेतावनी भी दी थी कि अगर टीकरी बार्डर नहीं खुला और उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो वे लाखों कामगारों के साथ सड़क पर उतर आएंगे और प्रदर्शन करेंगे। हालांकि बाद में उद्यमियों ने कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी।
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