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पराली को खेत में खपाकर 150 हेक्टेयर के क्षेत्र में गेंहू की बिजाई करवाएगा झज्‍जर कृषि विज्ञान केंद्र

कृषि विज्ञान केंद्र इस दफा 150 हेक्टेयर के क्षेत्र में पराली को खेत में ही खपाकर गेंहू की बिजाई करवा रहा है। प्रदेश भर में 12 कृषि विज्ञान केंद्र के अंतर्गत इस योजना पर कार्य होना है। जिसमें प्रत्येक केंद्र के लिए अलग-अलग टारगेट तय किए गए हैं।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 03 Nov 2021 03:25 PM (IST)Updated: Wed, 03 Nov 2021 03:25 PM (IST)
पराली को खेत में खपाकर 150 हेक्टेयर के क्षेत्र में गेंहू की बिजाई करवाएगा झज्‍जर कृषि विज्ञान केंद्र
पराली प्रबंधन के लिए प्रगतिशील किसानों के खेतों पर लगाईं जाएगी प्रदर्शनी, बढ़ेगा जागरुकता का दायरा

अमित पोपली, झज्जर : पराली प्रबंधन की दिशा में हो रहे प्रयासों के तहत कृषि विज्ञान केंद्र इस दफा 150 हेक्टेयर के क्षेत्र में पराली को खेत में ही खपाकर गेंहू की बिजाई करवा रहा है। प्रदेश भर में 12 कृषि विज्ञान केंद्र के अंतर्गत इस योजना पर कार्य होना है। जिसमें प्रत्येक केंद्र के लिए अलग-अलग टारगेट तय किए गए हैं।

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जिसमें केंद्र की ओर से बीज व मशीन आदि किसान की जमीन पर नि:शुल्क मुहैया कराई जा रही है। गेंहू की बिजाई से कटाई तक का कार्य विभागीय टीम की देखरेख में होगा। ऐसे में तैयार होने वाले आंकड़े की रिपोर्ट तैयार होगी। जो कि आने वाले समय में अन्य किसानों को प्रेरित करने का काम करेगी। दूसरी ओर , विशेषज्ञों के मुताबिक पराली को खेत में खपाने से डीएपी की डिमांड भी काफी कम रहती है।

क्योंकि, पराली से मिलने वाले पौष्टिक तत्व जमीन की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते है। साथ ही प्रगतिशील किसानों के खेतों पर प्रदर्शनी लगाते हुए जागरुकता का दायरा बढ़ाने का कार्य भी होगा। कुल मिलाकर, केंद्र का प्रयास है कि पराली को जलाने की बजाय खेत में ही खपाया जाए या फिर पशु चारे सहित अन्य कार्यों में इस्तेमाल हो।

खंड स्तर से प्रदेश स्तर पर हो रहे कार्यक्रम

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डा. उमेश शर्मा के मुताबिक किसान फसली अवशेष जलाने की बजाय प्रबंधन पर जोर दें। अवशेषों में आग लगाने से प्रदूषण फैलता है। भूमि में पल रहे जीव, मित्र कीट, पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। बल्कि उसे भूमि में दबाएं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। केंद्र की ओर से आनलाइन बैठक, वेबिनार, व्हाट्सएप के माध्यम सहित जागरूक करने के लिए नियमित संवाद सत्र चलाए जा रहे हैं। विशेषज्ञ खंड, जिला एवं प्रदेश स्तर के कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। ताकि, आने वाले समय में पराली प्रबंधन से हर स्तर पर फायदा हो।

खेत जलाने से होने वाले नुकसान से बचें किसान

प्रगतिशील किसान मेनपाल शर्मा के मुताबिक वो खेत में डीएपी-यूरिया और किसी तरह का कीटनाशक नहीं डालते। वो कहते हैं, किसान पहले तो खेत जला देते हैं फिर पैदावार लेने के लिए फर्टीलाइजर छोड़ते हैं, जलाने से मित्र कीट भी मर जाते हैं, जब फसल में रोग लगते हैं तो कीटनाशक डालते हैं, इन सब में पैसे तो खर्च होते ही हैं अनाज भी जहरीला होता जाता है, तो क्यों खेतों को फूंका जाए।


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