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एशिया में चीन जैसे देशों को पछाड़कर भारत भैंस से क्लोन कटड़ा बनाने में बना नंबर वन

क्लोन तैयार करने के लिए विज्ञानी शरीर के किसी भी हिस्से से टीशू लेते हैं। उसको लैब में ले जाकर कोशिकाएं बनाई जाती है। उन कोशिकाओं में से एक कोशिका को लिया जाता है। जिसे डोनर कोशिका कहते हैं। डोनर कोशिका को मादा के अंडे के अंदर डाला जाता है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Thu, 03 Jun 2021 03:37 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jun 2021 03:37 PM (IST)
एशिया में चीन जैसे देशों को पछाड़कर भारत भैंस से क्लोन कटड़ा बनाने में बना नंबर वन
डेढ़ साल के हुए सीआइआरबी हिसार के क्लोन कटड़े, इंडिया बुक में दर्ज कराया रिकार्ड

हिसार [वैभव शर्मा] भैंस के झोटे से क्लोन कटड़े तैयार करने में भारत ने कीर्तिमान स्थापित किया है। भारत में एक झोटे से सात क्लोन और एक रीक्लोन कटड़ा मौजूद हैं जो एशिया में सर्वाधिक संख्या है। चीन और थाईलैंड तो छोड़िए अगर सभी एशियन देशों को मिला भी लो तब भी चार या पांच क्लोन कटड़े मिलेंगे। इस काम को हिसार के केंद्रीय भैंस अनुसंधान केंद्र के विज्ञानियों ने किया है। सीआईआरबी के पास कुल 10 क्लाेन कटड़े हैं। जिसमें से एम-29 झोटे से 7 कटड़े तैयार किए गए हैं तो हिसार गौरव से एक रीक्लोन कटड़ा बनाया गया है। यह मामला इसलिए चर्चा में आया है क्योंकि हाल ही में सीआइआरबी को सबसे अधिक क्लोन कटड़े बनाने पर इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड से नवाजा गया है।

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इनमें से कई कटड़े डेढ़ वर्ष के होने वाले हैं जिसके बाद उनका सीमन भैंस की उत्तम नस्ल पाने के लिए किया जा सकेगा। खास बात है कि यह सभी क्लोन कटड़े मुर्राह नस्ल के हैं और सबसे अच्छे पशुओं के सीमन से तैयार किए हैं। सीआईआरबी के विज्ञानियों का लक्ष्य है कि इन कटड़ों के माध्यम से अधिक से अधिक कटड़े बनाकर प्रदेश और देश में भैंस की नस्ल सुधार को लेकर क्रांति लाई जाए।

कैसे तैयार होता है क्लोन कटड़ा

सामान्य कटड़े के जन्म के लिए एक मादा व एक नर पशु का होना जरूरी है। मगर क्लोन तैयार करने के लिए विज्ञानी शरीर के किसी भी हिस्से से टीशू लेते हैं। सीआईआरबी के विज्ञानी पशु की पूंछ से टीशू लेते हैं। उसको लैब में ले जाकर कोशिकाएं बनाई जाती है। उन कोशिकाओं में से एक कोशिका को लिया जाता है। जिसे डोनर कोशिका कहते हैं। डोनर कोशिका को मादा के अंडे के अंदर डाल दिया जाता है। अंडे के केंद्रक को पहले ही निकाल दिया जाता है ताकि उसमें मादा पशु के गुण न बचें। डोनर सेल को डाल दिया जाता है। इस भ्रूण को आठ दिन तक लैब में रखते हैं इसके बाद इसे मादा पशु के गर्भाशय में रोपित किया जाता है।

2015 में शुरू हुआ था प्रोजेक्ट

वरिष्ठ विज्ञानी और प्रोजेक्ट हैड डा. प्रेम सिंह यादव बताते हैं कि सीआइआरबी की तरफ से क्लोन बनाने का काम 2015-16 में शुरू किया गया था। सबसे पहले हिसार गौरव नस्ल की भैंस का क्लोन तैयार किया। क्लोन तैयार होने के साथ ही ढाई से तीन साल बाद इसके स्पर्म से टीका तैयार किया जा सकेगा। एक कटड़े के क्लोन से उसकी उम्र में एक से डेढ़ लाख टीके तैयार हो सकेंगे। यानी आठ कटड़ों के क्लोन से 10 से 15 लाख टीके तैयार होंगे। उससे 5 से सात भैंसों को लगाया जा सकेगा। इससे अच्छी नस्ल के झोटे मिल सकेंगे।

इन विज्ञानियों ने दर्ज कराया है रिकार्ड

क्लोन आधारित कटड़ों के प्रोजेक्ट में बतौर टीम लीडर सीआइआरबी के वरिष्ठ विज्ञानी डा. पीएस यादव के नेतृत्व में विज्ञानियों ने कार्य किया। विज्ञानियों में डॉ. नरेश एल सेलोकर, डा. धर्मेंद्र कुमार, डा. राजेश कुमार, डा. प्रदीप कुमार, डा. राकेश कुमार शर्मा, डा. मोनिका सैनी और डा. सीमा दुआ का विशेष सहयाेग रहा।


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