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सिंधु घाटी सभ्यता के पलायन का मूल कारण जल प्रबंधन की कमियां थीं, अगर अब प्रबंधन नहीं किया तो झेलना पड़ सकता है जल संकट

जल संरक्षण पर आधारित कृषि मेले में प्रदेशभर से आए 19 किसानों को एचएयू ने किया सम्मानित।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 03:46 PM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 03:46 PM (IST)
सिंधु घाटी सभ्यता के पलायन का मूल कारण जल प्रबंधन की कमियां थीं, अगर अब प्रबंधन नहीं किया तो झेलना पड़ सकता है जल संकट
सिंधु घाटी सभ्यता के पलायन का मूल कारण जल प्रबंधन की कमियां थीं, अगर अब प्रबंधन नहीं किया तो झेलना पड़ सकता है जल संकट

 जेएनएन, हिसार : एचएयू में आयोजित दो दिवसीय रबी कृषि मेला गुरुवार को संपन्न हुआ। इस बार का कृषि मेला जल संरक्षण पर आधारित रहा। यही कितनी विकराल समस्या है, इसका अंदाजा इस बात से ही आप लगा सकते हैं कि प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के पलायन का मूल कारण जल प्रबंधन की विसंगतियां थीं जिसमें मुख्य तौर से सेलिनीटी व वाटर-लोगिंग मुख्य कारण शामिल रहा। ऐसे में आपको जल संकट से बचना है तो प्रबंधन की तरफ मुडऩा ही होगा। आईसीएआर के क्षेत्रीय परियोजना निदेशक डा. राजबीर सिंह बराड़  जल प्रबंधन के लिए इजरायल के मॉडल को वरीयता देते हैं। किसानों को भी सलाह देते हैं कि वह जानें कि इजरायल ने सीमित संसाधनों में कैसे जल प्रबंधन किया हुआ है। फसल उत्पादन को जानें तो वर्तमान में 30 से 40 प्रतिशत ही पानी बच रहा है, इसे 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है और इससे भविष्य में होने वाले जल संकट को कम किया जा सकता है। मेले में हरियाणा के अलावा पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों से 44000 से ज्यादा किसान शामिल हुए। इसमें किसानों के लिए 230 स्टॉलें लगाई गईं थी।

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फव्वारा, टपका सिचाईं और पाइप लाइन द्वारा करें सिचाईं

कुलपति प्रो. केपी सिंह ने किसानों से अपील की कि फसलों के उत्पादन में विभिन्न आधुनिक तकनीक अपनाकर जल को बचाया जा सकता है जिसमें मुख्य रूप से फव्वारा सिचाई, टपका सिचाई व पाइप लाइन द्वारा सिचाई करना शामिल है। उन्होंने किसानों को इस प्रकार के आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा इससे उन्हें खेती संबंधी नवीन ज्ञान तथा कृषि संबंधी अपनी समस्याओं का कृषि वैज्ञानिकों से हल प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इसी दौरान डॉ. रामफल चहल द्वारा लिखित पंडित जगन्नाथ समचाणा हरियाणवी ग्रंथावली का विमोचन किया गया।

किसानों को मेले में यह दीं जानकारियां

मेले में पहुंचे किसानों ने आधुनिक मशीनों जैसे कि सोलर पप, कॉटन स्टीक सर्डेर, ई-केन कर्सर, सोलर ऑपरेटेड ड्रायर, खुदाई करने वाली मशीन, खेतों में लेवङ्क्षलग का काम करने वाली मशीनों व विभिन्न प्रकार के ट्रैक्टरों के के बारे में जानकारी ली। मेले में किसानों को विश्‍वविद्यालय के अनुसंधान फार्म का भ्रमण करवाकर वैज्ञानिक विधि से उगाई गई फसलों के प्रदर्शन प्लॉट दिखाये गये तथा उन्हें जैविक खेती, खेती में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण, कृषि उत्पादन व गुणवत्ता बढ़ाने के साथ जल संरक्षण संबंधी महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई।

दो दिनों में 63.38 लाख रुपये के बिके बीज

विश्‍वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक एवं मेला संयोजक डा. आर.एस. हुड्डा ने बताया कि किसानों को आगामी रबी मौसम की फसलों व सब्जियों के बीज तथा फलों की नर्सरी उपलब्ध करवाने के लिए विश्वविद्यालय ने मेला स्थल पर सरकारी बीज एजेंसियों के सहयोग से बीज बिक्री की पर्याप्त व्यवस्था की थी। मेले के दोनों दिन किसानों ने 63.38 लाख रुपये के  रबी फसलों व सब्जियों की उन्नत व सिफारिशशुदा किस्मों के प्रमाणित बीज तथा 1.9 लाख रुपये के फलदार पौधों की नर्सरी खरीदी। बीज के अलावा किसानों ने 67.4 हजार रुपये का कृषि साहित्य भी खरीदा। किसानों ने पानी व मिट्टी के 192 तथा 263 नमूने टेस्ट करवाए।

इन किसानों को किया सम्मानित

 भू-जल संरक्षण, मधुमक्खी पालन, फसल विविधिकरण, समन्वित खेती एवं जल संरक्षण, बागवानी, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकी, फसल अवशेष प्रबंधन, सब्जी खेती, टपका ङ्क्षसचाई व दूध उत्पादन आदि में उम्दा कार्य करने वाले प्रदेश के 19 किसानों को सम्मानित किया। इन किसानों में चन्नी  (अंबाला) के गुरचरण सिंह, गोबिंदपुर बास (रेवाड़ी) के शमशेर सिंह, झज्जर के संदीप कुमार, मंडी पिरानु (भिवानी) के सोमबीर, चांदपुर (फरीदाबाद) के विपिन कुमार, गोरखपुर (फतेहाबाद) के जोगिन्द्र सिंह, झज्जर के संदीप कुमार, लोहचब (जींद) के राजकुमार, रसीना (कैथल) के प्रताप सिंह, करनाल के रमेश कुमार, मंडकोला (पलवल) के नरेश कुमार, महेन्द्रगढ़ के सुरत सिंह, कैथ (पानीपत) के रामपाल, शामिल हैं।


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