Move to Jagran APP

इस बार किसान चूके तो कपास में हो सकता है भारी नुकसान, रहें सतर्क, विज्ञानियों से लें राय

हरियाणा में कपास का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। कुछ वर्ष पहले 4 चार हैक्टेयर में कपास बोई जाती थी जो अब बढ़कर 7 हजार हैक्टेयर से भी अधिक हो गई है। फसल में बेहतर उत्पादन के लिए कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 08:24 AM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 08:24 AM (IST)
इस बार किसान चूके तो कपास में हो सकता है भारी नुकसान, रहें सतर्क, विज्ञानियों से लें राय
कपास की फसल को रोग से बचाने के लिए एचएयू में गोष्‍ठी का आयोजन होगा, यहां उपाय बताए जाएंगे

जागरण संवाददाता, हिसार। प्रदेश में पिछले वर्ष कपास की फसल का नष्ट होने के कई मामले आए थे। विज्ञानियों ने जब इसका कारण पता किया तो मालूम हुआ कि किसानों द्वारा बिना कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश के फसल पर कीटनाशकों के मिश्रणों का प्रयोग करना एक कारण सामने आया था, जिससे कपास की फसल में नमी एवं पोषण के चलते समस्या बढ़ी थी। यह समस्या ज्यादातर रेतीली जमीन में आई थी। कृषि वैज्ञानिकों को किसानों के साथ मिलकर समय-समय पर उनकी समस्या के निदान के लिए जुटे रहने का आह्वान किया। कपास हरियाणा प्रदेश की एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। इसलिए किसानों को इस फसल में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर दी जाने वाली सलाह व कीटनाशकों को लेकर की गई सिफारिशों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

loksabha election banner

--------------

इन विज्ञानियों से ले सकते हैं राय

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने मौजूदा समय में विज्ञानियों को जागरुकता की जिम्मेदारी दी है। इन विज्ञानियों द्वारा समय-समय पर किसान गोष्ठी भी आयोजित की जा रही है। अगर किसानों को कपास से जुड़ी कोई राय लेनी है तो वह कपास वैज्ञानिक डा. ओमेंद्र सांगवान, सस्य वैज्ञानिक डा. करमल मलिक, कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड, पौद्य रोग विशेषज्ञ डा मनमोहन सिंह ने कपास संबंधित विषयों पर जानकारी ले सकते हैं।

--------------

कपास में बेहतर उत्पादन के लिय यह करें

हरियाणा में कपास का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। कुछ वर्ष पहले 4 चार हैक्टेयर में कपास बोई जाती थी जो अब बढ़कर 7 हजार हैक्टेयर से भी अधिक हो गई है। फसल में बेहतर उत्पादन के लिए कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी है। इसके लिए समय-समय पर वैज्ञानिकों द्वारा फसलों संबंधी जारी हिदायतों व सलाह का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसान रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा दें ताकि पर्यावरण प्रदुषण को कम करने के अलावा स्वास्थ्य लाभ भी होगा। कई बार किसान बिना वैज्ञानिक परामर्श के अपनी फसल में कीटनाशकों का अंधाधुंध छिडकाव कर देता है जो नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए विश्वविद्यालय से जुडक़र किसान वैज्ञानिकों से सही व सटीक जानकारी हासिल करें और उनकी राय अनुसार ही सिफारिश किए गए कीटनाशकों का प्रयोग करें।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.