ऐसे कैसे बचेगी अनाज मंडियां, हरियाणा में मंडी पहुंचने से पहले ही बिक गई ज्यादातर सरसों की फसल
प्रदेश में इस बार अब तक महज 20 लाख 37 हजार क्विंटल सरसों की खरीद हुई हैं। गत वर्ष के मुकाबले खरीद का 55 लाख 7 हजार क्विंटल कम हैं। गत वर्ष 33 करोड़ 54 लाख रुपये मार्केट फीस मिली थी। अब महज 10 करोड़ 35 लाख रुपये मिली है
फतेहाबाद [राजेश भादू] किसान व व्यापारी मंडी बचाने के लिए लंबे समय से प्रदर्शन कर रहे है। तीनों कानूनों का विरोध कर रहे नेताओं का कहना हैं कि नए कानून से मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी। लेकिन जो व्यापारी किसानों के साथ मिलकर प्रदर्शन कर रहे है। वे मौका मिलते ही गड़बड़ी करने से नहीं चुकते। ऐसा ही अब सरसों की खरीद में देखने को मिल रहा है। प्रदेश में इस बार अब तक महज 20 लाख 37 हजार क्विंटल सरसों की खरीद हुई हैं। यह गत वर्ष के मुकाबले हुई खरीद का 55 लाख 7 हजार क्विंटल कम हैं। गत वर्ष 33 करोड़ 54 लाख रुपये मार्केट फीस मिली थी। जो अब तक महज 10 करोड़ 35 लाख रुपये मिली हैं। इसके पांच गुणा अधिक नुकसान जीएसटी चोरी में हुआ है।
यह खरीद कागजों में ही कम है, वैसे खरीद ठीक-ठाक हुई है। व्यापारियों ने सरसों को उचंती खरीद ली। यानी इसका रिकार्ड मार्केट कमेटी में दर्ज नहीं किया गया। इससे करोड़ों रुपये की मार्केट फीस के साथ जीएसटी भी चोरी हुई है। सरसों की खरीदारी करने वाले व्यापारी मंडी के आढ़तियों व आक्शन रिकार्डर से मिलकर गड़बड़ी करते है। आक्शन रिकार्ड को मंडी में आई हुई सरसों की ढेरियों तक का हिसाब रखना होता है। ढेरी का अनुमानित वजन तक लिखना जरूरी है। लेकिन वे ऐसा नहीं करते।
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इसलिए कर रहे व्यापारी मार्केट फीस की चोरी :
कृषि विपणन बोर्ड के अनुसार सरसों पर एक फीसद मार्केट फीस है। पुराने नियमानुसार व्यापारियों को फसल मंडी के मार्फत ही खरीदनी होगी। निजी खरीद केंद्र तक नहीं बना सकते। व्यापारी एक फीसद मार्केट फीस चोरी करते हुए सरसों पर लगने वाली पांच फीसद जीएसटी भी चोरी करते है। इसके सरसों से निकलने वाले तेल व खल पर लगने वाली जीएसटी भी चोरी कर रहे है। इन दोनों पर भी पांच-पांच फीसद जीएसटी है। इतना ही नहीं किसान व व्यापारी के बीच कड़ी का काम करने वाले आढ़तियों को मिलने वाली ढाई फीसद दामी में इनकम टैक्स लगता है। उसका भी रिकार्ड नहीं होता। ऐसे में मंडियों में शुरूआत से ही गड़बड़ी कर दी जाती है।
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रकबा के साथ औसत उत्पादन भी बढ़ा, फिर भी आवक हुई कम :
प्रदेश में सरसों का रकबा तो बढ़ा ही है। इसके साथ औसत उत्पादन में भी बढ़ोतरी होने के बाद मंडियों में सरसों की कागजों में आवक कम हुई है। प्रदेश में इस बार 6 लाख 40 हजार हेक्टेयर में सरसों की खेती की गई थी। जो गत वर्ष के मुकाबले 90 हजार हेक्टेयर अधिक थी। इसके अलावा औसत उत्पादन भी इस बार करीब 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहा।
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सरसों से 33 किलोग्राम तक निकलता है तेल
अच्छी पक्की हुई एक क्विंटल सरसों से 33 किलोग्राम तेल निकलता है। जो अब 135 रुपये लीटर बिक रहा है। वहीं 65 किलोग्राम खल का उत्पादन होता है। 1 क्विंटल में सरसों का तेल व खल बनाने में दो किलोग्राम का अंतर आता है। सरसों की खल का मार्केट में भाव 3500 रुपये क्विंटल है।
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प्रदेश में अब तक खरीद हुई सरसों : 20 लाख 30 हजार क्विंटल
गत वर्ष अनाज खरीद हुई सरसों : 75 लाख 37 हजार क्विंटल
गत वर्ष के मुकाबले कम आई सरसों : 55 लाख 7 हजार क्विंटल
प्रदेश में इस बार सरसों का रकबा : 6 लाख 40 हजार हेक्टेयर
गत वर्ष सरसों का रकबा : 5 लाख 50 हजार हेक्टेयर
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उपायुक्त को निगरानी के लिए भेजा था पत्र : सीईओ
सरसों की सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही मैंने उपायुक्त को निगरानी करने के लिए पत्र भेजा था। उस दौरान प्रदेश के सभी उपायुक्त को मार्केटिंग विपणन बोर्ड की तरफ से पत्र भेजा गया था। वहीं मार्केट कमेटी के सचिवों व डीएमईओ से लगातार रिपोर्ट ली जा रही है।
- विनय सिंह, सीईओ, कृषि विपणन बोर्ड।