एचएयू के विज्ञानियों ने विकसित की मूंग की रोग प्रतिरोधी किस्म एमएच-1142
विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की फसल मानक अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप समिति द्वारा नई दिल्ली में आयोजित 84वीं बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है। बैठक की अध्यक्षता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के फसल विज्ञान के उप महानिदेशक डा. टीआर शर्मा ने की थी।
जागरण संवाददाता, हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने इस वर्ष मूंग की नई रोग प्रतिरोधी किस्म एमएच 1142 को विकसित कर एक ओर उपलब्धि को विश्वविद्यालय के नाम किया है। मूंग की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवाशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है।
विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप समिति द्वारा नई दिल्ली में आयोजित 84वीं बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है। बैठक की अध्यक्षता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के फसल विज्ञान के उप महानिदेशक डा. टीआर शर्मा ने की थी। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने कृषि विज्ञानियों द्वारा इस उपलब्धि पर बधाई दी और भविष्य में भी निरंतर प्रयासरत रहने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञानियों द्वारा मूंग की आशा, मुस्कान, सत्त्या, बसंती, एमएच 421 व एमएच 318 किस्में विकसित की जा चुकी हैं।
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए की गई है विकसित
खरीफ मौसम में बोई जाने वाली मूंग की एमएच 1142 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम व उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है। इन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल व असम राज्य शामिल हैं।
ये होगी किस्म की खासियत
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. एस.के. सहरावत ने बताया कि खरीफ में काश्त की जाने वाली मूंग की इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी फसल एक साथ पककर तैयार होती है। इस किस्म की फलिया काले रंग की होती हैं व बीज मध्यम आकार के हरे व चमकीले होते हैं। इसका पौधा कम फैलावदार, सीधा एवं सीमित बढ़वार वाला है, जिससे इसकी कटाई आसान हो जाती है। यह किस्म विभिन्न राज्यों में 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 12 क्विंटल से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आकी गई है।
इन रोगों के प्रति होगी रोगरोधक क्षमता
इस किस्म की खास बात यह है कि इसमें पीला मौजेक, पत्ता झूरी, पत्ता मरोड़ जैसे विषाणु रोग तथा सफेद चुर्णी जैसे फफूंद रोगों की प्रतिरोधी है। इसके अतिरिक्त मूंग की इस किस्म में सफेद मक्खी व थ्रिप्स जैस रस चूसक कीट एवं अन्य फली छेदक कीटों का प्रभाव भी पहले वाली किस्मों की तुलना में बहुत कम होगा।
किस्म विकसित करने में इन विज्ञानियों की मेहनत लाई रंग
मूंग की एमएच 1142 किस्म विश्वविद्यालय के अनुवाशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग के कृषि वैज्ञानिक डा. राजेश यादव, श्रीमति डा. रविका, डा. नरेश कुमार, डा. पी.के. वर्मा और डा.एके छाबड़ा की अथक मेहनत का परिणाम है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने में डा. एसके शर्मा, डा. ए.एस. राठी, डा. तरुण वर्मा व डा. रोशन लाल का भी विशेष योगदान रहा।
अगले वर्ष से होगा बीज उपलब्ध : डा. एके छाबड़ा
पादप एवं पौध प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एके छाबड़ा ने बताया कि खरीफ के मौसम के लिए सिफारिश की गई इस किस्म का बीज अगले वर्ष किसानों के लिए उपलब्ध करवा दिया जाएगा।