भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को मात दे, दुष्यंत के सारथी कैसे बने देवेंद्र बबली, पढ़ें राजनीति की उठा पठक
जननायक जनता पार्टी से टोहाना विधानसभा हलका के विधायक देवेंद्र सिंह बबली राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही जुनून के रथ पर सवार रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वह मैदान भी मार गए। वह भी सत्ताधारी दल के ही तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला जैसे नेता को पटकनी दी।
मणिकांत मयंक, फतेहाबाद। जननायक जनता पार्टी से टोहाना विधानसभा हलका के विधायक देवेंद्र सिंह बबली राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही जुनून के रथ पर सवार रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वह मैदान भी मार गए। वह भी सत्ताधारी दल के ही तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला जैसे नेता को पटकनी देकर। फिर चढ़ गया मंत्री बनने का जुनून। हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में कैबिनेट मंत्री का ताज मिल गया। अब शुरू हो गया है सरकार के मातहत अधिकारियों पर पकड़ बनाने का जुनून। ऐसा इसलिए भी कि बराला चुनाव ही हारे, अधिकारियों पर जीत जस की तस है। जाहिर है, जब कैबिनेट मंत्री बने हैं तो बबली अब अफसरशाही पर नकेल तो डालेंगे ही ताकि उनकी सुनें। दफ्तरों में छापेमारी उसी का हिस्सा माना जा रहा है। विधानसभा हलके में राजनीतिक टशन का पार्ट भी। सवाल, हर एक शख्स पे तेरा गुमान होता है, ये देखना है कि रहता है ये जुनूं कब तक?
लगातार हार के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में रानियां विधानसभा हलका से जीते रणजीत सिंह चौटाला तो बिजली मंत्री बन गए। निर्दलीय विधायकों के समर्थन की ख्वाहिशमंद सरकार ने उन्हें कष्ट निवारण की जवाबदेही दे दी। पूर्व उप-प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के पुत्र रणजीत सिंह फरियादियों के दरबार की संस्कृति विरासत में लेकर आये थे। सो, कष्ट निवारण एवं जन परिवाद समिति का अध्यक्ष बनते ही दो मीटिंग गर्मजोशी के साथ कर ली। इसके दो साल बीत गए। कोई मीटिंग नहीं हुई है। पूर्व के पंद्रह मामलों में से आठ का निपटारा पेंडिंग है। पहले कोरोना का रोना और अब कुछ और बहाना। ऐसा नहीं कि इस दौरान वह जिला मुख्यालय न आए हों। सुशासन दिवस पर भी लघु सचिवालय में अवतरित हुए। अब तो सामाजिक संस्थाएं भी मांग कर रही कि पीठ दिखा गए रणजीत सिंह चौटाला की जगह गब्बर अर्थात गृहमंत्री अनिल विज को समिति का अध्यक्ष बनाया जाए।
कांग्रेस के साथ विडंबना है कि दूर नहीं जाती। पार्टी के लोग इससे उबर नहीं पा रहे हैं। करीब छह माह पहले उम्मीद ने सिर उठाया कि अब प्रदेश का संगठनात्मक ढांचा तैयार हो जाएगा। निगाहें कभी पार्टी प्रदेशाध्यक्ष की ओर तो कभी हरियाणा के प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल की ओर टिकी रहीं। प्रभारी महोदय ने पहल की। लेकिन उनकी माताजी का निधन हो गया। संगठन बनाने का काम रुक गया। कुछ समय बाद उन्होंने फिर रफ्तार दी। पेस पर फिर ब्रेक लग गया है। कारण कि हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल इन दिनों पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के चुनावी माहौल में व्यस्त हो गए हैं। वह खुद अलीगढ़ जिले में कोल विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। वहां चुनावी खम ठोंक रहे हैं। स्वाभाविक ही, कुछ वरिष्ठ नेता भी वहीं बिजी हो गए हैं। लिहाजा, विवेक चुनावी दंगल में दाव-पेंच आजमा रहे तो संगठन की कवायद पर ब्रेक लाजिमी ही।
पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ फतेहाबाद में कार्यकर्ताओं की मीटिंग लेने आए थे। लंबे समय बाद यहां आए प्रदेशाध्यक्ष की बुलाई इस मीटिंग में वार्ड प्रमुखों व ग्राम प्रमुखों को ही बुलाया गया था। लेकिन वरिष्ठ जन भी पहुंचे। पार्टी कैडर के लोगों ने खासकर उपस्थिति दर्ज करवाई। मगर अन्य दलों से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए लोग धनखड़ साहब की मीटिंग से कन्नी काट गए। बाबा ने उनसे पूछा कि क्यों भाई, आपलाेग मीटिंग में नजर नहीं आए? तो जवाब मिला, ना बाबा ना...। पंजाब चुनाव में ड्यूटी लग जाती। सकार में रहते हुए पल्ले तो कुछ आया नहीं। अब घर फूंक तमाशा नहीं देखना। हम सोच में इतने भी गये-गुजरे नहीं हैं। मलाई खाए कोई और जेब ढीली हम करें? बता दें कि पंजाब में चुनाव फतह के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं की ड्यूटी अलग-अलग जिलों में लगाई गई है।