हांसी की रामलीलाएं होती थी मशहूर, अब हो गई विलुप्त
इतिहासकार जगदीश सैनी की छठी किताब हांसी की रामलीलाएं का विमोचन
- इतिहासकार जगदीश सैनी की छठी किताब हांसी की रामलीलाएं का विमोचन
फोटो : 22
संवाद सहयोगी, हांसी : इतिहासकार जगदीश सैनी ने रविवार को एक निजी रेस्टोरेंट में अपनी नई किताब हांसी की रामलीलाएं का विमोचन किया। इस अवसर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए जगदीश सैनी ने बताया कि अपने जमाने में हांसी की रामलीलाएं बहुत मशहूर हुआ करती थी और हरियाणा सहित कई अन्य राज्यों से लोग हांसी की रामलीला देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। उन्होंने बताया कि उस वक्त हर शहर रामलीलाएं हुआ करती थी लेकिन हांसी जैसा प्रस्तुतीकरण व मंच सज्जा हांसी जैसी नहीं होती थी। यहां की रामलीला में मंच विशेष तकनीक से तैयार किया जाता था और यहां मंझे हुए कलाकार व सिखाने वाले हुआ करते थे। हांसी मंच की प्राथमिक पाठशाला हुआ करता था और बाद में यहां के कलाकारों ने बड़े बड़े मंचों पर रोल किया। लेकिन एक समय ऐसा आया कि हांसी की रामलीलाएं लुप्त होती चली गई। आज से 15 साल पहले यहां की रामलीलाएं बंद हो गई। विडंबना यह रही कि उस वक्त के सभी कलाकार रसातल में चले गए। यहां की रामलीलाएं कभी हांसी की धरोहर थी और हांसी मिनी एमएसबी कहलाता था। उसी समय के संस्मरणों को एकत्रित कर नई किताब लिखी गई है ताकि अतीत में लुप्त हो चुकी हांसी की धरोहर का आज व आने वाली पीढि़यों को जानकारी हासिल हो सके। उन्होंने बताया कि भारत का इतिहास हांसी के बिना अधूरा है। हांसी के हर कोने में ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है लेकिन राजनीतिक अवहेलना के चलते शहर पिछड़ता वह हाशिए पर चला गया। वहीं जब उनसे हांसी में रामलीला लुप्त होने के कारण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसका मुख्य कारण शहर में बढ़ते अपराध व अपराधीकरण को मुख्य वजह बताया। इस अवसर पर उस वक्त रामलीला में कलाकार रहे विनोद गोल्डी, प्रवीण एलावादी, जुगल किशोर, दीपक नागपाल सहित अन्य कलाकार मौजूद थे।