अब एंटी ब्रेस्ट कैंसर दवाएं होंगी सस्ती, धातु के स्थान पर इस केमिकल का होगा प्रयोग
अब एंटी ब्रेस्ट कैंसर दवाएं होंगी सस्ती धातु के स्थान पर इस केमिकल का होगा प्रयोग। दिल्ली आइआइटी के शोधार्थी ने तैयार किया सस्ता रास्ता। हजार रुपये में मिलने वाली दवा की कीमत 400 तक आ सकती है।
हिसार, [वैभव शर्मा]। अभी तक एंटी ब्रेस्ट कैंसर एजेंट को बनाने में धातु कणों का प्रयोग होता है। इन धातुओं का आयात जापान और जर्मनी से होता है। आयातित धातुओं का प्रयोग करने से एंटी ब्रेस्ट कैंसर की दवाएं काफी महंगी हो जाती हैं। इस समस्या को देखते हुए आइआइटी दिल्ली के शोधार्थी और हिसार के लितानी गांव के रहने वाले संजय सिंह ने एंटी ब्रेस्ट कैंसर एजेंट (दवा) तैयार करने का सस्ता और आसान रास्ता निकाला है।
संजय ने एंटी ब्रेस्ट कैंसर एजेंट दवाओं में धातु के स्थान पर पेराटोल्विन सल्फोनिक एसिड का प्रयोग किया और बिना धातु के ऐसा तरीका खोजा जिससे यह दवा बनाई जा सके। संजय का कहना है कि अब इस प्रक्रिया के उपयोग के बाद बाजार में ब्रेस्ट कैंसर की दवाएं सस्ते दामों में उपलब्ध होंगी। छह हजार रुपये में मिलने वाली दवा की कीमत 400 रुपये तक आ सकती है। यही कारण है कि इस शोध के लिए संजय को ग्रीस के एथेंस शहर में पांच सितंबर को नौवीं इंटरनेशनल कान्फ्रेंस आन ग्रीन केमेस्ट्री के लिए आमंत्रित किया है। यहां वे अपने शोध को विभिन्न देशों से आए विज्ञानियों के सामने प्रस्तुत करेंगे।
शरीर में हानिकारक प्रभाव छोड़ती है दवा में शामिल धातु
आइआइटी दिल्ली के रसायन विज्ञान विभाग में शोधार्थी संजय बताते हैं कि सबसे पहले तो एंटी ब्रेस्ट कैंसर दवाओं में जो धातु प्रयोग होती है वह काफी महंगी होती है। साथ ही धातु शरीर में भी रह जाती है जो कहीं न कहीं आने वाले समय में हानिकारक प्रभाव छोड़ती है। इन दवाओं में धातु के रूप में रुथेनियम, इरीडियम आदि की निर्भरता को समाप्त करने के लिए संजय ने बिना धातु के एंटी ब्रेस्ट कैंसर दवा बनाने का तरीका खोजा। इस दवा को बनाने के लिए पेराटोल्विन सल्फोनिक एसिड का प्रयोग किया। इस केमिकल का प्रयोग हाथ से भी कर सकते हैं। जबकि धातु से जो दवा बनती है उसके लिए करोड़ों रुपये की गलब बाक्स मशीन प्रयोग में लाई जाती है।
दवा बनाने के पेटेंट कराया पेटेंट, एक कंपनी ने दिया प्रस्ताव
संजय ने बताया कि बिना मेटल के ब्रेस्ट कैंसर की दवा को तैयार करने के तरीके को आइआइटी दिल्ली ने पेटेंट करा लिया है। अभी एक दवा कंपनी ने इस दवा का फार्मूला खरीदने का प्रस्ताव आइआइटी को दिया है। अभी संस्थान कुछ और कंपनियों का प्रस्ताव आने का इंतजार कर रहा है। इसके बाद ही फैसला लिया जाएगा कि फार्मूले किस कंपनी को दिया जाए।
सरकारी स्कूल से पढ़कर आइआइटी तक का सफर
शोधार्थी संजय हिसार के बरवाला में गांव लितानी के रहने वाले हैं। संजय की शुरुआती पढ़ाई लितानी के सरकारी स्कूल में हुई। इसके बाद बीएससी नरवाना कालेज से की और फिर मास्टर डिग्री हिसार की गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से हासिल की। रसायन विज्ञान में रुचि होने के कारण वह अब आइआइटी दिल्ली से पीएचडी कर रहे हैं।