अग्रोहा में धूमधाम के साथ मनाया गणगौर का पर्व, गोर-गोर गोमती गाते हुए मूर्तियों का किया विसर्जन
संवाद सहयोगी अग्रोहा : चैत्र पक्ष की तृतीया तिथि पर अग्रोहा में गणगौर का पर्व बड़ी धूमधाम और उत्साह क
संवाद सहयोगी अग्रोहा : चैत्र पक्ष की तृतीया तिथि पर अग्रोहा में गणगौर का पर्व बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया गया। ग्रामीणों की तरफ से गणगौर विसर्जन की शोभायात्रा निकाली गई जिसमें महिलाओं और युवतियों ने पारंपरिक वेशभूषा पहन कर मंगलगीत गाते हुए शोभायात्रा में बढ़चढ़ कर भाग लिया। गणगौर विसर्जन शोभायात्रा में ईसर देव और मां गौरी की प्रतिमा को सजाकर पूरे गांव में फेरी लगाई गई। गणगौर शोभायात्रा निकाल रहे युद्धवीर सिंह शेखावत, योगेश शेखावत, सुबेसिंह राठौड आदि ने बताया कि महिलाओं और कन्याओं के अखंड सौभाग्य और सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए होलिका दहन के बाद 15 दिन के पूजन के बाद 16वें दिन विदाई सामारोह में शोभायात्रा निकाल कर मूर्ति विसर्जन किया जाता है।
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आपसी सौहार्द का प्रतिक है गणगौर पर्व
गणगौर एक आपसी सौहार्द का प्रतिक पर्व है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलाएं शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छांटे देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं। महिलाएं किसी नदी, तालाब के पास जाती हैं और अपनी पूजी हुई गणगौर को पानी पिलाती हैं। अगले दिन यानी चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन महिलाएं गणगौर
का विसर्जन कर देती हैं। गणगौर आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है।
पति से छिपकर रखा जाता है व्रत
गणगौर पर्व पर सुहागिन महिलाएं अपने पति से छिपकर व्रत रखती है। इस व्रत के बारे में पति को कुछ भी नहीं बताया जाता है। पूजा में चढ़ाया गया प्रसाद भी महिलाएं पति को नहीं देती हैं। इस पावन दिन गणगौर माता यानी मां पार्वती की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है।
दादा के बाद पोता निभा रहा है पारंपरिक रिवाज
- गणगौर शोभायात्रा आयोजक युद्धवीर सिंह शेखावत ने बताया कि उसके दादा कई दशकों से गणगौर शोभा यात्रा निकालते रहें हैं लेकिन उसके दादा और पिता के निधन के बाद वह जब तक जीवित है इस परम्परा को आगे बढ़ाते रहेगा।