लाहौर स्कूल में अंग्रेजों को मुख्य अतिथि बनाने पर स्वतंत्रता सेनानी पूरन ने कर दी बगावत, जानें फिर क्या हुआ
मनमोहन आजाद बताते हैं कि हमारे पुरखों का लाहौर में ही किराने व ड्राईफ्रूट का कारोबार था। इनके पिता पूरन चंद आजाद के अलावा भी कई स्वजन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। देश का बंटवारा हुआ तो रोहतक में उनका परिवार आ गया।
रोहतक, अरुण शर्मा। लाहौर(अब पाकिस्तान में) का डीएवी स्कूल। स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजन के दौरान एक अंग्रेज अधिकारी को मुख्य अतिथि बतौर पहुंचना था। स्कूल के छात्रों को जब यह भनक लगी तो उनके तेवर ही बदल गए। अंग्रेज अधिकारी को स्कूल में घुसने ही नहीं दिया। विरोध करने की रणनीति अंदरखाते बन गई थी। साल 1935-1936 की यह घटना रही होगी। स्कूल के हेड मास्टर आग बबूला हो गए। तुरंत यहां पढ़ने वाले पूर्ण चंद आजाद पर माफी मांगने के लिए दबाव डाला। धमकी दी कि नाम काट दिया जाएगा और आगे भी नहीं पढ़ने देंगे। शिक्षक की धमकी का असर होने के बजाय उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी तो दूसरे छात्र भी उद्वेलित हो गए।
अंग्रेजों का विरोध किया तो लाहौर, सियालकोट, मुल्तान, जम्मू जेल में पांच साल 10 माह जेल में रहे
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय पूरन चंद आजाद की देश को आजाद कराने के लिए ललक के ऐसे ही किस्से उनके बेटे एवं समाजसेवी मनमोहन आजाद ने सुनाए। मनमोहन आजाद कहते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत को लगा कि स्कूली छात्रों में विरोध होना मामूली बात नहीं। इसलिए महज 15 साल के युवा को लाहौर की जेल में डाल दिया। यातनाएं दीं, लेकिन वह पिघले नहीं। अंग्रेजों ने लाहौर के बाद सियालकोट, मुल्तान, जम्मू के बाद कई अन्य जेलों में भेजा। विभिन्न जेलों में पूरे पांच साल 11 माह और 19 दिन यातनाएं झेलीं। 10वीं के बाद पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सके। देश को आजाद कराने के लिए राजनीति से जुड़े। इन्हें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का जेल में रहते ही सेक्रेटरी जनरल बनाया। यह पद एक तरह से जिला प्रधान का होता था। मनमोहन बताते हैं कि जेल में रहते ही पार्षद का चुनाव लड़े और जीते। अगस्त 1920 में जन्मे पूरन चंद का अप्रैल 2012 में निधन हो गया।
बंटवारे के बाद रोहतक में आए और विधायक भी बने
मनमोहन आजाद बताते हैं कि हमारे पुरखों का लाहौर में ही किराने व ड्राईफ्रूट का कारोबार था। इनके पिता पूरन चंद आजाद के अलावा भी कई स्वजन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। देश का बंटवारा हुआ तो रोहतक में उनका परिवार आ गया। 1952 में इनके पिता यहां विधायक बने। छह साल तहसीलदार पद पर भी काबिज रहे। कांग्रेस के जिला प्रधान भी रहे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार में स्वतंत्रता संग्राम सैनिक सम्मान समिति के चेयरमैन बनाया था।
इन्होंने शहीदों की प्रतिमाएं लगवाईं
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान जन-जन तक पहुंचाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूरन चंद आजाद ने द शहीदाने वतन यादगार कमेटी 1983 में गठित की। इन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सुभाष चौक पर प्रतिमा लगवाई। साल 2003 में मार्ग को चौड़ा करने के लिए यह प्रतिमा सुभाष पार्क में लगवा दी। बाद में सुभाष चौक पर दूसरी प्रतिमा प्रशासन ने लगवाई। पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा हुडा काम्प्लेक्स और शहीद भगत सिंह की प्रतिमा भिवानी स्टैंड पर लगवाई। मनमोहन आजाद कहते हैं कि हमारी योजना है कि जल्द ही बाबू जी यानी पूरन चंद की प्रतिमा भी लगे। प्रतिमा निर्मित करने का आर्डर दे दिया है, जल्द ही स्थान व तिथि तय होगी।