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किसान आंदोलन के बीच कोरोना से पहली मौत, पश्चिम बंगाल की 24 वर्षीय युवती ने दम तोड़ा

मृतका मोमिता बसु पश्चिम बंगाल के हुगली की रहने वाली थी। किसान आंदोलन के बीच से पश्चिम बंगाल में गए नेताओं के साथ मोमिता 12 अप्रैल को टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन में आई थी। वह अलग-अलग संगठनों के साथ यहां पर रही। 24 अप्रैल को उसकी तबीयत बिगड़ गई।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 30 Apr 2021 04:38 PM (IST)Updated: Fri, 30 Apr 2021 04:38 PM (IST)
किसान आंदोलन के बीच कोरोना से पहली मौत, पश्चिम बंगाल की 24 वर्षीय युवती ने दम तोड़ा
बहादुरगढ़ में किसान आंदोलन में शामिल होने आई पश्चिम बंगाल की युवती की कोरोना से मौत हो गई

बहादुरगढ़, जेएनएन। कृषि कानूनों के खिलाफ पांच माह से ज्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन के बीच कोरोना से पहली मौत हो गई है। यहां आंदोलन में कई दिनों से सक्रिय पश्चिम बंगाल की 24 वर्षीय युवती ने शुक्रवार की अल सुबह दम तोड़ दिया। वह 27 अप्रैल से शहर के लाइनपार क्षेत्र में स्थित शिवम अस्पताल में भर्ती थी। इस मौत की घटना बाद से ही आंदोलन में भी दहशत का माहौल बन गया है। टीकरी बॉर्डर की स्टेज से युवती की मौत पर दो मिनट के मौन की घोषणा की गई। साथ ही सभी किसानों से गर्म पानी के सेवन का आह्वान किया गया।

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मृतका मोमिता बसु पश्चिम बंगाल के हुगली की रहने वाली थी। किसान आंदोलन के बीच से पश्चिम बंगाल में गए नेताओं के साथ मोमिता 12 अप्रैल को टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन में आई थी। वह अलग-अलग संगठनों के साथ यहां पर रही। 24 अप्रैल को उसकी तबीयत बिगड़ गई। आंदोलन के बीच ही उसे दवाई दे दी गई। मगर सुधार नहीं हुआ। 26 अप्रैल को हालत बिगड़ने पर उसे सिविल अस्पताल ले जाया गया। यहां से उसे रोहतक पीजीआइ रेफर किया गया। वहां पर वह कोरोना पॉजिटिव मिली। स्वास्थ्य में सुधार न होने पर किसान संगठन का एक ग्रुप उसे एंबुलेंस में लेकर कई अस्पतालों में पहुंचा, लेकिन बेड नहीं मिले।

इस बीच आंदोलनकारियों ने राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा के कार्यकर्ताओं से संपर्क किया। टीम दीपेंद्र के नाम से इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय कार्यकताओं में से बहादुरगढ़ के नेता प्रदीप लडरावण से उनका संपर्क हुआ। प्रदीप ने किसी तरह भागदौड़ करके बहादुरगढ़ के शिवम अस्पताल में युवती को भर्ती करवाया। 27 अप्रैल से यहां पर इलाज शुरू हुआ। मगर उस वक्त तक उसके फेफडों में 70 फीसद तक संक्रमण बढ़ गया था। शुक्रवार सुबह युवती ने दम तोड़ दिया। प्रदीप लडरावण ने बताया कि अस्पताल संचालक व प्रबंधन ने काफी मदद की, मगर युवती को नहीं बचाया जा सका।

घटना के पीछे कई तरह की हो रही बातें

बताते हैं मोमिता बसु अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। स्नातक के बाद वह नौकरी भी करती थी। मगर आंदोलन में आ गई। उसके पिता कामरेड उत्पल बासु वीरवार को ही यहां पहुंचे थे। अब युवती की मौत को लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। चर्चा यह भी है कि जिस हालत में युवती को आंदोलन के बीच से अस्पताल ले जाया गया था, तब हालत संदिग्ध थी। उसके इलाज खर्च को लेकर भी किसान संगठनों के बीच तकरार हुई है। हालांकि इन सब बातों की पुष्टि नहीं की जा रही है। हां इतना जरूर है कि इस मौत के बाद से आंदोलन में दहशत है।


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