किसानों की एक तरफ आंदोलन को तेज करने की चाहत तो दूसरी ओर फसल कटाई की चिंता
एक तरफ आंदोलन को तेज करने का किसानों पर दबाव है तो दूसरी तरफ उन्हें फसल की भी चिंता है। अगले 8-10 दिनों के अंदर सरसों की कटाई शुरू हो जाएगी। फसल के सीजन में ट्रैक्टर-ट्रालियों की भी दरकार होगी और किसान परिवारों को भी खेतों में जुटना होगा।
बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के बीच वार्ता को लेकर बने गतिरोध ने स्थिति विकट बना दी है। एक तरफ आंदोलन को तेज करने का किसानों पर दबाव है तो दूसरी तरफ उन्हें फसल की भी चिंता है। अगले 8-10 दिनों के अंदर बहादुरगढ़ क्षेत्र में तो सरसों की कटाई शुरू हो जाएगी। फसल के सीजन में ट्रैक्टर-ट्रालियों की भी दरकार होगी और किसान परिवारों को भी खेतों में जुटना होगा। उस स्थिति में आंदोलन के अंदर ऊर्जा बरकरार रख पाना भी चुनौती होगी।
स्थिति यह भी है कि 26 जनवरी के बाद दाेबारा से आंदोलन को पहले की तरफ खड़ा करने की जो कोशिशें हुई, वे भी धीरे-धीरे कम हो चुकी हैं। आंदोलन स्थल से लेकर शहर के अंदर तक प्रदेश के कई हिस्सों से जो नए ट्रैक्टर-ट्राली यहां लाए गए थे, वह अब दिखाई नहीं दे रहे हैं। टीकरी बॉर्डर से लेकर बाइपास पर जहां तक यह आंदोलन फैला है, वहां के अंतिम छोर तक किसानों की संख्या भी पहले से काफी कम है। ट्रैक्टर-ट्रालियों का काफिला तो उतनी ही दूर तक फैला दिखाई दे, मगर उतना घना अब नहीं है। इसकी वजह भी है। आंदोलन को तीन माह से ज्यादा समय बीत चुका है।
26 जनवरी को सरकार से अनेकाें बार बातचीत हुई। नए कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने और एमएसपी पर कमेटी गठन का प्रस्ताव सरकार की तरफ से दिया गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की ओर से भी काम शुरू किया गया, मगर किसान संगठन सीधे ही सरकार से कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानूनी गारंटी की रजामंदी चाहते हैं। ऐसे में एक सवाल है कि आखिर बात बने तो कैसे?