किसानों को सरकार के प्रस्ताव का इंतजार, तभी बैठक करके आंदोलन को लेकर लेंगे फैसला
सरकार के प्रस्ताव का ही है इंतजार है कि 26 जनवरी के बाद अब तक किसानों की ओर से आंदोलन को बढ़ाने के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई गई। जल्द ही सरकार की ओर से वार्ता का प्रस्ताव नहीं भेजा तो किसान आंदोलन को बढ़ाने के लिए नई रणनीति बनाएंगे।
बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन में हर रोज एक दिन बीत रहा है। आंदोलन के दिन बढ़ते जा रहे हैं, मगर न तो सरकार की तरफ से और ना ही अब तक किसानों की तरफ से आंदोलन को समाप्त करने की कोई ठोस पहल की गई है। प्रधानमंत्री की ओर से कहे गए आंदोलनजीवी शब्द के बाद किसान तिलमिलाए हुए हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से वार्ता की पहल किए जाने की बात पर किसान नेता सरकार के प्रस्ताव का भी इंतजार कर रहे हैं। किसान नेता चाह रहे हैं कि सरकार वार्ता का प्रस्ताव भेजे ताकि वे उस पर विचार विमर्श करके वार्ता की तरफ कदम बढ़ा सकें।
सरकार के प्रस्ताव का ही है इंतजार है कि 26 जनवरी के बाद अब तक किसानों की ओर से आंदोलन को बढ़ाने के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई गई है। जल्द ही सरकार की ओर से वार्ता का प्रस्ताव नहीं भेजा तो एक-दो दिन में किसान नेता अपने आंदोलन को बढ़ाने के लिए कोई ना कोई रणनीति जरूर तैयार करेंगे। इसके लिए संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से लगातार सिंघु बॉर्डर पर बैठकर की जा रही है लेकिन अब तक आंदोलन को बढ़ाने का कोई भी रणनीति नहीं बनाई गई है।
भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहा के राज्य कार्यकारिणी सदस्य जसविंदर सिंह बताते हैं कि किसान मोर्चा के नेताओं की बैठक हर रोज हो रही है लेकिन हम सरकार की ओर से की जाने वाली वार्ता के प्रस्ताव का इंतजार कर रहे हैं। जैसे ही वार्ता का प्रस्ताव आता है तो उसको लेकर विचार-विमर्श किया जाएगा। अगर जल्द ही वार्ता को लेकर प्रस्ताव नहीं आया तो किसानों की ओर से बैठक करके आंदोलन की आगामी रणनीति तैयार की जाएगी। फिलहाल हम इस इंतजार में हैं कि प्रधानमंत्री ने जो बात राज्यसभा में कही थी, वो अपनी बात पर कितने दिन बाद कायम होंगे।
उसी के भरोसे हम आंदोलन को चला रहे हैं। हमें विश्वास है कि प्रधानमंत्री की ओर से वार्ता का निमंत्रण जल्द से जल्द आएगा और प्रस्ताव भी अच्छा होगा। सरकार जो संशोधन इन कानूनों में करना चाहती है, वह क्या है उससे ही पता चलेगा कि यहां आंदोलन लंबा चलेगा या खत्म होगा। अगर सरकार का प्रस्ताव अच्छा रहा तो किसान खुशनुमा माहौल में वार्ता करेंगे, अन्यथा आगामी रणनीति बनाकर आंदोलन को और तेज करेंगे। उधर, आंदोलन में प्रदेश की खापों का भी वर्चस्व बढ़ने लगा है।
दलाल खाप 84 ने 12 फरवरी को महापंचायत बुलाकर प्रदेश की सभी 102 खापों व तपों को बुलावा भेजा है। राकेश टिकैत, गुरनाम चढूनी समेत संयुक्त किसान मोर्चा के सभी 40 नेताओं को भी इस महापंचायत में भाग लेने के लिए निमंत्रण भेजा गया है।