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Farmers Protest: हरियाणा में यह आंदोलन सिर्फ और सिर्फ चौधर बरकरार रखने की लड़ाई

यह भी रेखांकित करने वाली बात है कि यह आंदोलन हरियाणा में कभी किसानों का आंदोलन नहीं रहा। यह जमींदारों का आंदोलन रहा और खास तौर से पंजाब के जमींदारों का। हरियाणा तो केवल आंदोलनस्थल रहा और है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 11:22 AM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 11:24 AM (IST)
Farmers Protest: हरियाणा में यह आंदोलन सिर्फ और सिर्फ चौधर बरकरार रखने की लड़ाई
चौधर की जंग : राकेश टिकैत। फाइल

हिसार, जगदीश त्रिपाठी।  कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के मंच से भले ही इसके अराजनीतिक होने का दावा किया जाए, लेकिन यह शुरू से ही राजनीति प्रेरित रहा है। वैसे भी हरियाणा में यह आंदोलन सिर्फ और सिर्फ चौधर बरकरार रखने की लड़ाई है। चौधर की बात बाद में पहले आंदोलन के राजनीति प्रेरित होने पर। जींद की कांग्रेस नेता विद्यारानी की एक वीडियो क्लिप वायरल हो रही है, जिसमें वह कह रही हैं, हमारा हौसला तो खत्म हो ही चुका है, लेकिन ये आंदोलन जो हमें मिला है न, ये 26 तारीख को खत्म हो चुका था। ये दोबारा से खड़ा हुआ और इतनी मजबूती से खड़ा हुआ कि इसे हमें चलाना है।

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किसानों ने तो अपनी किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी। हमें उनके साथ रहना है, उनकी मदद करनी है, ताकि आंदोलन जिंदा रहे। हर जगह उन्होंने अपने खाने-पीने का जितना हो सका इंतजाम किया। मैं यही कहूंगी कि हर साथी की जितनी हिम्मत है चाहे वह रुपये दान कर सकता है, सब्जियों का दान कर सकता है, घी का दान कर सकता है, जैसे शराब का भी कर सकते हैं। अपनी तरफ से जिससे जो भी सहयोग बनता है करें और इस आंदोलन को बढ़ाएं।

कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़कर हार चुकीं विद्यारानी कोई पहली कांग्रेस नेता नहीं हैं जो आंदोलनकारियों को मदद देने की बात कह रही हैं। हां, उन्होंने शराब देने की बात भी कह दी। बाकी यह तो सब जानते हैं कि हरियाणा में आंदोलन के पीछे कांग्रेस के नेता हैं। गुरनाम सिंह चढूनी की तो कांग्रेस नेताओं से संबंधों को लेकर फजीहत भी हो चुकी है। सर दीनबंधु छोटूराम की जयंती के अवसर पर रोहतक के सांपला में आयोजित कार्यक्रम में राकेश टिकैत के साथ गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा भी- भाजपा को वोट मत देना, भले ही काले चोर को दे देना।

हरियाणा के जो लोग आंदोलन के समर्थन में हैं, वे प्रकारांतर से चौधर की जंग लड़ रहे हैं। अतीत की बात करें तो जमींदार ही किसानों के सबसे बड़े शोषक रहे हैं। देश के कई हिस्सों में खुद को जमींदार बताते हुए लोग गर्व की अनुभूति करते हैं। कालांतर में अपवादों को छोड़कर सारे जमींदार किसान हो गए, क्योंकि खेती की भूमि बंट गई। हरियाणा में भी ऐसा ही है, लेकिन यहां के किसान अभी तक जमींदार वाली मानसिकता से नहीं उबर पाए हैं। उनकी चाहत चौधर की होती है। कांग्रेस के नेता अतीत में चौधर का इस्तेमाल करते रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक, सोनीपत और झज्जर में चौधर का हवाला देते हुए चुनावों के दौरान नहीं थकते थे। रणदीप सुरजेवाला ने भी चौधर का हवाला दिया था, लेकिन कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाए। चौधर हमारी हो- इसी प्रवृत्ति का करिश्मा है कि सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, कैथल, जींद में चौटाला परिवार का झंडा बुलंद रहता है। लेकिन किसानों का एक वर्ग ऐसा भी है, जिसके पास खेती की भूमि पहले से ही कम थी। जातीय चश्मे से देखें तो वे सैनी, गूजर, यादव हैं। हरियाणा के क्षत्रियों और ब्राrाणों को भी उन्हीं की श्रेणी में रख सकते हैं। इसीलिए वे इस आंदोलन से दूर हैं, क्योंकि उनकी मानसिकता ही चौधर हासिल करने की नहीं है। वे जमींदार नहीं हैं। इसलिए वे इससे दूर ही रहे। जमींदार मानसिकता वाले किसान ही इसमें शामिल हुए, लेकिन आंदोलन की कमान पंजाब के लोगों के हाथ में ही रही।

हरियाणा आंदोलन के केंद्र में इसलिए रहा कि यह दिल्ली से सटा हुआ है। गणतंत्र दिवस में दिल्ली में हुए उपद्रव के बाद पंजाब के लोग बैकफुट पर आ गए, लेकिन उत्तर प्रदेश के राकेश टिकैत जब आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे, तो आंदोलन उनके हाथ में आने के साथ ही हरियाणा के लोगों में उनके समर्थन में आने की होड़ लग गई। राकेश टिकैत के हाथ में आंदोलन आते ही, उनको लगा कि आंदोलन की चौधर हमारे हाथ में आ गई है। विचारणीय है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत दौरे नहीं कर रहे। वह हरियाणा में पंचायतें कर रहे हैं, क्योंकि वहां उनको इतना समर्थन नहीं मिलता, जितना हरियाणा में मिल रहा है।

अब बात वामपंथियों की। इस आंदोलन में कई वामपंथी नेता कमांडर बने हुए हैं। कम्युनिस्ट पार्टयिों के कार्यकर्ता और फ्रंटल संगठन सक्रिय हैं। लेकिन वे इस पर चर्चा नहीं करते कि आंदोलन किसानों का है या जमींदारों का। ऐसा नहीं है कि वे यह नहीं जानते कि सही क्या है और गलत क्या है। लेकिन जिस तरह से हरियाणा में उनकी प्रजाति लुप्त हो रही है, उन्हें लगता है कि इस जमींदारों के आंदोलन को किसानों का आंदोलन बताकर वे हरियाणा-पंजाब में एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं।

[प्रभारी, हरियाणा राज्य डेस्क]


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