टिकरी बार्डर पर लंच आलू-गोभी और डिनर मटर-पनीर के सब्जी के साथ कर रहे किसान
नित्य क्रिया से निपटने के बाद धरने पर बैठे किसानों के दिन की शुरुआत चाय-नाश्ते से होती है। पंजाब व हरियाणा के किसानों की ओर से दिए जा रहे दूध और पाउडर से बनाए गए दूध से बड़े पतीले में किसान चाय बनाते हैं। आपस में हंसी-मखौल होते हैं।
बहादुरगढ़, जेएनएन। कृषि कानूनों को लेकर पंजाब में अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर टीकरी बॉर्डर पर डटे किसान बिल्कुल फिक्रमंद होकर आंदोलन कर रहे हैं। यहां पर किसानों की घर जैसा रोजमर्रा जीवन तो नहीं रहा लेकिन वे अपने भविष्य को संवारने के लिए हंसी-खुशी धरने में शामिल हैं। नित्य क्रिया से निपटने के बाद धरने पर बैठे किसानों के दिन की शुरुआत चाय-नाश्ते से होती है। पंजाब व हरियाणा के किसानों की ओर से दिए जा रहे दूध और पाउडर से बनाए गए दूध से बड़े पतीले में किसान चाय बनाते हैं। बिस्किट व फैन के साथ चाय की चुस्की लेते हुए आपस में हंसी-मखौल होते हैं।
कुछ देर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने के बाद नहाने व कपड़े धोने लग जाते हैं। कुछ किसान आसपास के ट्यूबवेल के नीचे नहाते हैं तो कुछ यहां के किसानों व समाजसेवियों की ओर से टैैंकरों से भरवाए गए पानी को गर्म करके नहाते हैं। किसान गर्म पानी करने का लकड़ी वाला गीजर भी साथ लेकर आए हैं। किसानों को अब यहां हर प्रकार की मदद मिलने लगी है। हां रात के वक्त ठंड की मार जरूर झेलनी पड़ रही है।
दोपहर का खाना
इसके बाद दोपहर के खाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। टमाटर, प्याज, अदरक, लहसुन, मैथी आदि से छौंक लगाकर गाजर, मूली, गोभी, आलू व मटर की मिक्स सब्जी बनाई जाती है। कुछ किसान छोले, राजमा, चावल व अन्य दाल बनाते हैं। साथ में मूली, प्याज, शलगम आदि का सलाद होता है।
शाम को चाय की चुस्कियां
खाना खाने के बाद अलग-अलग स्थानों पर चल रही सभाओं में जाकर किसान दिनभर में आंदोलन की गतिविधियों से रूबरू होते हैं। कुछ घंटे यहां बिताने के बाद तीन-चार बजे फिर से चाय की चुस्कियों का दौर चलता है। किसान डिनर की तैयारियों में जुट जाते हैं। कुछ किसान सरसों दा साग दे विच मिस्सी दी रोटी बनाते हैं तो कुछ दिन में दूध को फाड़कर खुद बनाए गए पनीर की सब्जी बनाते हैं। इसमें भी अलग-अलग। कुछ मटर पनीर तो कुछ पालक पनीर बनाते हैं। इस तरह खा-पीकर अगले दिन के आंदोलन के लिए तैयार होने के लिए सो जाते हैं।
महिलाएं संभालती हैं चूल्हा चौका
कुछ जत्थों में शामिल महिलाएं ही चूल्हे-चौके का काम संभालती हैं। इतना ही नहीं जो किसान सभा में नहीं जाता तो वो ताश खेलकर दिन गुजार रहे हैं। इतना ही नहीं महिलाएं हरियाणा के लोगों की ओर से लगाए गए भंडारों में भी खूब सहयोग कर रही हैं।