रेतीले टीलों पर कश्मीरी सेब की खेती कर रहे किसान धमेंद्र, कृषि वैज्ञानिक भी हैरान
हरियाणा के दादरी जिले में एक किसान ने रेतीली मिट्टी में ही सेब की खेती करनी की ठानी है। महज ठानी ही नहीं बल्कि सेब के पौधे भी लगा लिए जो कि खेतों मेें लहला रहे हैं।
चरखी/दादरी [पवन शर्मा] सेब फल का नाम सुनते ही ध्यान अपने अाप कश्मीर की वादियों में चला जाता है। सेब की फसल भी इसी तरह के मौसम और वातावरण में हो पाती है। मगर हरियाणा के दादरी जिले में एक किसान ने रेतीली मिट्टी में ही सेब की खेती करनी की ठानी है। महज ठानी ही नहीं बल्कि सेब के पौधे भी लगा लिए जो कि खेतों मेें लहला रहे हैं। जल्द ही इन पर फल लगना भी शुरू हो जाएगा। जिस मिट्टी में पानी के अभाव में मौसमी फसलें भी सही से नहीं उग पाती वहां सेब के पौधों को लगा देख हर कोई हैरान रह जाता है। गांव कान्हड़ा निवासी धर्मेंद्र सिंह अपने खेत के डेढ़ एकड़ रकबे में सेब का बाग लगा रहे हैं। इस रेतीले क्षेत्र के गर्म तापमान में सेब की खेती करना अपने आप में हैरानी का विषय है।
किसान द्वारा खेत में पहले भी दर्जन भर पेड़ लगा कर उनसे सेबों का उत्पादन कर कृषि जगत के वरिष्ठ वैज्ञानिकों को हैरान कर चुके हैं। देश में सेब की खेती केवल बर्फीले सर्द क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में ही संभव है। हरियाणा, पंजाब व राजस्थान जैसे प्रदेशों के किसानों व बागवानी उत्पादकों ने अन्य सभी फलों के पेड़ों को उगाना शुरू कर दिया लेकिन अभी तक सेब की खेती करने के बारे में कोई बात सामने नहीं आई थी।
पहले विशेषज्ञों ने नाकामयाब बताया, फिर थपथपाई पीठ
गांव कान्हड़ा के किसान ने अपने खेत में पहली बार दर्जन भर सेब के पेड़ लगा कर कृषि वैज्ञानिकों की टीम को बुलाकर दिखाया तो सभी ने क्षेत्र के गर्म लू के थपेड़ों को देखते ऐसी खेती को नाकामयाब बताया। उन्होंने इस पर बेवजह पैसे, समय व खेतीबाड़ी व्यवस्था बर्बाद न करने की सलाह दी। किसान धर्मेद्र सिंह ने एक विशेष कीटनाशक का इस्तेमाल कर उन पेड़ पौधों का संरक्षण किया तो आज वह फल देने के लायक बन गए। जिसके बाद दोबारा पहुंची वैज्ञानिकों की टीमों ने सेब के पेड़ों की मजबूत स्थिति को देख कर उसकी पीठ थपथपाई और उनके हौसलों को बधाई दी।
किसान बोला- रेतीली भूमि को कम आंकना गलत, कर रहा हूं साबित
किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि दक्षिणी हरियाणा की रेतीली भूमि को कम आंकना सबसे लिए बुरी बात हैं क्योंकि यहां पर बीस वर्ष पहले हर तरह का फल, सब्जी बाहर से मंगवाया जाता था लेकिन मौजूदा समय में संतरा, माल्टा, आंवला, निबू, टमाटर इत्यादि सभी फल सब्जी आज यहीं पर अधिक मात्रा में उगाकर दूसरे शहरों में भेजी जा रही हैं। आज का किसान किसी तरह के भय में आने की बजाए नवीनतम तकनीकी के इस्तेमाल से कृषि के साथ ही बागवानी से बड़ा मुनाफा कमा सकता है। उन्होंने कहा कि दस वर्ष पहले ही पहले उन्नत किस्म के आंवले, माल्टा, नींबू की नई किस्मों का उत्पादन कर खेती की परंपरागत व्यवस्था में बदलाव किया। अब सेब के दर्जन भर से अधिक पेड़ दो वर्ष पहले बोऐ थे। आज वह फल देकर इतिहास रचने के हालत में पहुंच गए हैं।
ऐसे में तो कृषि नहीं होगी घाटे का सौदा
किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि कृषि के अलावा बागवानी में भी ध्यान देगा तो उसका भविष्य संवर जाएगा और कृषि को घाटे का सौदा कहने से निजात मिलेगी। उन्होंने अपने खेत में पहले बोऐ गए पेड़ों की मजबूती स्थिति से मिले ज्ञान से अब डेढ़ एकड़ भूमि में दो से तीन फिट गहरे गड्ढे खुदवा कर उनमें एक विशेष प्रकार से घर पर तैयार देशी खाद समेत काली मिट्टी डाली गई है और जनवरी के प्रथम सप्ताह में कश्मीर व हिमाचल प्रदेश से नई किस्मों के सेब के पौधे लाकर लगाए जाऐंगे। इस बाग के उद्घाटन कार्यक्रम में प्रदेश के बागवानी विभाग के बड़े-बड़े अधिकारियों के अलावा कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिकों समेत उत्तरी भारत के हजारों प्रगतिशील किसानों को भी आमंत्रित किया जाएगा।
कड़ी मेहनत से ही सेब का बाग लगना संभव
कृषि विकास अधिकारी डा. रणबीर सिंह मान ने कहा कि प्रत्येक कृषि की फसलों के अलावा फल, सब्जी अलग अलग मौसम के वातावरण पर निर्भर करती है। सर्दी के आगमन के साथ ही अब कई फसलों की बिजाई की गई है वहीं नरमा, बाजरा, ग्वार की फसलें व कुछ फल अप्रैल माह के बाद बोई जाती हैं। किसान धर्मेंद्र सिंह ने पहले भी उन्नत किस्म के कई फल उत्पादन किए हैं और अब सेब पर भी उनका पूरा ध्यान है। उनके खेत में दर्जनभर पेड़ पहले से ही सेब का उत्पादन दे रहे हैं। इसलिए वे अब और भूमि के रकबे पर हजारों पेड़ लगाने में जुटे हैं।