किसान आंदोलन : पहले सियासी हलचल पर नजर, उसके बाद आगामी रणनीति पर होगा फैसला
तीन कानूनाें के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन अब राजनीतिक विरोध और पार्टी विशेष के खिलाफ गोलबंदी पर केंद्रित हो रहा है। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद जिस तरह से वार्ता को लेकर गतिरोध बना है उसमें यह लड़ाई राजनीतिक ज्यादा बनती जा रही है।
बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि कानूनों को लेकर चल रहे आंदोलन के बीच संयुक्त मोर्चा के सदस्यों समेत तमाम आंदोलनकारियाें और राजनीतिक दलों के समर्थकों की नजर बुधवार को होने वाली हलचल पर टिकी है। इसी वजह से संयुक्त मोर्चा की ओर से भी बैठक को टाल दिया गया है और अब यह बैठक 11 मार्च को प्रस्तावित है। समझा जा रहा है कि पहले अविश्वास प्रस्ताव के नतीजे को समझा जाएगा और उसके बाद आगामी रणनीति पर फैसला होगा।
इसकी वजह भी साफ। तीन कानूनाें के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन अब राजनीतिक विरोध और पार्टी विशेष के खिलाफ गोलबंदी पर केंद्रित हो रहा है। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा और लाल किले की घटना के बाद जिस तरह से वार्ता को लेकर गतिरोध बना हुआ है, उसमें यह लड़ाई राजनीतिक ज्यादा बनती जा रही है। पिछले दिनों बहादुरगढ़ में लगभग 40 संगठनों ने मिलकर हरियाणा का अलग से संयुक्त मोर्चा बनाया और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ चुनावी राज्यों में जाकर प्रचार करने पर भी मंथन हुआ।
वैसे तो संयुक्त मोर्चा के कुछ नेता मार्च की शुरूआत से ही चुनावी राज्याें में होने वाले कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं, मगर दूसरे सप्ताह के आखिर में पश्चिम बंगाल में जाने का भी मन बनाया हुआ है। दूसरी ओर बुधवार को विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के रूप में होने वाली सियासी हलचल के बाद वीरवार को यह इंतजार रहेगा कि संयुक्त मोर्चा की ओर से अपनी बैठक में क्या फैसला लिया जाता है। इसमें हरियाणा के संगठनों की ओर से भी प्रस्ताव रखा जा सकता है।