देर रात तक मोबाइल का इस्तेमाल आपको बना सकता है मिर्गी बीमारी का शिकार
मोबाइल, कंप्यूटर आदि का अत्याधिक प्रयोग भी मिर्गी रोग का कारण बन सकता है। मोबाइल प्रयोग करने वाले ज्यादा तनाव में आ सकते है, जिससे उन्हें मिर्गी के दौरों की संभावना बढ़ जाताी है।
सिरसा, जेएनएन। वर्तमान समय में मोबाइल, कंप्यूटर आदि का अत्याधिक प्रयोग भी मिर्गी रोग का कारण बन सकता है। मोबाइल प्रयोग करने वाले ज्यादा तनाव में आ सकते है, जिससे उन्हें मिर्गी के दौरों की संभावना बढ़ जाताी है। मिर्गी की बीमारी का मुख्य कारण तनाव है। अधिकतर यह बीमारी 12 से 18 वर्ष के बीच होती है। वर्तमान में युवा देर रात तक मोबाइल का प्रयोग करते रहते हैं, उनकी नींद पूरी नहीं होती। तनाव बढऩे के कारण उन्हें मिर्गी के दौरे आने लगते हैं।
मिर्गी रोग का अंधविश्वास के चलते लोग इलाज नहीं करवाते। वे इस देवी प्रकोप या ओपरी-पराई की चपेट मानकर इसका इलाज न करवाकर झाड फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं। मिर्गी का दौरा अगर एक बार आने लग जाए तो हो सकता है वह ताउम्र आता रहे और अगर सही समय पर पूरा इलाज करवाया जाए तो इस रोग से निजात भी मिल सकती है। बुजुर्ग भी इस रोग की चपेट में आ सकते हैं, उम्र के हिसाब से दिमाग का काम न करना या शराब के सेवन से वृद्ध अवस्था में दौरे पड़ सकते हैं।
मिर्गी दौरों के शिकार युवक युवतियों को एक और बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है और वो है उनके शादी विवाह में रूकावट। अक्सर लोग सोचते हैं कि मिर्गी दौरे आने वाले की संतान को भी यह शिकायत हो सकती है परंतु ऐसा नहीं है। इसके बहुत कम चांस होते हैं। मिर्गी ग्रस्त महिला को गर्भावस्था के दौरान नियमित दवाइयां दी जाए तो उसका बच्चा पूर्णत: स्वस्थ होता है।
मिर्गी की दवाइयां करीब तीन- चार साल तक चलती है। लगातार दवाइयां लें तो दौरा आने की शिकायत नहीं होती परंतु लोग लापरवाही बरत जाते हैं और दवाइयां बंद कर देते हैं, जिस कारण फिर से दौरों की शिकायत हो जाती है। रोगियों को पहले शिकायत रहती थी कि दवाइयों से सुस्ती आती है परंतु अब वर्तमान में ऐसी दवाइयां आ गई है, जिनसे सुस्ती नहीं आती और मरीज अपना काम कर सकता है। मिर्गी रोग से बचाव के इंजेक्शन भी आ गए है और नेजल स्प्रे भी आ रही है, जिसे मरीज के नाक पर छिड़क कर राहत पहुंचाई जा सकती है।
मिर्गी के रोगी वाहन कदापि न चलाएं। उन्हें कभी भी दौरे की शिकायत हो सकती है, इसलिए वाहन चलाते समय हादसा होने का भय है। ज्यादा शोर व ज्यादा लाइट वाली जगहों पर न जाएं। नशा न करें। कई बार रोगी को बुखार आता है तो वह मिर्गी की दवा बंद कर देता है, जिससे दौरों की शिकायत फिर से शुरू हो सकती है। अनेक बार रोगी लगातार दवाइ लेने के बाद दौरों की शिकायत न होने पर भी दवा बीच में बंद कर देता है, जिससे भी यह रोग फिर से अपना असर दिखाना शुरू कर देता है।
विदेशों में मिर्गी प्रभावितों के कार्ड बने होते हैं। मरीज को अगर दौरा पड़ जाए तो कार्ड पर लिखा होता है कि मरीज के इस जेब में स्प्रे पंप है, जिसे निकाल कर मरीज को राहत पहुंचाई जा सकती है।
मिर्गी के दौरे का इलाज है संभव
मनो चिकित्सक एवं नशा मुक्ति केंद्र सिरसा प्रभारी डा. पंकज शर्मा ने कहा कि मिर्गी के दौरे आना एक बीमारी है और इसका इलाज संभव है। हमारे देश में अभी भी मिर्गी को बीमारी नहीं माना जाता। इसे ओपरी पराई या दैवीय प्रकोप माना जाता है। मोबाइल, कंप्यूटर व इलेक्ट्रोनिक्स गैजेट के ज्यादा प्रयोग से तनाव बढऩे से भी दौरों की शिकायत हो सकती है। मिर्गी रोगी का पूरा इलाज करवाया जाए तो दौरे आने बंद हो जाते हैं। नागरिक अस्पताल स्थित केंद्र में मिर्गी रोग से संबंधित रोजाना अनेक केस आते हैं।
70 लाख से अधिक लोग मिर्गी से प्रभावित : डा. जैन
डबवाली रोड स्थित फोर्टिस हस्पताल गुरुग्राम के मिर्गी दौरे के विशेषज्ञ डा. आरके जैन ने विश्व मिर्गी दिवस पर जानकारी देते हुए बताया कि भारत में 70 लाख से अधिक लोग मिर्गी से प्रभावित हैं। व्यस्कों की तुलना में बच्चों में मिर्गी रोग होने की सम्भावना अधिक रहती है। दौरा पडऩे की सम्भावना नवजात शिशुओं में और भी अधिक होती है परन्तु दौरा पडऩे के बहुत से कारण होते हैं जो कि अलग-अलग आयु वर्ग में अलग-अलग हो सकते हैं। मिर्गी के दौरे का इलाज आरम्भ करने से पहले यह निश्चित करें कि ये दौरे ही हैं, क्योंकि बच्चों में विभिन्न प्रकार की अन्य बीमारियां भी होती हैं जो दौरे की तरह प्रतीत होती हैं, जिन्हें पहचानना कई बार आसान नहीं होता।
दौरे के कारण : जन्म के समय बच्चे का न रोना, रक्त में कैल्शियम या शुगर की मात्रा कम हो जाना, सिर में चोट लगना, अनुवांशिक बीमारियां, दिमाग की संरचना में कमी या खराबी।
दौरे के लक्षण : आयु के अनुसार विभिन्न प्रकार की मिर्गी होती है और दौरे के लक्षण भी अलग हो सकते है, जैसे : हाथ-पैरों में जकडऩ व कम्पन, आंखों का ठहर जाना, बातचीत न कर पाना, मुंह में लार या झाग निकलना, एक हाथ या पैर अकडऩा या टेढ़ा हो जाना।
जांच कैसे करें : सबसे पहले तो आपको बच्चों के दिमाग के डॉक्टर के पास जाकर बच्चों को दिखाना चाहिए, तब पहले यह तय होगा कि यह दौरा है या नहीं? बच्चे की एमआरआइ, ईसीजी व खून की जांच के बाद दवा शुरू करनी चाहिए। उपरोक्त बातों का ध्यान रखने से 90 प्रतिशत मरीजों का दौरा पांच मिनट से पहले ही बंद हो जाता है। दौरे के दौरान मुंह में उंगली डालना, मुंह में चम्मच आदि से पानी डालना, जोर-जोर से हिलाकर होश में लाने का प्रयत्न करना, जूता या प्याज सुंघाना, मरीज के नजदीक भीड़ एकत्रित न होने देना।