इंग्लैंड के इंजीनियरों ने एचएयू में चार करोड़ से बिछाया अंतरराष्ट्रीय दर्जे का रेसिंग ट्रैक
रबड़ के दोनों ओर विशेष केमिकल के सॉल्यूशन के जरिए ट्रैक बनाया गया है। गिरी सेंटर में बने एथलेटिक ट्रैक को 1996 में सिंथेटिक ट्रैक बना दिया गया था। उसके बाद अब बनाया गया है।
हिसार, जेएनएन। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गिरी सेंटर में 400 मीटर का अंतरराष्ट्रीय दर्जे का रेङ्क्षसग ट्रैक बनकर तैयार हो गया है। इस ट्रैक को अंतिम रूप देने के लिए इंग्लैंड से विशेष इंजीनियर एचएयू में कुछ दिनों से अपनी निगरानी में ट्रैक का निर्माण करा रहे थे। खास बात है कि 400 मीटर के रेसलिंग ट्रैक को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की 1500 मीटर तक की दौड़ प्रतियोगिताएं भी आसानी से हो सकती हैं। इसकी गुणवत्ता ए-वन श्रेणी की रखी गई है।
यह श्रेणी अंतरराष्ट्रीय खेलों में ट्रैक के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। खिलाडिय़ों के प्रदर्शन में निखार आए इसके लिए ट्रैक के निर्माण में रबड़ के दानों और केमिकल के एक विशेष सोल्यूशन का प्रयोग किया है। इस सोल्यूशन को लगाने के लिए कर्मचारी भी विदेशों से ही आए हैं। इसमें आठ अलग-अलग लाइन बनाई गईं हैं। इस रेङ्क्षसग ट्रैक पर करीब 150 खिलाड़ी हर रोज प्रैक्टिस कर सकते हैं।
अत्याधुनिक ट्रैक का ऐसे हुआ निर्माण
इस ट्रैक को बनाने वाले इंजीनियर बताते हैं कि इसमें तारकोल के स्थान केमिकल सोल्यूशन पूरे ट्रैक पर बिछाते हैं, फिर इसके ऊपर से सिंथेटिक के बने दाने डाले जाते हैं। सोल्यूशन अपने आप ही सिंथेटिक के दानों को एडजस्ट कर लेता है। इसके बाद इस पर अगर कोई दौड़ लगाने के दौरान गिर भी जाता है तो चोटिल होने की संभावना कम रहती है।
23 साल बाद गिरि सेंटर में बन रहा ट्रैक
स्पोट्रर्स इंचार्ज डा. सुनील लेगा ने बताया कि गिरी सेंटर में बने एथलेटिक ट्रैक को 1996 में सिंथेटिक ट्रैक बना दिया गया था। इस ट्रैक की लाइफ 10 साल की होती है, लेकिन गिरी सेंटर का ट्रैक 23 सालों बाद भी चल रहा था। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ ने ट्रैक के नियमों में बदलाव भी किए हैं। इस कारण से नया ट्रैक नए नियमों के हिसाब से बनाया जाना प्रस्तावित था। इस ट्रैक पर जंप और थ्रो आदि प्रकार की खेल भी अब कराए जा सकेंगे। दरअसल, पिछले वर्ष विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से सिंथेटिक ट्रैक को बदलने के लिए भारत सरकार के खेल मंत्रालय को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था। जिसके बाद मंत्रालय की ओर से चार करोड़ 65 लाख की ग्रांट जारी की गई थी।
---खेलों और उनके तरीकों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बदलाव होते रहते हैं। खिलाडिय़ों को अपने यहां भी इस स्तर की सुविधाएं मिलें, इसके लिए विश्वविद्यालय ने इसी साल फरवरी में ए-वन श्रेणी का रेङ्क्षसग ट्रैक बनाने का निर्णय लिया। इस ट्रैक का काम अब लगभग पूरा हो चुका है।
-प्रो. केपी ङ्क्षसह, कुलपति, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय।