हिसार में तैयार हुई ग्लैंडर्स रोग का पता लगाने की एलाइजा टेस्ट तकनीक, विश्वभर में डिमांड
घोड़ों मे ग्लैंडर्स रोग का पता लगाने के लिए हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद ने एलाइजा टेस्ट तकनीक तैयार की है। इसकी विश्वभर में मांग है।
हिसार, [वैभव शर्मा]। ग्लैंडर्स बीमारी लगातार खतरनाक रूप धारणकर रहा है। पशुखासकर घोड़े इसकी चपेट में आ रहे हैं। यह मनुष्यों के लिए भी घातक साबित हो सकता है। इस जानलेवा बीमारी को पहचानने की तकनीक हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) द्वारा विकसति की गई है। ग्लैंडर्स बीमारी को पहचानने के लिए विकसित एलाइजा टेस्ट तकनीक की देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में डिमांड है। इस तकनीक को लेने के लिए कनाडा, फ्रांस, ईरान, ब्राजील और बांग्लादेश रुचि दिखा चुके हैं। एनआइसीई के चार वैज्ञानिकों की वर्षों की मेहनत के बाद यह टेस्ट किट ईजाद करने में सफलता मिली।
हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने खोजी तकनीक
इंटरनेशनल मार्केट में एलाइजा टेस्ट किट की बढ़ती डिमांड को देखते हुए एनआरसीई प्रबंधन ने हैदराबाद की जेनोमिक्स माल्युकुलर डायग्नोस्टिक प्राइवेट लिमिटेड से अनुबंध कर किट बनाने की जिम्मेदारी भी दे दी। इस किट के कॉमर्शिलाइजेशन के लिए भारत सरकार के ड्रग विभाग में लाइसेंस के लिए आवेदन किया गया है। इस किट से जानवरों व जानवरों से इंसानों में होने वाली खतरनाक बीमारी ग्लैंडर्स को चिह्नित कर उपचार किया जा सकेगा।
तकनीक लेने को कनाडा, फ्रांस, ईरान, ब्राजील, बांग्लादेश तक से आ रहे ऑफर , 2011 में शुरू हुई थी रिसर्च
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के डायरेक्टर रहे डा. आरके ङ्क्षसह ने वर्ष 2011 में एलाइजा टेस्ट किट ईजाद करने को रिसर्च शुरू कराई थी। इसके बाद नए डायरेक्टर डा. बीएन त्रिपाठी ने इस काम को मिशन मोड़ पर कराया। इस तकनीक को खोजने में प्रधान वैज्ञानिक डा. प्रवीन मलिक, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. हरिशंकर सिंघा ने दिन-रात एक कर दिया। इसके बाद किट को जर्मनी में स्थित ग्लैंडर्स की इंटरनेशनल लैब में परीक्षण के लिए भेजा गया। इसके बाद यह किट तैयार हो गई।
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एलाइजा टेस्ट किट में कैसे होती है जांच
एलाइजा, टेस्ट किट का नाम है। इसमें सबसे पहले ग्लैंडर्स से संदिग्ध जानवर का खून का सैंपल लिया जाता है। इन सैंपलों में से सिरम निकालकर उसे एलाइजा टेस्ट किट की प्लेट पर रखते हैं। कई प्रकार के केमिकल कंपाउंड मिलाए जाते हैं। इसके बाद ब्लड सेल्स में एंटीबॉडी या ग्लैंडर्स के एजेंटों को देखा जाता है।
एजेंट दिखते ही कन्फर्म हो जाता है कि जानवर को ग्लैंडर्स है। यही प्रक्रिया इंसानों के ब्लड के साथ की जाती है। टेस्ट किट में एक बार में 45 सैंपल रखे जा सकते हैं। हर सैंपल को चेक करने में करीब ढाई घंटे लगते हंै। मौजूदा समय में एनआरसीई के वैज्ञानिक एक टेस्ट सौ रुपये में करते हैं।
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क्या है ग्लैंडर्स बीमारी
ग्लैंडर्स घोड़ों की प्रजातियों में एक जानलेवा संक्रामक रोग है। यह बीमारी बरखोडेरिया मैलियाई नामक जीवाणु से फैलती है। घोड़े की नाक से खून बहना, सांस लेने में तकलीफ, शरीर का सूख जाना, पूरे शरीर पर फोड़े या गांठें बनना आदि इसके लक्षण हैं। यह बीमारी दूसरे पालतू पशु में भी पहुंच सकती है। यह बीमारी होने पर घोड़े को वैज्ञानिक तरीके से मारना ही पड़ता है।
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मनुष्यों पर ग्लैंडर्स का प्रभाव
ग्लैंडर्स घोड़ों से मनुष्यों में आसानी से पहुंच जाती है। जो लोग घोड़ों की देखभाल करते हैं या फिर उपचार करते हैं, उनको खाल, नाक, मुंह और सांस के द्वारा संक्रमण हो जाता है। मनुष्यों में इस बीमारी से मांसपेशियों में दर्द, सीने में दर्द, मांसपेशियों की अकडऩ, सिरदर्द और नाक से पानी निकलने लगता है।
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'' एलाइजा टेस्ट किट के कॉमर्शियल प्रयोग के लिए हमने हैदराबाद की कंपनी के साथ अनुबंध किया है। कंपनी ने किट तैयार भी कर ली है। जल्द ही इंटरनेशनल मार्केट में एलाइजा टेस्ट किट देश का नाम रोशन करेगी। कई देश हमसे इस किट को लेने के लिए डिमांड कर चुके हैं।
- डाॅ. बीएन त्रिपाठी, डायरेक्टर, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार।
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