ताने सुन नहीं मानी हार, 8वीं पास बहू की प्रेरणा से 'वर्किंग वुमन' बनीं 500 ग्रामीण गृहणियां
गांव की बहू सीमा ने 40 से अधिक स्वयं सहायता समूह बनाकर सशक्त नारी समृद्ध समाज की धारणा को मजबूती दी है। उन्हें पीएम संवाद के लिए राज्य प्रतिनिधित्व के लिए अवसर मिल चुका है।
फतेहाबाद [मणिकांत मयंक] देश डिजिटल बनता जा रहा है मगर आज भी ग्रामीण अंचल में मूलभूत एवं ढांचागत सुविधाओं का अभाव है। परंपरागत रीति-रिवाज और पिछड़ेपन के चलते ऐसे परिवेश में महिलाओं को काम करने की आजादी मिल पाने की राह आसान नहीं है। मगर हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गांव बीघड़ की बहू सीमा इन सब बातों से इत्तफाक नहीं रखती। भले ही वो आठवीं पास हैं मगर उनके सपनों की उड़ान इतनी बड़ी थी कोई भी दिक्कत राह का रोड़ा न बन सकी। वो खुद ही कामकाजी महिला नहीं बनी बल्कि अपनी ही तरह चौका चूल्हा संभालने वाली 500 महिलाओं को वर्किंग वुमन बना दिया।
गांव में चार साल पहले राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनने का मौका मिला तो आठवीं पास बहू सीमा ने दोनों हाथों से भुनाने की ठानी। लेकिन राह आसान न थी। पुरुष-प्रधान समाज की दकियानुसी सोच आड़े आई। पर वह नारी शक्ति थी। तानों को पी गई। दस महिलाओं को साथ लेकर रविदास के नाम से स्वयं सहायता समूह गठित कर स्वरोजगार से नारी सशक्तीकरण की मंजिल की ओर चल पड़ी। आंध्रप्रदेश व अन्य जगह ट्रेनिंग ली। सीमा की प्रेरणा से अब इस गांव में न्यूनतम 10 महिलाओं की सहभागिता वाले 40 से अधिक स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 500 नारी शक्ति आर्थिक तौर पर आजाद हैं।
महिलाएं सकुशल कर रही पुरुषों के लिए माने जाने वाले काम
स्वरोजगार से स्वावलंबन की सिद्धि ऐसी कि इनमें से अनेक महिलाएं पुरुषों के दखल में रहने वाले कार्य भी कर रही हैं। जोना व सुमन रानी दुकान चला रही हैं तो बबली ने बैंक से लोन लेकर गाड़ी निकलवा ली। उसने अपनी गाड़ी पति को चलाने के लिए दे दिया है। वह कहती है कि कोई और चलाए, इससे बेहतर है कि पति ही चलाएं। जोना कहती हैं कि स्वयं सहायता समूह के जरिये जो आर्थिक आत्मनिर्भरता मिली है, इस सुखद अनुभूति को वह बयां नहीं कर सकती। अब वह पैसों के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाती।
पीएम से संवाद के लिए मिला राज्य प्रतिनिधित्व का मौका
सीमा को प्रधानमंत्री संवाद कार्यक्रम के लिए राज्य से प्रतिनिधित्व का मौका मिला। 12 जुलाई को 11 राज्यों के स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधियों को पीएम नरेंद्र मोदी के समक्ष अपना अनुभव रखना था। टाइङ्क्षमग की वजह से हरियाणा का नंबर नहीं आ सका।
ग्राम संगठन के माध्यम से दिलाती हैं लोन
सीमा स्वयं सहायता समूहों को खुद की बचत, रोजगार चलाने तथा आर्थिक स्वावलंबन की अन्य गतिविधियों की मास्टर ट्रेनर बन गई हैं। वह ग्राम संगठन के माध्यम से समूह की महिलाओं को बैंकों से लोन का आर्थिक आधार दिलाती हैं। जरूररत के हिसाब से पैसे निकालने का ज्ञान भी देती हैं। इसके लिए बाकायदा पे-से नामक कार्ड भी मुहैया करवा गया है।
स्वावलंबन के साथ साक्षरता भी
जिस समय सीमा ने समूह की शुरुआत की थी, वह आठवीं पास थी। डेढ़-दो साल पहले उन्होंने 10वीं की। अब 35 साल की उम्र में 12वीं कर रही है। खुद तो शिक्षा का स्तर बढ़ा ही रही है, 50 निरक्षर महिलाओं को साक्षर बना चुकी है।
रोल मॉडल बन स्कूलों में साझा कर रही अनुभव
सरकार ने सीमा को जिले का रोल मॉडल बनाया है। वह स्कूलों में जाकर स्त्री-शिक्षा की अहमियत बयां कर रही हैं। छात्राओं को पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर होने के गुर दे रही हैं।