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बड़ी राहत : अगले 10 दिनों में भारत के बाजारों में उपलब्ध होगी DRDO की खोजी कोरोनारोधी दवा 2-DG

डीआरडीओ के विज्ञानी डा. सुधीर चांदना और डा. अनंत भट्ट ने कोरोनारोधी दवा की खोज कर ली है। उन्‍होंने कहा जिस दवा को हमने बनाया है उसका प्रयोग पहले भी कुछ वायरस पर किया गया है मगर सार्स कोविड-2 पर पहली बार है। यह दवा काफी असरदार साबित हुई है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 04:15 PM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 09:57 AM (IST)
बड़ी राहत : अगले 10 दिनों में भारत के बाजारों में उपलब्ध होगी DRDO की खोजी कोरोनारोधी दवा 2-DG
डा. सुधीर चांदना हिसार निवासी हैं और एचएयू से जेनेटिक्स में एमएससी करने के बाद डीआरडीओ में चयन हुआ था।

हिसार [वैभव शर्मा] कोरोना की रोकथाम के लिए देश में टीकाकरण जारी है। मगर दवा की उपलब्‍धता पूरी नहीं बन पा रही है। मगर इस बीच राहत की खबर आई है। अब देश में काेरोना की एक और दवा खोज ली गई है। दवा महज खोज ही नहीं ली गई है। बल्कि दस से 12 दिनों यह बाजारों में उपलब्‍ध होगी। ऐसे में कोरोना महामारी का अब डटकर सामना किया जा सकेगा।

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देश में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. अनिल मिश्रा, हिसार निवासी डा. सुधीर चांदना और डा. अनंत भट्ट ने कोरोनारोधी दवा (2-डीजी) की खोज कर ली है। डा. सुधीर बताते हैं कि बड़ी मात्रा में डा. रेड्डी लैब इस दवा का उत्पादन करने जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक 7 से 10 दिन में यह दवा बाजार में आने की संभावना है।

विज्ञानी डा. सुधीर चांदना और डा. अनंत भट्ट का कहना है कि इस दवा का प्रोडक्शन भी शुरू कर दिया गया है और हर राज्य में संभवत: यह सप्लाई भी की जाएगी। इस दवा की खोज का पूरा खर्चा डीआरडीओ और डा. रेड्डी लैब मिलकर उठा रहे हैं। हालांकि अभी तक हिसाब नहीं लगाया है कि प्रोजेक्ट पर अभी तक कितनी लागत आई है। यह दवा एक पाउडर के रूप में है और इसे पानी में मिललाकर दिया जाता है। मगर अभी इस पर सुधार के और भी प्रयोग चल रहे हैं।

कैसे इस दवा को लेकर डीआरडीओ की इस टीम को था विश्वास

वरिष्ठ विज्ञानी डा. चांदना ने बताया कि पिछले साल जैसे ही कोविड फैलनाा शुरू हुआ था हमें तभी विश्वास था कि 2- डीऑक्सी-डी ग्लूकोज (2-डीजी) सार्स कोव-2 पर असर दिखा सकती है। क्योंकि यह दवा उन्होंने पहले की कई खतरनाक वायरस पर प्रयोग की थी और काफी कारगर भी साबित हुई थी। हमारी टीम को पता था कि हम कोरोना की दवा बना लेंगे और हमने कर दिखाया।

वह बताते हैं इस दवा को बनाने में डीआरडीओ चीफ की सबसे प्रमुख भूमिका है क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से हर कदम पर साथ दिया। इस दवा को देश के 25 से अधिक अस्पतालों में मरीजों पर ट्रायल किया है। यह अस्पताल, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में स्थित हैं। हमने अपने शाेध में पाया कि 2-डीजी ड्रग सामान्य दवाओं के साथ मरीजों की दी गई, ऐसे में 30 फीसद अधिक इस दवा का फायदा मरीज को मिला।

एचएयू से एमएससी कर डीआरडीओ में बने थे विज्ञानी, ग्वालियर मिली थी पोस्टिंग

दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में डा. सुधीर चांदना ने कहा कि वह हिसार के सेक्टर 13 के रहने वाले हैं। उनके पिता स्व. जेडी चांदना ने हिसार से ही बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस शुरू की थी और हिसार जिला सहित हरियाणा में कई स्थानों पर जज भी रहे। डा. सुधीर के भाई विनीत चांदना हिसार में ही रहते हैं और वह बैंकर हैं। उन्होंने चंडीगढ़ डीएवी कॉलेज से अपनी बीएससी पूरी की इसके बाद हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाण कृषि विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ बेसिक साइंस से वर्ष (1987-89) जेनेटिक्स में एमएससी की पढ़ाई की। इसके बाद दिसंबर 1990 में उनका चयन डीआरडीओ में बतौर विज्ञानी हुआ।

डा. सुधीर ने डीआरडीओ के ग्वालियर स्थित सेंटर में तीन वर्ष तक काम किया। इसके बाद 1994 में डीआरडीओ के ही इंस्टीट्यूट अॉफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एप्लाइड साइंस में आ गए। उन्होंने बताया कि कोरोनारोधी दवा बनाने के दौरान हमें विश्वास था कि हमें कोरोना की दवा बना लेंगे और हमने कर भी दिखाया। जिस दवा को हमने बनाया है उसका प्रयोग पहले भी कुछ वायरस पर किया गया है मगर सार्स कोविड-2 पर पहली बार है। यह दवा काफी असरदार साबित हुई।

अप्रैल में शुरू हुई थी दवा बनाने की कोशिश

पिछले वर्ष अप्रैल माह में जब कोविड केस बढ़ रहे थे तब हमने इस दवा पर प्रयोग करने शुरू किए। हमने हैदराबाद के सीसीएमबी यानि सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड माॅलिकुलर बॉयोलोजी में जाकर कुछ प्रयोग किए। फिर मई माह में ड्रग कंट्रोलर को आवेदन किया कि हमें क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी जाए क्योंकि हमारे पहले प्रयोग काफी अच्छे रिजल्ट दे रहे हैं। यह दवा वायरस की पूरी ग्रोथ खत्म कर रही है। पहले सेल्स के ऊपर प्रयोग किए थे। इसके बाद ट्रायल की अनुमति मिल गई। इसके बाद डीआरडीओ और बतौर इंडस्ट्री सहयोगी डा. रेड्डी लैब के साथ क्लीनिकल ट्रायल किए।

अक्टूबर तक 110 संक्रमितों पर चले फेज 2 ट्रायल

डा. सुधीर बताते हैं कि मई से लेकर अक्टूबर 2020 तक फेज- 2 के ट्रायल चलते रहे। जिसमें 110 कोविड मरीजों पर यह प्रयोग किए। इन क्लीनिकल ट्रायल में पता चला कि काफी अच्छा फायदा हो रहा है। स्टेंडर्ड केयर की तुलना में हम मरीजों को दो से तीन दिन पहले ठीक कर पा रहे थे। फेज-2 की सफलता के बाद ड्रग कंट्रोलर के यहां फेज-3 के ट्रायल के लिए आवेदन किया।

220 मरीजों पर फेज-3 ट्रायल किया

डा. सुधीर ने बताया कि दिसंबर से लेकर मार्च 2021 तक 220 मरीजों पर फेज-3 ट्रायल किए गए। जिसमें परिणाम बताते हैं कि जो मरीज ऑक्सीजन पर निर्भर थे वह ऑक्सीजन से हट जा रहे हैं। ऐसे में यह दवा स्टेंडर्स प्रोसीजर के मुकाबले 30 फीसद अधिक फायदा कर रही थी। इस दौरान स्टेंडर्स केयर दवा के साथ यह दवा दी गई थी। इसका डाटा प्रस्तुत किया गया। यह ऑक्सीजन की जरूरत को कम करती दिखी, मरीज जल्दी रिकवर होते दिखे। अब इस दवा के आपातकाल प्रयोग की अनुमति मिल गई है। उन्होंने बताया कि हमें पूरी आशा है कि कोविड संक्रमितों की जान बचाने में मदद करेगी।


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