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क्‍या मरने के बाद भी पशुओं में रह जाता है टीबी रोग, दस भैंसों को मारकर होगी रिसर्च

हिसार जिले के 20 गांवों में घरेलू भैंसों की टीबी जांच की। इसमें कई टीबीग्रस्त मिले। इनमें 10 पशु चिह्नित किए है जिन्हें मारकर उन पर शोध किया जाएगा। इनका दूध भी पीने लायक नहीं है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 01:47 PM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 03:28 PM (IST)
क्‍या मरने के बाद भी पशुओं में रह जाता है टीबी रोग, दस भैंसों को मारकर होगी रिसर्च
क्‍या मरने के बाद भी पशुओं में रह जाता है टीबी रोग, दस भैंसों को मारकर होगी रिसर्च

हिसार [पवन सिरोवा] लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) और अमेरिका (यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया, पेन स्टेट, यूएसए) के वैज्ञानिक मिलकर पशुओं में ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) रोग पर एक नई रिसर्च कर रहे हैं। ब्लड सर्कुलेशन रुकने के बाद टीबी रोग पशु में मिलता है या नहीं, इसकी जांच के लिए शोधकर्ताओं ने टीबीग्रस्त 10 भैंसों को मारने की अनुमति मांगी है।

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साथ ही इन भैंसों को दफनाने के लिए नगर निगम से जगह मुहैया करवाने की मांग भी की है। हालांकि अमेरिका और भारत के संयुक्त शोध कार्य में पूर्व में हुए अध्ययन को जोड़ते हुए यह चिह्नित किया जाएगा कि पशुओं में टीबी रोग की सही पहचान कैसे हो और उसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है। बता दें कि टीबी संक्रमित रोग है और ये पशुओं से इंसानों और इंसानों से पशुओं में भी फैल सकता है। भैंसों को टीबी होने के बाद उनसे मिलने वाला दूध बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

इसलिए भैसों को मारने की जरूरत पड़ी

शोधार्थियों की टीम दो स्टेज पर टीबी रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर उसे कन्फर्म मानती थी। वहीं प्योरीफाई प्रोटीन डेरिवेटिव (पीपीडी) टीका लगाने के बाद जब पशुओं के दूध व खून की जांच की गई तो कुछ की टीबी रिपोर्ट नेगेटिव मिली, जो कि आश्चर्यजनक रहा। इसलिए जांच के तरीके को बेहतर करने और टीबी रोकथाम के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। इसी कड़ी में भैंसों को मारने की अनुमति मांगी गई है।

ये हैं दो स्टेज :

- पहली स्टेज पर टीका लगाने से पहले चमड़ी मापी जाती है। उसके 72 घंटे बाद चमड़ी पर सूजन आ जाए तो टीबी है। दूसरे चरण में 2 से 3 माह बाद फिर इसी प्रोसेस में सूजन मिले तो कन्फर्म पशु टीबी ग्रस्त है।

- तीसरा चरण : पशु की मौत यानी उसका ब्लड सर्कुलेशन रुकने के बाद उनके शरीर के अंदरुनी हिस्से का सैंपल लेकर उसकी जांच होगी कि वास्तव में इन्हें टीबी है या नहीं। मरने के बाद भी शरीर में टीबी के कीटाणु रहते हैं या नहीं, रहते हैं तो कितने समय तक। यह टेङ्क्षस्टग दोनों चरणों के एक माह बाद होगी। इसमें तीन प्रकार से उनकी जांच होगी।

यह भी जानें

शोध टीम पशुओं में बीसीजी का टीका लगाकर टीबी की रोकथाम करने पर भी काम कर रही है। शोध का परिणाम सकारात्मक रहा तो टीबी के इलाज में नई क्रांति लाई जा सकती है। इस प्रकार के शोधों पर कोलकाता, पंजाब, बंगलुरू की यूनिवर्सिटी भी मिलकर काम कर रही हैं।

20 गावों के कई पशु टीबी पॉजिटिव

दोनों देशों की संयुक्त टीम ने हिसार जिले के 20 गांवों में घरेलू भैंसों की टीबी जांच की। इसमें कई टीबीग्रस्त मिले। इनमें से पहले चरण में 10 पशु चिह्नित किए है, जिन्हें मारकर उन पर शोध किया जाएगा। किसानों को आर्थिक नुकसान न हो, इसलिए इन पशुओं को खरीदा जाएगा।

-----पशुओं में टीबी की जांच का तीसरा चरण जानने के लिए अमेरिका के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर हम रिसर्च कर रहे हैं। इस कड़ी में 20 गांवों की भैंसों के सैंपल लिए हैं। इनमें से 10 को पहले चरण में मारकर उनके अंदरुनी हिस्से के सैंपल लेकर जांच की जाएगी।

- डा. नरेश जिंदल, सीनियर वैज्ञानिक, पशु स्वास्थ्य एवं महामारी निदान विभाग, लुवास हिसार।


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