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हल्‍के में न लें पशुओं का टीकाकरण, जानें क्या है महत्व, किन-किन बीमारियों से होता है बचाव

किसी तरह का रोग पशुधन के स्वास्थय एवं उत्पादकता को मुख्य रूप से प्रभावित करने वाले कारक है। ये रोग विभिन्न प्रकार के जीवाणु विषाणु कवक या परजीवियों से उत्पन्न एवं प्रसारित होते हैं। इनसे बचाव के लिए टीकाकरण एक बड़ा सुरक्षा कवच है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Thu, 22 Jul 2021 01:04 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jul 2021 01:04 PM (IST)
हल्‍के में न लें पशुओं का टीकाकरण, जानें क्या है महत्व, किन-किन बीमारियों से होता है बचाव
पशुओं को अनेक बीमारियों से बचाने के लिए समय समय पर टीकाकरण करवाना बेहद जरूरी है

जागरण संवाददाता, हिसार। संक्रामक और असंक्रामक रोग पशुधन के स्वास्थय एवं उत्पादकता को मुख्य रूप से प्रभावित करने वाले कारक है। ये रोग विभिन्न प्रकार के जीवाणु, विषाणु, कवक या परजीवियों से उत्पन्न एवं प्रसारित होते हैं। संक्रामक रोग बहुत ही घातक होते है जिन से एक ही समय में बहुत बड़ा पशुधन घनत्व प्रभावित हो सकता है। संक्रामक रोगों से पशुपालकों को अत्याधिक नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि इनके कारण कई बार पशु की दो-तीन दिन में ही मृत्यु हो जाती है। असंक्रामक रोग एक पशु से दूसरे पशु में संचारित नहीं होते। खुरपका-मुहंपका, गलघोटू, ब्रूसीलोसिस, ब्लैक क्वार्टर और एंथ्रेक्स पशुओं में होने वाले कुछ प्रमुख संक्रामक रोग है। इन संक्रामक रोगों मे से कुछ बीमारियों से बचाव हेतु टीके उपलब्ध हैं। उचित समय पर पशुओं का टीकाकरण करा देने से कई रोगों से पशुओं को बचाया जा सकता है।

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खुरपका-मुंहपका रोग

यह एक विषाणु जनित रोग है, जिसमें पशुओं मे तेज बुखार आने के साथ ही मुंह और पैरों पर छाले बन जाते है। इस रोग से बचाव के लिए वर्ष में 2 बार (जनवरी-फरवरी एवं अगस्त-सितम्बर) टीकाकरण किया जाता है।

गलघोंटू रोग

गाय, भैंस, बकरी और भेड़ को प्रभावित करने वाला अत्यंत घातक जीवाणु जनित रोग है। तेज बुखार, मुख से लार सांस लेने मे तकलीफ, गले से गर्र-गर्र की आवाज आना और अचानक से मृत्यु इसके प्रमुख लक्षण है। इस रोग से बचाव हेतु वर्ष में 1 बार (मई-जून) टीकाकरण किया जाता है।

लंगड़ा बुखार

यह भी एक जीवाणु जनित रोग है, जिसका प्रसारण मिट्टी मे मौजूद स्पोर तथा संक्रमित चारे और पानी से होता है। इसमे पशुओं में तेज बुखार के साथ लगड़ापन आ जाता है। समय पर उपचार नहीं मिलने पर रोगी पशु की मृत्यु हो सकती है। इस रोग से बचाव के लिए भी गलघोंटू रोग की भांति ही वर्ष में एक बार (मई-जून) टीकाकरण किया जाता है।

ब्रुसेला रोग

पशुओं को संक्रमित करने वाला यह जीवाणु जनित रोग है जिससे ग्रसित होने पर पशुओं मे गर्भ के अंतिम तिमाही मे गर्भपात हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए राष्ट्रीय ब्रुसेला रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ब्रुसेला संभावित पशु झुण्ड में 5 से 8 माह की आयु के मादा पशुओं में ब्रुसेला स्ट्रेन-19 द्वारा टीकाकरण किया जाता है।

टीकाकरण करते समय ध्यान देने योग्य बातें-

- केवल स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण करें।

- निर्धारित ठंड शृंखला में टीके को बनाए रखा जाना चाहिए।

- टीका निर्माताओं के लिखे गए निर्देशों और खुराक का कड़ाई से पालन करें।

- टीकाकरण के 2-3 सप्ताह पूर्व पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलानी चाहिए, यह पशअों में बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक है।

- संभावित रोग प्रकोप के एक माह पूर्व टीकाकरण किया जाना चाहिए।

- जहां तक हो सके उन्नत गर्भावस्था में टीकाकरण नहीं करना चाहिए।

टीकाकरण विफलता के आम कारण

- कमजोर और बीमार पशुओं का टीकाकरण।

- रख-रखाव और कोल्ड चेन में कमी।स झुण्ड के सभी पशुओं में टीका न लग पाना।

- बार-बार एक ही शीशी को ठंड से बाहर निकालकर इस्तेमाल करना।

- टीके के स्ट्रेन और रोग जनक जीवाणु के स्ट्रेन के भिन्न प्रकार या उप प्रकार होने से।


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