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आंदोलन में दिख रहा छोटे और बड़े किसानों का फर्क, कोई तंबुओं में तो कोई लग्‍जरी ट्राॅली में रह रहा

एक तरफ आंदोलन का स्वरूप बदल रहा है तो दूसरी तरफ इसमें छाेटे और बड़े किसानों का फर्क भी साफ देखा जा सकता है। टीकरी बॉर्डर पर कोई तो बांस-बल्ली के तंबुओं में ठहरा है और कोई पंजाब से कमरानुमा ट्राली ही लेकर आ रहा है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 08:55 AM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 01:51 PM (IST)
आंदोलन में दिख रहा छोटे और बड़े किसानों का फर्क, कोई तंबुओं में तो कोई लग्‍जरी ट्राॅली में रह रहा
बहादुरगढ़ में पंजाब से लाई गई लग्‍जरी ट्रॉली जिसमें एसी भी लगी हुई है

बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि कानूनाें को लेकर दिल्ली की सीमा पर चल रहे आंदोलन को अब साढ़े चार माह पूरे होने काे हैं।मौसम में बदलाव के साथ ही एक तरफ आंदोलन का स्वरूप बदल रहा है तो दूसरी तरफ इसमें छाेटे और बड़े किसानों का फर्क भी साफ देखा जा सकता है। टीकरी बॉर्डर पर कोई तो बांस-बल्ली के तंबुओं में ठहरा है और कोई पंजाब से कमरानुमा ट्राली ही लेकर आ रहा है। उसमें एसी भी फिट है।

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यह छोटे और बडे़ किसानों का ही फर्क दिखाता है।  आंदोलन स्थल पर कहीं से भी बिजली का तार जोड़ने के बाद यह ट्राली लग्जरी कमरा ही बन जाती है। अब  तापमान बढ़ रहा है तो ये एसी दिन ही नहीं रात में भी चल रहे हैं। अब आंदोलन में एसी लगी ट्राली जगह-जगह देखी जा सकती है। इस तरह का शगल पंजाब के किसानों में देखने को मिल रहा है। बताया जा रहा है कि इस तरह की ट्रालियो पर कई-कई लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। सिर्फ बाहर से ही नहीं बल्कि अंदर से भी इन ट्रालियो को किसी सुसज्जित कमरे का रूप दिया गया है।

24 घंटे तक केएमपी जाम करने की तैयारी

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से 10 अप्रैल को बहादुरगढ़ के एरिया से गुजरने वाले केएमपी एक्सप्रेस वे को 24 घंटों के लिए जाम करने का ऐलान किया गया है। इस दिन आंदोलनकारियों की ओर से इसी मार्ग पर सभा चलाई जाएगी। उसके बाद 13 अप्रैल को बैशाखी और 14 अप्रैल को भीमराव अंबेडकर का जन्मदिवस मनाया जाएगा।

बता दें कि किसानों ने इससे पहले पक्‍के निर्माण करना शुरू कर दिया था, मगर इस पर प्रशासन ने रोक लगा दी कुछ पर मामले भी दर्ज किए गए। मगर किसानों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। किसान प्‍लाईबोर्ड से कमरे बना रहे हैं तो वहीं ट्रैक्‍टर ट्रॉलियों को कमरानुमा बनाया जा रहा है। कुछ किसान तंबुओं में ही रह रहे हैं।

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