रामपाल को सजा में कोर्ट ने कही बड़ी व जरूरी बातें, फिल्म पीके व ओ माय गॉड का दिया उदाहरण
रामपाल केस में फैसले में कोर्ट ने गॉडमैन और राजनेताओं के संबंधों को उजागर किया और गुरुनानक देव से लेकर श्रीकृष्ण से जोड़कर धर्मगुरुओं के कर्म और कर्तव्यों के बारे में बतलाया
जेएनएन, हिसार। रामपाल को कोर्ट ने हत्या के दाे मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अपने फैसले में कोर्ट ने धर्म गुरुओं के कर्म और दायित्वाें का उल्लेख किया तो धर्म के नाम पर भोले भाले लोगों को धोखा देने वालोें की ओर भी इंगित किया। इस क्रम में अदालत ने बॉलीवुड फिल्मों पीके और ओ माय गॉड का भी विशेष जिक्र किया। अपने फैसले में स्व घोषित इन देवताआें के प्रति लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत बताई गई। इसके साथ ही धर्म और राजनीति को एक-दूसरे से दूर रखने की सलाह भी दी गई।
अदालत ने श्रीकृष्ण से जोड़कर धर्मगुरुओं के कर्म और कर्तव्यों का उल्लेख किया। जज ने उम्रकैद को लेकर लोगों में अलग-अलग धारणाओं को स्पष्ट किया। इसके लिए उम्रकैद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले को विशेष रूप से कोट किया गया।
फैसले में कहा गया कि स्वयंभू देवता और इनसे जुड़े राजनेता मिलकर भोले-भाले लोगों को प्रभाव में लेते हैं और उनका प्रयोग करते हैं। फैसले में इस क्रम में 'पीके' और 'ओ माय गॉड' जैसी फिल्मों का विशेष रूप से जिक्र किया गया है। जज ने लिखा कि इन फिल्मों ने स्वयं घोषित देवताओं के प्रति लोगों को जागरूक किया था। कथित गॉडमैन अपने साम्राज्य और संपत्ति के चक्कर में भोले भाले लोगों का इस्तेमाल करते हैं।
फैसले में धर्म और राजनीति को दूर रखने का संकेत भी दिया गया है। जज ने लिखा कि डाॅ. अंबेडकर के धर्म और राजनीति को अलग-अलग रखने की सलाह दी है। फैसले में काला जादू अधिनियम की तरह नए कानून बनाने की बात भी कही गई है। इसमें कहा गया है कि जागरूकता ही इन स्वं घोषित देवताओं से बचने का उपाय है। इसमें कहा गया है कि धर्मगुरु के संस्थानों के धन और संपत्ति का ऑडिट आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। दानदाताओं की सूची जारी होनी चाहिए। जमा खर्च में पारदर्शिता होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले बने रामपाल की सजा का आधार
रामपाल व अन्य दोषियों को सजा सुनाने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए कई फैसले आधार बने। फैसले में विशेष अदालत ने इन फैसलाें का भी उल्लेख किया है।
- मोहिंद्र वर्सिज स्टेट ऑफ पंजाब (सुपरा) के आधार पर उम्रकैद का मतलब 14, 20 और 30 साल की सजा नहीं है। यह प्राकृतिक मृत्यु तक जेल में रखना है।
- श्याम नारायण वर्सिज स्टेट ( एनसीटी ऑफ दिल्ली) 2013 (7) एससीसी 77 का हवाला देकर कहा कि सजा देते वक्त दिमाग में यह होना चाहिए। जो सजा दी जा रही है, वो केवल सजा न होकर, एक समाजिक लक्ष्य भी है। सजा का सिद्धांत यह होना चाहिए कि अपराधी को अहसास हो की उसने अपराध किया है। उसने किसी के जीवन को ही क्षति नहीं पहुंची है। अपितु समाजिक ताने बाने पर चोट हुई है।
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भगवान राम और गुरुनानक जैसे महापुरुष रहे सभ्यता के निर्माता
फैसले में जज ने लिखा है, विश्व में भारत की पहचान उसके समाज और संस्कृति की वजह से है। भारत की संस्कृति बहुत ही उन्नत रही है। हमारी शिक्षा और सिद्धांत हमारे महापुरुषों द्वारा हमें दिए गए है। भारत श्रीकृष्ण, भगवान राम, भगवान बुद्ध की पवित्र भूमि रही है। वर्तमान समय में हम अपने सच्चे महापुरुष व्यक्ति को नहीं पहचान पा रहे हैं। यहां तक की आज भी बहुत से संत और गुरु अध्यात्म के मार्ग पर ले जाने के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे हैं। लेकिन इस तरह के प्रकरण ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है।
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अध्यात्म और शांति की तलाश में फंसते हैं लोग
इसमें लिखा गया है, लोग अध्यात्म और शांति की तलाश में फर्जी गॉडमैन के जाल में फंस जाते हैं। स्थिति तब और भी मार्मिक हो जाती है, जब राजनेता उनके साथ मिल जाते हैं। यह बात इन फर्जी गॉडमैन को और अधिक ताकतवर और प्रभावशाली बना देती हैं। मतदाताओं को प्रभाव में लेने के लिए गॉडमैन का राजनेता बखूबी प्रयोग करते हैं।
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यह दिया समाधान
फैसले में कहा गया है ऐसे लोगों और इन घटनाओं से बड़ी आसानी से बचा जा सकता है। यह अलग बात है कि उसे अमल में लाना मुश्किल है। सबसे मुख्य उपाय है जागरूकता, मीडिया और सोशल नेटवर्क की मदद से फर्जी गॉडमैन के प्रति लोगों को जागरूक किया जाए।