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दर्द ने जख्म को पहचाना, शुरू हुआ संघर्ष का कारवां; अपनी जैसी पीड़िताओं को भी दे रही हौसला

हिसार की सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता ने हिम्मत नहीं हारी। उसने खुद को खड़ा किया और फिर पीड़िताओं की मदद का बीड़ा उठा दिया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 10:22 AM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 10:43 AM (IST)
दर्द ने जख्म को पहचाना, शुरू हुआ संघर्ष का कारवां; अपनी जैसी पीड़िताओं को भी दे रही हौसला
दर्द ने जख्म को पहचाना, शुरू हुआ संघर्ष का कारवां; अपनी जैसी पीड़िताओं को भी दे रही हौसला

हिसार [अमित धवन]। जिंदगी में घटित खौफनाक घटनाएं कई बार मनुष्य को तोड़ती नहीं, बल्कि उसे और मजबूत करती हैं। संवेदनाओं के साथ हिम्मत को जगह देती हैं। एक उदाहरण है आठ साल पहले हिसार जिले में हुई सामूहिक दुष्कर्म कांड की पीड़िता का। इन्होंने न सिर्फ उसके साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम देने वालों को सजा दिलाई, बल्कि हरियाणा की दुष्कर्म पीड़िताओं का संगठन बनाकर इस दरिंदगी के खिलाफ बड़े पैमाने पर आवाज भी उठाई।

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ये संगठन अब ऐसी लड़कियों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था तो कर ही रहा है, उनकी कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। इतना ही नहीं, सामूहिक दुष्कर्म कांड की पीड़िता तो महज इसलिए लॉ की पढ़ाई कर रही हैं कि वकील बनकर बेटियों के साथ दरिंदगी करने वालों को सख्त से सख्त सजा दिला सकें। जुर्म के खिलाफ इंसाफ दिला सकें। इस बहादुर बेटी को नोबेल फाउंडेशन, ग्रास रूट और स्वाभिमान जैसी संस्थाएं सम्मानित भी कर चुकी हैं।

बता दें, 2012 में कुछ युवकों द्वारा नाबालिग का अपहरण कर सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उस घटना की वीडियो गांव में वायरल होने पर पीड़िता के बुजुर्ग पिता ने आत्महत्या कर ली थी। अनुसूचित जाति के हमदर्द संगठन एकत्रित हुए थे और काफी दिन शव तक नहीं उठाया गया था। इस मामले में मई 2015 में अदालत ने चार आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुनाई और चार को बरी कर दिया था। उस फैसले के खिलाफ पीड़िता हाई कोर्ट चली गई थीं, जहां मामला अब भी चल रहा है।

इस तरह दूसरों के लिए बनीं प्रेरक

घटना के बाद पीड़िता 2013 में ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क से जुड़ गईं। अब जहां से भी संगठन के पास इस तरह का केस आता, वहां पहुंचकर पीड़िता की काउंसिलिंग करतीं। बतातीं कि घृणा के पात्र वो हैं, जिन्होंने गलती की है। उनके इस काम को देख बाकी पीड़िताओं ने भी खुद को मजबूत किया। संगठन की ओर से पीड़िता को वकील भी उपलब्ध करवाया जाता है।

ऐसे बढ़ा कारवां

हरियाणाभर की पीड़िताओं को मिलाकर पीड़िता ने बोबो नाम से संगठन खड़ा किया। कारवां बना और एक के बाद एक 90 पीड़िता इससे जुड़ गईं। तय हुआ कि कोई भी अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ेंगी। सभी ने मिलकर पैसा एकत्रित करना शुरू किया। जिसको भी जरूरत होती वह उसकी फीस भरती हैं और दाखिला तक करवाती हैं।

डरना छोड़ दिया

सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद से मैंने ठान लिया है कि दुष्कर्मियों को सजा दिलानी है। मैं समाचार पत्र पढ़ती और दुष्कर्म पीड़िता से मिलने पहुंच जाती। उसको समझाती, पुलिस का रवैया, कोर्ट की प्रक्रिया देखती। पीड़िता परिवार से मिलकर काउंसिलिंग करती और समझौता न करके लड़ने की सलाह देती। खुद की स्टोरी बताकर औरों को मजबूत करती थी। बाद में एनजीओ के साथ जुड़ी और लगातार आगे बढ़ती रही। अब लॉ की पढ़ाई कर रही हूं, ताकि सब को न्याय दिलवा सकूं। इस दौरान काफी बार मेरे ऊपर हमले भी हुए, मगर मैं डरी नहीं, क्योंकि मैंने डरना छोड़ दिया है।

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