कोरोना की मार : कपास की फसल तैयार, चुगाई को नहीं मिल रहे मजदूर, खेत पहुंची बुजुर्ग महिलाएं
कपास की फसल की चुगाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं वहीं स्थानीय मजदूर भी कोरोना संक्रमण फैलने के डर से कम हैं। ऐसे में घर की बुजुर्ग महिलाएं भी खेत में काम कर रही हैं।
ढिगावामंडी [मदन श्योराण] कोरोना वायरस से बचाव काे लेकर लगाए गए लॉकडाउन में श्रमिकों का अपने प्रदेश चले जाना अब परेशानी खड़ा कर रहा है। कपास की फसल की चुगाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं वहीं स्थानीय मजदूर भी संक्रमण फैलने के डर से कम ही काम पर जा रहे हैं।
अब प्रदेश के कई जिलों में मूंग, ग्वार और बाजरे की फसलों की कटाई और कपास चुगाई दिखने लगी है। क्षेत्र में किसानों के खेतों में फसले पूरी तरह पक कर तैयार है। लेकिन अब क बार राजस्थान यूपी बिहार पंजाब से आने वाले प्रवासी मजदूर नहीं मिल रहे हैं और ना ही कटाई के लिए मशीन।
जिले में खेती करना दिनों दिन मुश्किल हो रहा है। खाद, बीज, दवाईयों व डीजल पर महंगाई व प्राकृतिक आपदाओं की मार तो थी ही, लेकिन फसल काटने के लिए सीजन में मजदूरों का संकट भी दिनोंदिन गहराता जा रहा है। ज्यादातर कपास चुगाई के लिए और बाजरा ग्वार कटाई के दौरान किसानों के समक्ष मजदूरों की कमी बड़ी मुश्किल का कारण बन रही है।
क्षेत्र के किसानों ने बताया कि कवास चुगाई और फसल कटाई का रेट बढ़ने के बावजूद फसल काटने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। सुबह-शाम दरवाजा झांकना पड़ रहा है। कोराेना वायरस की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में मजदूरी करने वाले मजदूर भी संक्रमण फैलने के डर के कारण नहीं आ रहे।
किसानों के लिए इस बार कपास की बिजाई बड़े नुकसान की वजह बन रही है। एक ओर कपास के भाव लागत से बहुत कम हैं तो वहीं नरमा चुगाई की मजदूरी बढ़ने से किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। किसानों के मुताबिक इस साल कपास चुगाई के रेट 1400 से 1500 प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं जबकि पिछले साल चुगाई का भाव 700 से 800 प्रति क्विंटल ही था। इस रेट के अलावा मजदूरों को लाने-ले जाने चाय आदि का खर्च भी काश्तकार को ही वहन करना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि मजदूरी बढ़ने के बावजूद मजदूरों की कमी भी महसूस हो रही है और काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।।
किसानों का कहना है कि नरमे के बीज से लेकर स्प्रे खाद आदि के दाम पिछले एक साल में 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़े हैं। किसानों ने जैसे-तैसे बंदोबस्त कर सभी खर्च तो वहन किए लेकिन जिंस के भाव बढ़ने की बजाय कम हो रहे हैं। कपास की फसल ने इस साल पूरी तरह धोखा दिया है। प्रति एकड़ उत्पादन तीन-चार क्विंटल ही हुआ है और भाव लागत से कम हैं। अब मजदूरी में हुई बढ़ोतरी ने खर्च और ज्यादा बढ़ा दिया है। मजदूरी तो दो गुणा तक हो गई है।