देश के 119 अति पिछड़े जिलों में से तीन जिलों के लोगों को पशुधन से विकसित करेगा सीआइआरबी
इन तीन अतिपिछड़े शहरों में हरियाणा का मेवात उत्तराखंड से हरिद्वार असम से बारपेटा में पशुधन बढ़ाएंगे वैज्ञानिक।
वैभव शर्मा, हिसार : देश के 119 अति पिछड़े शहरों में शामिल तीन जिलों के लोगों को हिसार का केन्द्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (सीआइआरबी) पशुधन में विकसित करेगा। इसकी शुरुआत हरियाणा के मेवात से होगी। 119 अति पिछड़े जिलों में मेवात का 101वां स्थान है। इसके अलावा उत्तराखंड के हरिद्वार, असम के बारपेटा जिले को चुना गया है। दरअसल अति पिछड़े शहरों की सूची तैयार करते समय वहां कृषि का भी आकलन कर अंक दिए जाते है। जिन जिलों का चुनाव सीआइआरबी ने किया है वहां कृषि के क्षेत्र में काफी कम अंक हैं। यही कारण है कि सीआइआरबी के विज्ञानी चाहते हैं कि इन क्षेत्रों में संस्थान के माध्यम से उच्च गुणवत्ता के झोटों का सीमन पहुंचाया जाए। इनमें ऐसे सीमन शामिल हैं जिन्हें वैज्ञानिक रूप से कुछ बदलाव के साथ तैयार किया गया है। खास बात यह है कि इन तीन जिलों को कृषि में विकसित करने के लिए यहां के स्थानीय परिस्थितियों व वातावरण के अनुकूल पशुओं को बढ़ावा दिया जाएगा।
विज्ञानियों को यहां से आया विचार
सीआइआरबी से प्रधान विज्ञानी डा. प्रेम सिंह यादव बताते हैं कि हरियाणा दुग्ध उत्पादन करने वाले राज्यों में सर्वोपरि है। इसके बावजूद यहां मेवात जैसे जिले को पिछड़े जिलों में शामिल किया गया है। यहीं से विचार आया कि कम से कम तीन अतिपिछड़े जिलों में यह प्रोजेक्ट लाकर वहां के स्थानीय नागरिकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है। अच्छी गुणवत्ता के पशु होंगे तो लोग पशुओं से निकलने वाले प्रोडक्ट को बेचकर खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकते हैं। यह क्षेत्र पशुपालकों को तो प्रबल बनाएगा, साथ ही दूध से प्रोडक्ट बनाने वालों को भी उद्योग स्थापित करने के लिए प्रेरित करेगा।
भारत सरकार को भेजा गया प्रोजेक्ट
प्रधान विज्ञानी डा. प्रेम सिंह यादव बताते हैं कि यह प्रोजेक्ट उन्होंने भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी को बनाकर भेजा है। इसमें डा. यादव ही टीम लीडर हैं। इसमें असम में असमिया भैंसा, हरिद्वार में मुर्राह नस्ल और मेवात में मुर्राह नस्ल के झोटा का सीमन भेजा जाएगा। इसमें असमिया भैंस की नस्ल की खास बात है कि वह पराली व कम गुणवत्ता का चारा खाकर भी स्वस्थ रहती है। वहीं हरिद्वार जिस मुर्राह का बीज भेजा जाएगा, उसमें भी अमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं।