किसान आंदोलन के कारण बहादुरगढ़ के उद्यमी को दिल्ली से छोड़ना पड़ा मकान, गुरूग्राम में शिफ्ट
प्रवीण गर्ग ने परिवार सहित अपने दिल्ली के मकान को छोड़कर गुरुग्राम में शिफ्ट कर लिया। प्रवीण गर्ग ने बताया कि वे पहले करीब 20 किलोमीटर दूर से आते थे। मगर किसान आंदोलन के कारण टीकरी बॉर्डर बंद हुआ तो उनका फैक्ट्री में आना-जाना काफी मुश्किल हो गया।
बहादुरगढ़, जेएनएन। तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन की मार बहादुरगढ़ के उद्यमियों को कई तरह से पड़ रही है। एक तो उनकी फैक्ट्रियों में उत्पादन कम हो गया है, जिससे करोड़ों का नुकसान हो चुका है। दूसरा किराये के रूप में उनका अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है। इतना ही नहीं किसान आंदोलन के कारण यहां के एक उद्यमी पिता-पुत्र को परिवार समेत अपना मकान तक छोड़कर दूसरे शहर में शिफ्ट करना पड़ गया।
बहादुरगढ़ के गणपति धाम में रबड़ उत्पाद की फैक्ट्री चलाने वाले प्रवीण गर्ग ने आंदोलन का हल न निकलता देख दिल्ली के मियांवाली से अपना मकान छोड़ दिया। प्रवीण गर्ग ने अपने उद्यमी बेटे निशांत व पूरे परिवार के साथ मियांवाली स्थित अपने मकान को छोड़कर गुरुग्राम में शिफ्ट कर लिया। हालांकि यहां पर उनका मकान पहले से ही था, मगर आंदोलन के कारण उन्हें शिफ्ट करना पड़ा। प्रवीण गर्ग ने बताया कि वे पहले करीब 20 किलोमीटर दूर से बड़े आराम से आते थे। मगर जैसे ही किसान आंदोलन के कारण टीकरी बार्डर बंद हुआ तो उनका फैक्ट्री में आना-जाना काफी मुश्किल हो गया।
कभी झाड़ौदा बार्डर, तो कभी निजामपुर तो कभी जौनती बार्डर से होकर करीब दो माह तक उन्होंने आवागमन किया। मगर कभी निजामपुर बार्डर बंद तो कभी जौनती रहता। प्रवीण गर्ग ने बताया मैं व बेटा निशांत गर्ग दोनों हर रोज फैक्ट्री में आते-जाते थे। ऐसे में दोनों परेशान रहने लगे और फैक्ट्री में भी काम प्रभावित रहने लगा। आंदोलन खत्म न होता देख हमने जनवरी माह में गुरुग्राम में शिफ्ट कर लिया। आंदोलन के कारण एक तो उन्हें गुरुग्राम में शिफ्ट करना पड़ा, दूसरा फैक्ट्री से उनकी दूरी ज्यादा बढ़ गई। इससे उनका हर रोज का गाड़ी का खर्च भी बढ़ गया। प्रवीण गर्ग ने सरकार व किसानों से इस आंदोलन को जल्द से जल्द खत्म करने की मांग की है।
दिल्ली से आने वाले कर्मचारी भी रहते हैं परेशान, फैक्ट्री का बढ़ गया अतिरिक्त खर्च
उद्यमी प्रवीण गर्ग, निशांत गर्ग, नवीन मल्होत्रा, राजेश, मनीष आदि ने बताया कि उनकी फैक्ट्रियों में दिल्ली से आवागमन करने वाले कर्मचारी हर रोज परेशानी झेल रहे हैं। कोई ज्यादा किराया देकर मेट्रो से आने को मजबूर है तो कोई दो किलोमीटर कालोनियों में पैदल चलकर टीकरी बार्डर पार कर रहा है। कई बार मेट्रो बंद हो जाती है तो कर्मचारी भी छुट्टी कर लेते हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। अगर जल्द ही यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ तो यहां की इंडस्ट्री को और ज्यादा नुकसान होगा।