Ram mandir News: अयोध्या में खाईं लाठियां, सात माह रोहतक में चला इलाज, मंदिर निर्माण के लिए रखी दाढ़ी
रोहतक के प्रताप नगर निवासी किशन बिरमानी 1990 में जंगलों के रास्ते अयोध्या पहुंचे थे। 10 दिन तो पता ही नहीं चला कि वो कहां गए। अयोध्या के अस्पताल में भर्ती रहे थे। 2017 में निधन हुआ
रोहतक [अरुण शर्मा] राम मंदिर आंदोलन के दौरान रामभक्तों का उत्साह देखने लायक था। उत्साहित रामभक्त भूखे-प्यासे रहकर कई दिनों तक पैदल चले। अयोध्या तक पहुंचे। 1990 में मुलायम सिंह सरकार के थी। इसलिए सख्ती इस कदर थी कि मुख्य रास्तों से लेकर रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर सख्त पहरा था। रोहतक स्थित प्रताप नगर निवासी किशन बिरमानी विश्व हिंदू परिषद के आह्वान के लिए तमाम लोगों के साथ अयोध्या के लिए रवाना हो गए।
विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डा. सुरेंद्र जैन कहते हैं कि उस दौरान आंदोलन जाति, धर्म, राज्य की सीमाओं से परे थे। राममय माहौल था। किशन बिरमानी के सिर पर ही भी एक ही धुन सवार थी कि सिर्फ अयोध्या पहुंचना है। किशन बिरमानी के बेटे अजय ने बताया है कि झोले में पुराने बिलों के साथ ही पानी पीने के लिए लोटा रखा। खाने के लिए घर से तैयार सत्तू भी साथ लेकर गए थे। टोली के सदस्य जगह-जगह पकड़े गए। लखनऊ तक कुछ लोग पहुंचने में कामयाब रहे।
बाद में खेतों, जंगलों व कच्चे रास्तों के सहारे अयोध्या तक तक पहुंचे। भूख-प्यास की सुध नहीं थी। तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के आदेश पर कार सेवकों पर लाठियां बरसने लगीं। गोलियां चलाईं गईं। विवादित ढांचे के निकट किशन बिरमानी लाखों कार सेवकों के बीच थे। जब लाठियां बरसने लगीं तो भगदड़ मच गई। भीड़ के बीच गिर गए। तमाम लोग ऊपर से निकल गए। लाठियां लगने से सिर में 14 टांके आए।
पैर, हाथ में गंभीर चोट आईं। पसलियां तक टूट गईं। कार सेवकों ने उन्हें अयोध्या के अस्पताल में भर्ती कराया। आठ-10 दिन तक परिवार वाले तलाश करते रहे। जब उन्हें होश आया तो पूरा पता बताया। तब रोहतक के तीन लोग उन्हें घर लेकर आए। यहां करीब सात माह तक इलाज चला। कई दफा तो चलते हुए चक्कर आने लगते और गिर जाते।
1992 में संकल्प लेकर आए कि मंदिर बनने के बाद ही दाढ़ी कटवाऊंगा
बेटे अजय कहते हैं कि राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ तो पूरा परिवार भावुक है। क्योंकि उनके पिता का आखिरी सपना उनके सामने पूरा नहीं हो सका, अगर वह होते तो वह खुश होते। उन्होंने बताया है कि 1992 में भी कार सेवा में पहुंचे। विवादित ढांचा गिराया जा चुका था। करीब सात दिन बाद लौटकर आए तो उन्होंने मंदिर निर्माण होने के बाद ही दाढ़ी कटवाने का संकल्प लिया। किशन बिरमानी का 24 मार्च 2017 में निधन हो गया। इसलिए पूरा परिवार भावुक है।