आंदोलनकारी भी चिंता में, कैसे निकले हल, 28 को संयुक्त मोर्चा की रणनीति के ऐलान का इंतजार
26 जनवरी को हुई हिंसा को लेकर जो मामले दर्ज हुए उन्हें रद करने और जेलों में बंद लोगों की रिहाई की मांग और जुड़ गई है लेकिन आखिरी दौर की बातचीत को एक माह से ज्यादा बीतने के बावजूद सरकार की ओर से वार्ता की पेशकश नहीं की गई।
बहादुरगढ़, जेएनएन। सरकार से वार्ता को लेकर बना गतिरोध लंबा खिंचता देख अब आंदोलनकारी भी इस चिंता में हैं कि आखिर हल कैसे निकले। आंदोलनकारियों की जो मांग पहले दिन थी, वे आज भी बरकरार हैं। दिल्ली में 26 जनवरी को हुई हिंसा को लेकर जो मामले दर्ज हुए उन्हें रद करने और जेलों में बंद लोगों की रिहाई की मांग और जुड़ गई है लेकिन आखिरी दौर की बातचीत को एक माह से ज्यादा बीतने के बावजूद सरकार की ओर से अभी वार्ता की पेशकश नहीं की गई है।
सरकार की ओर से यह संकेत जरूर दिया गया है कि पिछली बैठक में जो प्रस्ताव दिया गया था, उस पर सहमति बनाने का आंदोलनकारियों का यदि मन है तो वार्ता संभव है, लेकिन आंदोलनकारी तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी पर कानून बनाने की मांग दोहरा रहे हैं। यही वजह है कि वार्ता को लेकर कोई संभावना ही नहीं बन रही है। विश्लेषकों का मानना है कि अब ताे वार्ता तभी संभव है जब या तो सरकार द्वारा आंदोलनकारियां की मांग पर विचार किया जाए या फिर आंदोलनकारी लचीला रुख अपनाते हुए सरकार के प्रस्ताव पर सहमत हों।
दूसरी ओर 26 जनवरी के बाद महापंचायतें तो हाे रही, मगर आंदोलन स्थल पर पहले सा जोश दिखाई नहीं दे रहा है। रोजाना गांवों से आंदोलनकारी आते हैं और शाम को लौट जाते हैं। आंदोलन स्थल पर ठहरने वालों की संख्या पहले जितनी नहीं है। ट्रैक्टर-ट्रालियों की संख्या में ज्यादा फर्क नहीं दिखता मगर किसानों की मौजूदगी में कमी का सुबूत इस बात से भी मिलता है कि कई किसान नेता महापंचायतों को दौर बंद करके दिल्ली के बॉर्डर पर उपस्थिति बढ़ाने का आह्वान कर चुके हैं।
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