एमएसएमई क्षेत्र को संकट से उबारने के लिए जमीनी स्तर हो काम
उद्यमियों का कहना है कि माइक्रो स्माल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज (एमएसएमई) को लेकर बातें तो काफी होती हैं लेकिन उनकी सेहत को ठीक करने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ खास नहीं हो रहा है।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: उद्यमियों का कहना है कि माइक्रो, स्माल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज (एमएसएमई) को लेकर बातें तो काफी होती हैं, लेकिन उनकी सेहत को ठीक करने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ खास नहीं हो रहा है। इस क्षेत्र के उद्योगों को कोविड-19 महामारी ने काफी नुकसान पहुंचाया है। इनकी स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। कच्चे माल की बढ़ी कीमतें यदि किसी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रही हैं तो वह है एमएसएमई क्षेत्र।
छोटे और मझोले उद्योगों का संचालन करने वाले उद्यमियों का कहना है कि उन पर कर्ज चुकाने का भी भारी दबाव है। इस क्षेत्र के लोग केंद्र सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि कोरोना काल का ब्याज उनसे नहीं लिया जाए। लेकिन, इस मांग पर भी सरकार विचार नहीं कर रही है। ऐसे में छोटे उद्योगों को अस्तित्व के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
औद्योगिक विशेषज्ञों का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत का सपना बिना एमएसएमई को मजबूत किए साकार नहीं हो सकता है। मौजूदा स्थिति में यह क्षेत्र फंड की कमी से जूझ रहा है। देश के कुल निर्यात में एमएसएमई 48 प्रतिशत योगदान देता है, इसके बावजूद इन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। फिर भी दावा किया जाता है कि यह निर्यात 60 प्रतिशत तक बढ़ाया जाएगा।
गुड़गांव उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण यादव का कहना है कि इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति में ऐसा होना असंभव है। गुरुग्राम में मौजूद 20 हजार से अधिक औद्योगिक इकाइयों में से 95 प्रतिशत एमएसएमई क्षेत्र से संबंधित हैं।
एमएसएमई क्षेत्र की हालत काफी खराब है। सरकार के द्वारा जमीनी स्तर पर इनके लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है। सबसे बड़ी दिक्कत फंड की कमी है। कच्चे माल की 30 से 150 प्रतिशत तक बढ़ी कीमतें अब इनके अस्तित्व के लिए भी खतरा बन गई हैं। सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाएं नाकाफी साबित हो रही हैं। बैंकों से कर्ज लेने में भी एमएसएमई को दिक्कत आती है।
-एचपी यादव, अध्यक्ष, एनसीआर चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री