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सप्ताह का साक्षात्कार: जैव-वनस्पति विविधता संरक्षण सबसे बड़ी चुनौती

विश्व के 195 देशों में 22 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हमारी पृथ्वी और इस पर निवास करने वाले जीव-जंतु विविधता के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। इस विविधता को बचाना बेहद जरूरी हो गया है। आज के परिवेश में साल-दर-साल इनके विलुप्त होने का खतरा प्रभावी होता जा रहा है। वर्ष 2019 में अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस की थीम प्रोटेक्ट ऑवर स्पेसीज रखा गया है। यदि इस परिप्रेक्ष्य में दिल्ली-एनसीआर की बात की जाए तो यहां इन्हें खतरा सबसे अधिक है। यहां वायु प्रदूषण का खतरा तेजी से बढ़ा है। इसका प्रभाव यहां रहने वाले जीवों-जंतुओं के अस्तित्व पर नकारात्मक पड़ रहा है। अरावली जीव विविधता की ²ष्टि से एक बड़ा व समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है मगर यह बड़े ही अफसोस की बात है कि इसका ही दमन जारों से हो रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 06:14 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 06:14 PM (IST)
सप्ताह का साक्षात्कार: जैव-वनस्पति विविधता संरक्षण सबसे बड़ी चुनौती
सप्ताह का साक्षात्कार: जैव-वनस्पति विविधता संरक्षण सबसे बड़ी चुनौती

विश्व के 195 देशों में 22 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हमारी पृथ्वी और इस पर निवास करने वाले जीव-जंतु विविधता के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। इस विविधता को बचाना बेहद जरूरी हो गया है। आज के परिवेश में साल-दर-साल इनके विलुप्त होने का खतरा प्रभावी होता जा रहा है। वर्ष, 2019 में अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस की थीम 'प्रोटेक्ट आवर स्पेसीज' रखा गया है। यदि इस परिप्रेक्ष्य में दिल्ली-एनसीआर की बात की जाए तो यहां इन्हें खतरा सबसे अधिक है। यहां वायु प्रदूषण का खतरा तेजी से बढ़ा है। इसका प्रभाव यहां रहने वाले जीवों-जंतुओं के अस्तित्व पर नकारात्मक पड़ रहा है। अरावली जीव विविधता की ²ष्टि से एक बड़ा व समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है, मगर यह बड़े ही अफसोस की बात है कि इसका ही दमन जारों से हो रहा है। जो हर प्रकार के जीव-जंतुओं की विविधता के लिए अत्यंत ही विनाशकारी साबित हो रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था 'हमारी धरती मनुष्य की सभी आवश्यक्ताओं को पूरा करने में सक्षम है मगर उनके लालच की नहीं'। अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस को लेकर दैनिक जागरण के संवाददाता यशलोक सिंह ने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं मुख्य वैज्ञानिक डॉ. नंदलाल भाटिया से विस्तारपूर्वक बात की। प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंश ::::

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-- अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाने की क्या उपयोगिता है?

पूरी दुनिया तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर है। विकास के इसी अंधाधुंध दौड़ में सभी यह भूल गए हैं कि जिस धरा पर वह निवास करते हैं उसे कितनी बड़ी क्षति जाने-अनजाने में पहुंचाई जा रही है। इस पर पूरी संवेदनशीलता और समझदारी के साथ गौर करने की जरूरत है। इस ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन के लिए सबसे अनुकूल परिस्थितियां एवं संसाधन मौजूद हैं। यहां विविध प्रकार के जीवों व वनस्पतियों की मौजूदगी है। मानव ही यहां एक ऐसी प्रजाति है जिसके लालच के कारण पारिस्थितिकी तंत्र कमजोर होता जा रहा है। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पृथ्वी को बचाने के प्रति दुनिया भर के लोगों को जागरूक करने के लिए 1990 में अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। ग्लोबल वार्मिंग हमारी पृथ्वी के लिए कितना बड़ा खतरा है?

धरती के तापमान में लगातार इजाफा होने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। इसका नकारात्मक प्रभाव जैव विविधता के साथ-साथ समुद्र के जल स्तर पर भी पड़ रहा है। इससे भविष्य में उन देशों व क्षेत्रों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है जो समुद्र तटीय इलाकों के आसपास मौजूद हैं। वैज्ञानिकों के विश्लेषण के अनुसार 21वीं सदी के अंत तक समुद्र का जल स्तर 30 सेंटीमीटर तक ऊपर आ जाएगा। अभी भी समय है कि इंसान इन खतरों को पहचान ने और ऐसा कोई काम नहीं करे जिससे कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़े।

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देखा जा रहा है कि जहरीली कीटनाशक दवाओं का कृषि कार्य में काफी इस्तेमाल हो रहा है। इससे किस हद तक खतरा है?

देखिए, आजकल कृषि के क्षेत्र में अत्यंत हानिकारक रासायनिक कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल बिना सोचे समझे किया जा रहा है। ऐसे में धरती के मित्र कीटों को नुकसान पहुंच रहा है। जो जैव विविधता को तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है। मेरी सलाह यह है कि रासायनिक दवाईयों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल कृषि संबंधी कार्यों में करना चाहिए। दिल्ली-एनसीआर की बात की जाए तो यहां पर जैव विविधता के मामले में यहां क्या स्थिति है?

दिल्ली-एनसीआर में जैव-विविधता को बड़ा खतरा पैदा हो गया है। यहां पर तेजी से अरावली वह वन क्षेत्रों पर मानव आबादी का कब्जा होता जा रहा है। अरावली के जंगलों में रहने वाले वन्य जीव बेघर हो गए हैं। कई जीव-जंतु खाद्य श्रृंखला के नष्ट होने के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। जो बचे हैं वह इधर-उधर जीवन की तलाश भटक रहे हैं। यही कारण है कि कई बार आबादी वाले इलाके में वन्य जीव आ जाते हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे ?

- संसाधनों का समझदारी के उपयोग करें

- पौधरोपण एवं वृक्ष बनने तक उनकी देखभाल

- प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करें

- जहरीले कीटनाशकों के बजाय जैविक कीटनाशकों को प्राथमिकता दें

- अवैध रूप से पशु-पक्षियों के कारोबार को बंद कराया जाए

- पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार द्वारा बनाए गए कानून का कड़ाई के साथ पालन कराया जाए

- पहाड़ों और वनों का संरक्षण

- अवैध खनन के साथ वनों की कटाई को रोका जाए

- किसी भी प्रकार से प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को हतोत्साहित किया जाए

- सरकार को वन्य जीव संरक्षण परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देना

परिचय:

नाम डॉ. नंदलाल भाटिया

- पूर्व प्रोफेसर एवं मुख्य वैज्ञानिक हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार

जन्म तिथि 10, जून 1939

शिक्षा:एमएससी एवं पीएचडी (एग्रीकल्चर)

सेवा: वर्ष, 1960 में पंजाब कृषि विभाग में बतौर रिसर्च असिस्टेंट ज्वाइन किया

: हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में वर्ष 1970 में बतौर कृषि वैज्ञानिक ज्वाइन किया

: हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से वर्ष, 1999 मुख्य वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुए

: 1977 से 1981 तक गुरुग्राम कृषि विज्ञान केंद्र के संयोजक रहे

: 1981 से 1983 तक हरियाणा सहकारी, चीनी मिल फेडरेशन के शुगरकेन एडवाइजर रहे।


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