नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती पर विशेष : आजाद हिद फौज का गढ़ रहा है पचगांव
अरावली पहाड़ी की गोद में बसा पचगांव आजाद हिद फौज का गढ़ रहा है। इलाके के 37 लोग फौज में शामिल थे। सभी जंग-ए-आजादी के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिद फौज में शामिल हुए थे।
आदित्य राज, गुरुग्राम
अरावली पहाड़ी की गोद में बसा पचगांव आजाद हिद फौज का गढ़ रहा है। इलाके के 37 लोग फौज में शामिल थे। सभी जंग-ए-आजादी के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिद फौज में शामिल हुए थे। अब एक भी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन हर व्यक्ति की जुबान पर जय हिद उनकी यादें ताजी करती रहती हैं।
पचगांव इलाके में ग्वालियर, कुफरपुर, चांदला डुंगरवास, फाजिलवास और कुकरौला गांव आते हैं। आजादी के आंदोलन में इस गांव के काफी लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। खासकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस का प्रभाव इलाके के ऊपर अधिक था। इलाके में नेताजी का स्मारक है। जहां पर प्रतिदिन अधिकतर लोग नेताजी को नमन करने के लिए पहुंचते हैं। नेताजी के प्रभाव का आलम यह है कि अधिकतर लोग एक-दूसरे का अभिवादन जय हिद के साथ करते हैं। अन्य इलाकों में शादी हो या अन्य समारोह, यदि उसमें पचगांव इलाके के लोग यदि पहुंचते हैं तो उनका अभिवादन भी अधिकतर लोग जय हिद से करते हैं।
नेताजी को महात्मा गांधी के बराबर सम्मान मिले, यह सपना था
गांव ग्वालियर निवासी पूर्व सरपंच सिकंदर यादव के पिता चंदर सिंह और ताऊ हरिराम सिंह भी आजाद हिद फौज में शामिल थे। पिताजी ने उन्हें बताया था कि सिगापुर से रवाना होने से पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सिपाहियों के साथ भोजन किया था। उनकी एक आवाज पर सिपाही सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार रहते थे। नेताजी जब भी कहीं से आते थे, सीधे सिपाहियों के बीच पहुंचते थे। उनसे संवाद करते थे। बात ही बात में जोश भर देते थे। पिताजी कहा करते थे कि नेताजी जैसा व्यक्तित्व जीवन में नहीं देखा। उनके चेहरे पर अजीब सी चमक थी। पिताजी यह कहते-कहते दुनिया से चले गए कि पता नहीं कब नेताजी को अपनी धरती पर वह सम्मान प्राप्त होगा जिसके वे हकदार हैं। इलाके के जितने भी लोग आजाद हिद फौज में शामिल थे, उन सभी का एक ही सपना था कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से अधिक नहीं तो कम से कम बराबर का सम्मान मिले। सभी का मानना था कि आजादी के आंदोलन में नेताजी से अधिक किसी का योगदान नहीं। दुनिया के बड़े से बड़े नेता उनके सामने बौने थे। सभी उनका सम्मान करते थे। उस महानायक को जो सम्मान शुरू से ही मिलना चाहिए था, नहीं मिला।
अब हो रहा है सपना साकार
पूर्व सरपंच सिकंदर यादव कहते हैं कि उन्होंने अपने इलाके के स्वतंत्रता सेनानियों के दिलों में नेताजी को लेकर कितना गहरा दर्द था, उसे महसूस किया है। सभी उठते-बैठते केवल एक ही चर्चा करते थे कि कब मिलेगा नेताजी को सम्मान। अब लगता है उनका सपना साकार होता दिख रहा है। देश में उनकी जयंती पर जगह-जगह समारोह होने लगे हैं। बड़े-बड़े स्मारक बनाए जा रहे हैं। यदि उनके बुजुर्ग जीवित होते तो वे खुशी से झूम उठते।