संस्कारशाला : मैं नहीं, हम : प्राचार्यों के विचार
बच्चों में संस्कारों की नींव उन्हें रिश्तों के बीच रखकर ही डाली जा सकती है। बड़ों का सम्मान, छोटों के बीच शेय¨रग एंड केय¨रग की भावना और एक दूसरे के सुख दुख में भागीदारी ही परिवार का असल स्वरूप होता है। आज के दौर में माता पिता के पास समय ही नहीं है कि वे बच्चों को दे सकें। ऐसे में बच्चे एकाकीपन का शिकार हो रहे हैं और अपनी ही दुनिया में जीना को जीवन समझने लगे हैं। ऐसे में वे वर्चुअल दुनिया को वास्तविक मान रहे हैं और वास्तविक रिश्ते नातों से दूर होते जा रहा है।
फोटो - 19 जीयूआर 06
रिश्तों से जोड़कर ही पड़ सकती है संस्कारों की नींव
बच्चों में संस्कारों की नींव उन्हें रिश्तों के बीच रखकर ही डाली जा सकती है। बड़ों का सम्मान, छोटों के बीच शेय¨रग व केय¨रग की भावना और एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदारी ही परिवार का असल स्वरूप होता है। आज के दौर में माता-पिता के पास समय ही नहीं है कि वे बच्चों को दे सकें। ऐसे में बच्चे एकाकीपन का शिकार हो रहे हैं और अपनी ही दुनिया में जीने को जीवन समझने लगे हैं। ऐसे में वे वर्चुअल दुनिया को वास्तविक मान रहे हैं और वास्तविक रिश्ते-नातों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में वे स्वार्थी होते जा रहे हैं और 'मैं' में जीने लगे हैं। उन्हें बेहतर व्यक्तित्व देने के लिए इस 'मैं' से निकालकर हम की खूबसूरती दुनिया में लाना होगा। नहीं तो आने वाली पीढ़ी न तो घर से सरोकार रखेगी और न ही समाज से। ऐसे में समाज की संरचना विघटित हो जाएगी। बच्चों को स्मार्ट फोन व वर्चुअल दुनिया से निकालना होगा। शिक्षकों को चाहिए के उन्हें एकता का पाठ पढ़ाएं व अभिभावकों को चाहिए कि उन्हें परिवार का प्यार दें। अपने अहम या आपसी मनमुटावों के चलते उन्हें परिवार से दूर न करें। हमारे स्कूल में हर काम टीम में करवाया जाता है। यहां 'मैं' बोलने का चलन ही नहीं है, सभी लोग 'हम' बोलते हैं। यहां हर आय वर्ग के विद्यार्थी पढ़ते हैं और सभी को समान रूप से टीम का हिस्सा माना जाता है।
- सुधा गोयल, निदेशक, स्कॉटिश हाई इंटरनेशनल स्कूल
- 'हम' की भावना भरकर करवाएं दायित्वबोध
आज के दौर में बच्चों को स्वयं से निकालकर रिश्ते नातों से जोड़ना बड़ी चुनौती साबित हो रहा है लेकिन अगर बच्चों का भविष्य व संस्कृति को बचाना है तो हमें बच्चों में एकता का भाव भरना होगा। उन्हें संस्कारवान बनाने का काम केवल माता-पिता का नहीं होता बल्कि पूरा परिवार व शिक्षक इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। बच्चे कच्ची मिट्टी का घड़ा होते हैं। उन्हें जिस तरह से बनाना चाहें, बनाया जा सकता है। आज माता-पिता इतने व्यस्त हैं कि बच्चों के नन्हें हाथों में स्मार्ट फोन पकड़ाकर अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा करने से बच्चा अपने इर्दगिर्द एक अलग ही दुनिया बना लेता है। और फिर वह न तो परिवार को मानता है न ही दोस्तों को। बच्चे को संस्कार देने की शुरुआत यहीं से होती है कि उसे रिश्तों की कद्र करना सिखाया जाए। स्कूलों में जो ग्रैंड पेरेंट्स डे बनाए जाते हैं, उससे भी बच्चों में दादा-दादी के करीब होने का अहसास होता है। सबको एक साथ लेकर चलने की आदत बच्चों को जिम्मेदारियां उठाने के लिए सक्षम बनाता है।
- निशा शर्मा, प्राचार्य, रेयान इंटरनेशनल स्कूल, सेक्टर 40
- माता पिता व शिक्षकों के संयुक्त योगदान से बदलाव संभव
'बच्चों को संस्कारवान बनाने में शिक्षकों व अभिभावकों का संयुक्त योगदान जरूरी है। आज के दौर में माता पिता दोनों के कामकाजी होने के कारण बच्चों को उनका वह प्यार व समय नहीं मिल पाता जिनकी उन्हें जरूर होती है। बच्चा अकेले रहते रहते उसी दुनिया में जीने का आदी हो जाता है। इस तरह से वह सिर्फ अपने बारे में सोचने लगता है। उसे लगता है कि वह अपनी ¨जदगी स्वयं चला रहा है तो उसके निर्णय व उसकी जरूरतें भी अपनी हैं। अपनी जरूरतों को पूरा करवाना वह अपना अधिकार समझने लगता है और ऐसा न होने पर वह धीरे-धीरे विद्रोही होने लगता है। उसमें भावनाएं खत्म होने लगती है, जिससे आगे चलकर वह बेहद अकेला रह जाता है। यही वजह है कि बच्चों में तनाव व अवसाद जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। बच्चों को अच्छा भविष्य व समाज को सही दिशा देने के लिए भावी पीढ़ी में से 'मैं' की भावना निकालकर 'हम' की भावना भरनी होगी। बच्चे बड़ों से देखकर सीखते हैं ऐसे में बच्चों को आदर्श स्थापित करना होगा। ऐसे में माता पिता व शिक्षकों को भी टीमवर्क का परिचय देना होगा।'
- सीमा शर्मा, प्राचार्य, लॉर्ड जीसस स्कूल
बच्चों के सामने पेश करें आदर्श
'वर्तमान समय में बच्चों की सोच बदलती जा रही है जिसका असर उनके व्यक्तित्व पर देखने को मिल रहा है। बच्चों को चाहिए कि वे अपने साथ-साथ औरों के बारे में भी सोचें। माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को 'हम' की भावना सिखाएं। उन्हें बताएं कि एकता में ही समृद्धि और असली सफलता है। अगर केवल स्वंय के बारे में सोचेंगे तो बहुत आगे नहीं बढ़ पाएंगे। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को बेहतर शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दें। उन्हें केवल बताकर संस्कारों का ज्ञान देने के बजाय करके दिखाएं। बच्चा जो करता है वह माता-पिता व बड़ों के ही अनुसरण से सीखता है। अगर उसे पता है कि माता पिता ज्यादा समय काम पर ध्यान देते हैं बड़ों की अनदेखी करते हैं तो बच्चा भी यही सीखेगा। उसे लगेगा कि बड़ों से इसी तरीके से बर्ताव करना है। बच्चों को समझाना होगा, इसके लिए पहले उन्हें करके दिखाना होगा। स्कूलों में शिक्षक बच्चों को टीम में काम करवाना होगा। इससे बच्चा अकेला नहीं रहेगा और वह सबके साथ चलना सीखेगा।
- रचना अरोड़ा, प्राचार्य, लेडी फ्लोरेंस पब्लिक स्कूल