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इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिक पमानंद ने कहा- मेरी कविता सुनकर नेताजी ने थपथपाई थी पीठ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार नेताजी को न्याय देने का काम शुरू कर चुकी है। उनके जन्मदिन 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाने को जो निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है उससे मुझे बहुत खुशी मिली है। यह कहना है आइएनए के सदस्‍य महाशय परमानंद का।

By Prateek KumarEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 05:50 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 06:31 PM (IST)
इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिक पमानंद ने कहा- मेरी कविता सुनकर नेताजी ने थपथपाई थी पीठ
देश को आजादी मिलने के साथ ही शुरू हो गई थी नेताजी की उपेक्षा।

गुरुग्राम [अनिल भारद्वाज]। इंडियन नेशनल आर्मी (आइएनए) के जवान रहे महाशय परमानंद ने कहा कि राष्ट्रीय गौरव, मां भारती के सपूत और जंगे-ए-आजादी के हीरो नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश के इतिहास में जिस सम्मान और स्थान के हकदार थे उन्हें नहीं दिया गया। देश को आजादी मिलने के साथ ही तत्कालीन सरकार ने उनकी उपेक्षा शुरू कर दी। धीरे-धीरे ही सही अब नेताजी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार न्याय करने का काम शुरू कर चुकी है। उनके जन्मदिन 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाने को जो निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है उससे मुझे बहुत खुशी मिली है। इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।

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आज हमारे देश के शिक्षण संस्थानों में नेताजी के देश की आजादी के योगदान के बारे में जो कुछ आज पढ़ाया जा रहा है वह उनके व्यक्तित्व के हिसाब से एक प्रतिशत भी नहीं है। वह एक विराट पुरुष हैं। उनके समक्ष कोई अन्य ठहरता भी नहीं है। उन्होंने भारत माता की आजादी के लिए देश से लेकर विदेश तक में वह हर जरूरी कदम उठाया जो न्यायोचित था।

देश की आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2019 के गणतंत्र दिवस परेड में इंडियन नेशनल आर्मी (आइएनए) के जवानों को शामिल किया था, तो जीवन के आखिरी पड़ाव में खुशी मिली और विश्वास हुआ कि अब नेताजी को देश याद रखेगा। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी की 125वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की, तो मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी का पल है।

आजाद हिंद फौज की बटालियन 'बहादुर ग्रुप' के जवान रहे स्वतंत्रता सेनानी महाशय परमानंद को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर चल रहे कई तरह के दावों पर विश्‍वास नहीं है। 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी ने कहा नेताजी गुमनामी जिंदगी नहीं जी सकते उनके साथ कोई हादसा ही हुआ होगा, क्योंकि दुश्मन कई देशों में फैले हुए थे।

नेताजी के साथ दशकों पहले बिताए पलों को याद कर महाशय परमानंद भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं कि नेताजी ने देश की आजादी की लड़ाई जिन सपनों के लिए लड़ी थी वह आज भी अधूरा है। उनका कहना है आज देश में राजनीति के नाम पर कई नेता राष्ट्र के खिलाफ बोलते हैं। कोई चीन की तरफदारी करता है तो कोई पाकिस्तान की। कोई देश की सेना से सबूत मांगता है। यह देखकर हृदय द्रवित हो जाता है। मन में गुस्सा उठता है कि क्या नेताजी ने ऐसे ही लोगों के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था।

गांव फाजिलपुर बादली निवासी परमानंद बताते हैं कि जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उनकी देशभक्ति से ओतप्रोत कविता सुनी थी तो उनकी पीठ थपथापाई थी। उन्होंने बताया कि 1943 में सिंगापुर में जब नेताजी अंग्रेजी फौज के भारतीय कैदियों से मिलने पहुंचे थे तो उनके स्वागत उन्होंने यह कविता सुनाई थी। जिसे उन्होंने खूब पसंद किया था।

उन्होंने बताया कि 7 दिसंबर 1942 में सिंगापुर अंग्रेज फौज पर जापान ने हमला कर दिया और 15 फरवरी 1942 को फिरंगी फौज युद्ध हार गई। उस समय जापान में भारतीय सैनिकों को बंदी बना लिया गया। उस समय नेताजी जर्मनी में थे और जापान व जर्मनी की दोस्ती थी। उसी समय नेताजी ने सिंगापुर में भारतीय कैदियों से मुलाकात कर देश के लिए लड़ने के लिए तैयार किया था।

2 जुलाई 1943 को नेताजी ने अपनी आजाद हिंद फौज का निर्माण किया और जापान व जर्मनी की सहायता से 1944 में आजाद हिंद फौज ने अंग्रेज फौज पर हमलाकर भारत का मिजोरम, मेघालय, कोहिमा, त्रिपुरा, इंफाल, अंडमान -निकोबार द्वीप को आजाद करा लिया। लेकिन 1945 में जापान पर परमाणु हमला करने पर व हिटलर की आत्महत्या के कारण आजाद हिंद फौज कमजोर हो गई।

11 नवंबर, 1946 को भारतीय नेताओं के दखल के बाद सभी सैनिक आजाद किए गए। आजादी के दीवाने परमानंद का जन्म 17 अगस्त 1920 को किसान परिवार में हुआ था। 17 सितंबर 1940 को अंबाला से अंग्रेज सेना में भर्ती हुए और उसी समय अंग्रेजों ने सिंगापुर लड़ाई लड़ने के लिए भेज दिया। वहां पर लड़ते वक्त ही वह नेता जी के संपर्क में आए और अंग्रेजी सेना से बगावत कर आजाद हिंद सेना में शामिल हो गए। जब भारत में हमें अंग्रेज सेना ने कैद किया, तो मुझे अलग से रखा और बहुत प्रताड़ना दी। क्योंकि मैं दिन में लड़ाई लड़ता था और रात के समय अपने जवान साथियों का कविताओं के माध्यम से हौंसला बढ़ाता था जिसके बाद भूखे प्यासे जवान अंग्रेजों सेना से लड़ते थे। इसी कारण अंग्रेजों ने बड़ी प्रताड़ना दी।

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