लाइफस्टाइल: 'लोकल' के लिए 'वोकल' हुई फैशन इंडस्ट्री
कई शॉपिंग साइटों पर फैशन का एक अलग से सेक्शन बन गया है जिसमें वोकल फॉर लोकल का नाम दिया गया है।
गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। 'वोकल फॉर लोकल.' इस नारे ने लोगों में एक नई जागरूकता का संचार किया है। इसका असर चहुंओर दिखने लगा है। यहां तक की फैशन नगरी में भी लोकल का डंका बजने लगा है। शॉपिंग साइटों पर भी लोकल लेबल आम होने लगे हैं।
कई शॉपिंग साइटों पर फैशन का एक अलग से सेक्शन बन गया है जिसमें 'वोकल फॉर लोकल' का नाम दिया गया है। फैशन डिजाइनर्स और कारीगरों के लिए भी नई संभावनाएं नजर आ रही हैं।
पारंपरिक परिधानों की धूम
शॉपिंग साइटें खुलते ही अलग-अलग सेक्शन दिखते हैं लेकिन अब सबसे पहले चमकता है 'लोकल' सेक्शन। पारंपरिक परिधान बनाने वाले जो ब्रांड कहीं दबे हुए नजर आते थे अब वे लोकल होकर उभर आए हैं। अब लोकल का एक पूरा अलग वर्ग तैयार हो गया है जो फैशन के कॉटन, खादी और अन्य पारंपरिक कपड़ों के ब्रांड को पसंद कर रहा है।
बढ़ा लोकल कारीगरों का व्यापार
शॉपिंग साइटों पर लोकल के नाम से आए ब्रांड्स को लोगों की सराहना मिल रही है। ऑनलाइन मार्केटिंग के तहत परिधान सप्लाई करने वाली राधिका अग्रवाल का कहना है कि उनके प्रोडक्ट्स पर किसी की नजर ही नहीं जाती थी लेकिन अब उसे अच्छी संख्या में ग्राहक मिल रहे हैं। वे पारंपरिक प्रिंट के खादी व कॉटन परिधान निर्माता हैं। उनका कहना है कि बड़े व विदेशी ब्रांड्स के तहत सस्ते होने के बावजूद भी उनके सस्ते परिधानों की चमक फीकी पड़ जाती थी।
ग्राहकों की बढ़ी दिलचस्पी
कंपनी कर्मचारी सुषमा जैन का कहना है कि वे अब विदेशी ब्रांड्स नहीं, बल्कि लोकल ब्रांड्स खरीद रही हैं और उसे शेयर करते हुए लोगों को लोकल ब्रांड्स खरीदने के लिए जागरूक भी कर रही हैं। सुशांत लोक निवासी अराधना बजाज का कहना है कि प्रधानमंत्री की वोकल फॉर लोकल की बात का उनपर इतना असर हुए कि केवल कपड़े ही नहीं, बल्कि फंकी ज्वेलरी और अन्य उत्पाद भी लोकल ब्रांड से ही खरीद रही हैं।
क्या कहती हैं फैशन डिजाइनर
फैशन डिजाइनर लीजा नरूला ने बताया कि बदली स्थितियों में फैशन बाजार पूरी तरह बदल गया है। निर्माता से लेकर ग्राहक तक मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स की मांग कर रहे हैं। हमने शुद्ध भारतीय फेब्रिक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। लोगों ने इस बदलाव को सहर्ष स्वीकार कर लिया है और ऐसे में फैशन इंडस्ट्री में कारीगरों से लेकर हैंडलूम तक का भविष्य उज्जवल होगा।
फैशन एक्सपर्ट सीमा अग्रवाल कहती हैं कि अब हमें मेहनत करने की जरूर है, भारतीय पारंपरिक कारीगरों और डिजाइनर्स को पूरा मौका है अपने आप को साबित करने का। बदलाव आ रहा है और परास्थितियां हमारे लिए अनुकूल हो रही हैं। समय की जरूरतों और स्टाइल के साथ भारतीय पारंपरिक फैब्रिक और परिधानों को बनाया जाए तो निश्चित रूप से लोग इससे जुड़ेंगे।